हरमू नदी के सौंदर्यीकरण की योजना मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है. यह काम जुडको को मार्च 2015 में सौंपा गया था, जिसने मुंबई की कंपनी ईगल इंफ्रा से नदी के करीब 11 किमी के दायरे में सौंदर्यीकरण का काम कराया.
जुडको के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि हरमू नदी का सौंदर्यीकरण कार्य पूरा हो चुका है और इस पर करीब 84 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. साथ ही नदी के मेंटेनेंस और ऑपरेशनल कार्यों के मद में आठ करोड़ रुपये रिजर्व रखे गये हैं. यह काम भी ईगल इंफ्रा को ही करना है. इधर, खूबसूरत किनारों वाली कलकल करती हरमू नदी की कल्पना करते हुए यहां आनेवालों को नदी की जगह एक बजबजाता हुआ नाला दिखता है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि 84 करोड़ रुपये किस काम पर खर्च हुए हैं? प्रस्तुत है हरमू नदी के मौजूदा हालात की पड़ताल करती राजेश ितवारी आैर उत्तम महताे की ग्राउंड रिपोर्ट, तस्वीरें अमित दास और राज कौशिक की –
रांची. प्रभात खबर की टीम ने गुरुवार को हरमू नदी
के मौजूदा हालात की पड़ताल करने के लिए गंगानगर से हरमू पुल तक (करीब 5 किमी) पैदल भ्रमण किया. नदी के सौंदर्यीकरण का कार्य गंगानगर के समीप से ही शुरू हुआ था. यहां नदी के मुहाने पर ही स्थानीय लोगों ने मिट्टी का ढेर डालकर ऊपर से आनेवाले पानी को रोक दिया है. नतीजतन उद्गम स्थल से आनेवाला पानी यहीं पर रुक जा रहा है. चार कदम आगे बढ़ने के बाद नदी पर बोल्डर बिखरा हुआ है. इस वजह से यहां से भी पानी आगे नहीं बढ़ रहा है.
थोड़ा सा आगे बढ़ने पर भट्ठा मोहल्ला के समीप ही खटाल और घरों से निकल रहा सीवरेज का
गंदा पानी नदी में ही गिर रहा है. थोड़ा आगे करम चौक के समीप नाली का गंदा पानी सीधे नदी में
गिर रहा है. कुछ दूर आने बढ़ने पर विद्यानगर पुल मिलता है, जहां नदी किनारे ही 50 से अधिक गायें और भैंसें बांध कर रखी गयी हैं. वहीं, खटाल से निकल रहा गोबर सीधे नदी में डाला जा रहा है. कुछ दूर आगे आने के बाद मुक्तिधाम का छोटा पुल है. यहां नदी में पॉलिथीन और कीचड़ भरा हुआ है, जिससे किसी बजबजाते नाले का दृश्य बन रहा है. वहीं, बीच नदी में ही सूअरों का झुंड अठखेलियां करता दिख रहा है.
शिलान्यास के समय किये गये थे बड़े-बड़े दावे, हकीकत एकदम उलट
14 जनवरी 2015 को मुख्यमंत्री रघुवर दास, नगर विकास मंत्री सीपी सिंह सहित मेयर और डिप्टी मेयर ने हरमू नदी सौंदर्यीकरण कार्य का शिलान्यास किया था.
इस दौरान घोषणा की गयी थी कि नदी के किनारे छोटे-छोटे पार्क बनाये जायेंगे. नदी तट पर 2.5 मीटर चौड़ी पगडंडी बनायी जायेगी, जिस पर लोग टहल सकते हैं. नदी के मुहाने पर नेचुरल सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट बनाया जायेगा. इसके अलावा नदी में गंदा पानी न गिरे, इसके लिए नौ सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण किया जायेगा. नदी किनारे कुल 31 सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया जायेगा. नदी किनारे सात जल-मल शोध संयंत्र लगाये जायेंगे. किनारे पर सोलर लाइट लगायी जायेगी, ताकि लोग देर रात तक नदी किनारे बैठकर मनमोहक नजारे देख सकें.
करमसोकड़ा से शुरू हुआ था सौंदर्यीकरण का काम
हरमू विद्यानगर से कुछ ही दूरी करमसोकड़ा नाम की जगह है. यहीं से हरमू नदी के सौंदर्यीकरण का काम शुरू हुआ था. यहां पर पत्थरों अौर लोहे की जालियों से नदी के दोनों किनारों को बांधने का काम शुरू हुआ.
करमसोकड़ा से नदी के प्रवाह की दिशा में चलते हुए थोड़ी दूरी पर शौचालय बनाया गया है. लेकिन, मौजूदा समय में लोग इस शौचालय का इस्तेमाल नहीं कर सकते, क्योंकि इसके दरवाजे पर ताला लगा हुआ है. स्थानीय लोगों का कहना है कि निर्माण के बाद से ही शौचालय बंद है. यहां पर नदी का पानी कुछ साफ है अौर आसपास की बस्तियों के लोग बेझिझक इस पानी का इस्तेमाल करते हैं. थोड़ा अौर आगे बढ़ने पर बस्तियां शुरू हो जाती हैं. नदी के दूषित होने का सिलसिला भी यहीं से शुरू हो जाता है.
अब तो पौधों के ठूंठ ही दिख रहे हैं
हरमू नदी सौंदर्यीकरण के तहत ईगल इंफ्रा द्वारा नदी किनारे 2400 पेड़ लगाने का दावा किया जा रहा है. लेकिन, वास्तविकता इसके ठीक उलट है. केवल हरमू पुल के समीप ही थोड़ी हरियाली दिख रही है. वह भी इसलिए, क्योंकि यहां से दिन-रात वीवीआइपी मूवमेंट होता है. वहीं, नदी के शेष हिस्सों में केवल पेड़ों की ठूंठ बचे हुए हैं. शुरुआती दौर में कंपनी द्वारा नदी के किनारे-किनारे हरी-हरी घास भी लगायी गयी थी, लेकिन अब उसका भी नामोनिशान नहीं दिखता है.
कडरू डायवर्सन रेडिशन ब्लू के पास
आज भी शहर का गंदा पानी जहां-तहां से बह कर हरमू नदी में गिर रहा है. इस वजह से नदी पानी आज भी काला ही है. जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है. बह रहे पानी में सूअरों का जमावड़ा भी है. कडरू पुल टोली के पास सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट चालू है. यहां कर्मचारी सफाई का काम भी करते हैं. टोनर रूम से निकला पानी हरमू नदी में ही बहाया जा रहा है. इस बारे में वहां मौजूद ईगल वेंचर के इंजीनियर विश्वजीत ने बताया कि यहां से साफ पानी निकल रहा है, जिसे हरमू नदी में बहाया जा रहा है.
तपोवन ब्रिज के समीप
यहां काला पानी बह रहा है. पुल के नीचे कचरे का अंबार लगा हुआ है. बगल में खटाल भी हैं. कई आवास भी बने हुए हैं, जिनका गंदा पानी सीधे हरमू नदी में गिर रहा है. पुल के दूसरे छोर पर एक छोटा पुल है, जहां कचरा फंसा हुआ है. पानी को भी रोक रहा है. जहां-तहां पॉलिथीन के कैरी बैग और प्लास्टिक की बोरियां फेंकी हुई हैं. इस क्षेत्र के जिम्मेदार पदाधिकारी ने बताया कि हर दो दिन पर यहां सफाई की जाती है. लेकिन, स्थिति देख ऐसा नहीं लगता कि यहां हर दो दिनों में सफाई होती होगी.
स्वर्णरेखा नदी का पानी भी हुअा काला
हरमू नदी चुटिया के 21 महादेव मंदिर के पास स्वर्णरेखा नदी में मिलता है. दक्षिण की तरफ स्वर्णरेखा नदी का पानी काफी साफ है. वहां लोग नहाते भी हैं. लेकिन, वहां से थोड़ी दूर उत्तर की तरफ बढ़ते ही स्वर्णरेखा नदी का पानी पूरी तरह काला है. क्योंकि, यहां हरमू नदी का गंदा और काला पानी पूरे वेग से स्वर्णरेखा नदी में मिल रहा है. यहां के युवाओं ने बताया कि एसटीपी सात और आठ कई महीनों से खुला नहीं है. शौचालय भी जब से बना है, उसके बाद से कभी नहीं खुला.
लोगों में जागरूकता की कमी है. लोग घर का कचरा उठाकर हरमू नदी में फेंक रहे हैं, जिससे गंदगी फैल रही है. एजेंसी को कार्य के एवज में भुगतान के मामले को लेकर जांच चल रही है. जो भी दोषी पाया जायेगा, उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
सीपी सिंह, नगर विकास मंत्री
नदी के सौंदर्यीकरण के नाम पर इसे नाला से भी बदतर बना दिया गया है. शुक्रवार को मुख्यमंत्री जी के साथ कार्यक्रम है. इसी कार्यक्रम में मैं खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास को बताऊंगी कि सौंदर्यीकरण के नाम पर हरमू नदी की क्या हालत कर दी गयी है.
आशा लकड़ा, मेयर
जुडको के इस कार्य से हम जीरो प्रतिशत भी संतुष्ट नहीं हैं. आखिर 84 करोड़ रुपये खर्च करके अगर हम एक छोटी सी नदी को सुंदर नहीं बना पाये, तो फिर इतनी राशि खर्च करने का औचित्य क्या है? इस मामले में जुडको से जवाब तलब किया जायेगा.
संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर