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मांग: ऑल चर्चेज कमेटी ने राज्यपाल को सौंपा ज्ञापन, कहा धर्मांतरण बिल व भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक को मंजूरी न दें

रांची : ऑल चर्चेज कमेटी रांची (एसीसीआर) ने अध्यक्ष बिशप अमृत जय एक्का के नेतृत्व में बुधवार को राज्यपाल द्रौपदी मुरमू से मुलाकात की. कमेटी के सदस्यों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा कर आग्रह किया कि वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनर्स्थापन संशोधन विधेयक 2017 व झारखंड धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2017 को मंजूरी न दे़ं. सदस्यों […]

रांची : ऑल चर्चेज कमेटी रांची (एसीसीआर) ने अध्यक्ष बिशप अमृत जय एक्का के नेतृत्व में बुधवार को राज्यपाल द्रौपदी मुरमू से मुलाकात की. कमेटी के सदस्यों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा कर आग्रह किया कि वे भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास व पुनर्स्थापन संशोधन विधेयक 2017 व झारखंड धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2017 को मंजूरी न दे़ं.

सदस्यों ने कहा कि संविधान की धारा 25 व 26 के तहत धर्म के मामले में अंतरात्मा की आजादी, आस्था पर चलने व इसके प्रचार का मौलिक अधिकार है़ धर्मांतरण कानून के दुरुपयोग की भी संभावना है़ आदिवासियों की जमीन की रक्षा न सिर्फ वर्तमान, बल्कि उनकी भावी पीढ़ियों के लिए भी होनी चाहिए़ प्रतिनिधिमंडल में फादर जेवियर सोरेंग, रेव्ह मनमसीह एक्का, फादर क्रिस्टो दास, अटल खेस व जीबी रक्षित शामिल थे़.


ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य के निर्वाचित प्रमुख ने झारखंड धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2017 लाने से पहले रांची, गुमला, खूंटी व दुमका में हुए विभिन्न सरकारी व सामाजिक कार्यक्रमों में ईसाई समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक व असंवैधानिक बयान दिया़ 11 अगस्त को राज्य के अखबारों में विज्ञापन छपवा कर मसीही विराेधी घृणा फैलायी गयी़ इस विज्ञापन का उद्देश्य भाई को भाई से लड़ा कर आदिवासी जमीन लूटना है़ सरकार मानती है कि सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधनों के खिलाफ मसीहियों ने आंदोलन का नेतृत्व किया है, जो बेबुनियाद है़ सभी आदिवासियों ने एकजुटता के साथ उन संशोधनों का विरोध किया़.
हिंदू बनने वाले आदिवासियों की खो रही नस्ली पहचान : झारखंड में ईसाई आबादी 1951 में 4: 12, 1961 में 4: 17, 1971 में 4: 35, 1981 में 3: 99, 1991 में 3: 72, 2001 में 4: 10 और 2011 में 4: 30 फीसदी रही है़ सरकार जो नहीं है, उसको मुद्दा बना रही है़ 2011 की जनगणना के अनुसार आदिवासियों में 14: 5 प्रतिशत ईसाई व 39: 7 प्रतिशत हिंदू है़.

जिन आदिवासियों ने हिंदू धर्म स्वीकार किया है, उन्होंने अपना सरनेम कुमार, कुमारी या देवी कर लिया है या उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य किया गया है़ इससे उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक और नस्ली पहचान खाे रही है़. सरकार को उनकी पहचान सुरक्षित रखनी चाहिए़ झारखंड में गोरक्षा के नाम पर हत्या और कुपोषण जैसी कई समस्याएं है़ं आदिवासी पिछले कई वर्षों से सरना कोड की मांग कर रहे है़ं विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार ने दोनों बिल पारित कर दिया़ यह खतरनाक हैं और राज्य के आदिवासियों की पहचान व अस्तित्व के लिए खतरा है़

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