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राज्य में छोटी-बड़ी दो दर्जन सिंचाई परियोजनाएं अधूरी, 45 वर्षों से लटकी हैं परियोजनाएं लागत 10 हजार करोड़ तक पहुंची

रांची : झारखंड के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए कई परियोजनाएं वर्षों से चल रही है़ं 40 से 45 वर्ष पहले शुरू की गयी लगभग दो दर्जन परियोजनाएं अभी तक पूरी नहीं हुई है़ं अविभाजित बिहार के समय से चल रही परियोजनाओं की लागत कई गुना बढ़ गयी है़ नव गठित राज्य झारखंड मेें […]

रांची : झारखंड के खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए कई परियोजनाएं वर्षों से चल रही है़ं 40 से 45 वर्ष पहले शुरू की गयी लगभग दो दर्जन परियोजनाएं अभी तक पूरी नहीं हुई है़ं अविभाजित बिहार के समय से चल रही परियोजनाओं की लागत कई गुना बढ़ गयी है़ नव गठित राज्य झारखंड मेें इसे पूरा करने के लिए वर्षों से काम चल रहा है़ 1970 से 1975 व उसके बाद ली गयी आठ वृहद व 19 मध्यम सिंचाई परियोजनाएं भी पूरी नहीं हुई है़ं अलग-अलग कारणों से परियोजनाएं लंबित है़ं.

कई परियोजनाओं के लिए विभाग के पास पैसे नहीं हैं, तो कहीं जन प्रतिरोध के कारण काम ठप है़ वन भूमि के अधिग्रहण से लेकर आम रैयतों की जमीन लेने में परेशानी हो रही है़ परियोजनाओं में हजारों एकड़ जमीन की जरूरत है, लेकिन समय पर जमीन नहीं मिल रही है़ इन योजनाओं की लागत 10 हजार करोड़ तक पहुंच गयी है. राज्य में सिंचाई परियोजनाएं यदि पूरी हो जातीं, तो लगभग 5.5 लाख हेक्टेयर जमीन को पानी मिलता.

आधा दर्जन सिंचाई परियोजनाओं को लेकर जन प्रतिरोध : राज्य की छह सिंचाई परियोजनाओं को जन प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है़ विस्थापित बड़े और छोटे डैम के निर्माण का विरोध कर रहे है़ं इनमें से रांची की कंस जलाशय योजना को छोड़ किसी पर भी काम शुरू नहीं हो सका है, जबकि ये परियोजनाएं वर्षों पुरानी हैं. कंस व प सिंहभूम की झरझरा परियोजना पर करीब 30 करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं.झरझरा में हेड वर्क सहित अन्य कार्य नहीं हुआ है,जबकि इस पर 10 करोड़ से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. कंस परियोजना 1978 में तथा झरझरा परियोजना 1982 में शुरू हुई थी. प सिंहभूम की सतपोतका व पाकुड़ जिले की तोराई परियोजनाएं भी लंबित हैं. इन सभी परियोजनाओं से 20 हजार हेक्टेयर से अधिक खेतों को पानी मिल सकता है, पर स्थानीय रैयत अपनी जमीन नहीं देना चाहते है़ं .
फॉरेस्ट क्लीयरेंस भी समस्या : सिंचाई परियोजनाओं में वन भूमि का हिस्सा भी आयेगा. इसके लिए केंद्र सरकार से फॉरेस्ट क्लीयरेंस लेना होता है. यह लंबी व फंसने वाली प्रक्रिया है. विलंब का एक कारण यह भी है. वर्तमान में पलामू के अमानत बराज तथा हजारीबाग, गिरिडीह व बोकारो से जुड़ी कोनार सिंचाई परियोजना के लिए वन भूमि का मामला फंसा है़ .

सिंचाई परियोजनाओं की लागत (लाख में)
परियोजना संबंधित जिले कब से शुरू लागत पुनरीक्षित लागत
स्वर्णरेखा प व पू सिंहभूम, सरायकेला 1978 12899.03 661374.55
सुरू सरायकेला-खरसावां 1987 312.00 3599.00
नकटी प.सिंहभूम 1988 1367.00 3516.00
झरझरा प.सिंहभूम 1992 2450.00 4987.00
सोनुआ प.सिंहभूम 1981 830.00 8265.00
पुनासी देवघर 1982 269.00 18582.00
अजय बराज देवघर-जामताड़ा 1975 1034.58 35184.52
बटाने गढ़वा-पलामू 1976 800.00 7812.00
अपर शंख गुमला 1981 919.00 14119.00
कंसजोर रांची-गुमला 1979 866.00 5297.00
रामरेखा गुमला-सिमडेगा 1987 2017.00 5387.00
कोनार हजारीबाग-गिरिडीह-बोकारो 1975 1143.00 34838.00
केसो कोडरमा-हजारीबाग 1983 608.24 6770.90
पंचखेरो कोडरमा-हजारीबाग 1986 955.00 7568.00
अमानत बराज पलामू 1983 12540.00 34111.88
भैरवा रामगढ़-हजारीबाग 1985 2019.00 11697.00
सुरंगी रांची 1982 215.00 4117.00
गुमानी बराज साहेबगंज-पाकुड़ 1976 383.00 16258.67
परियोजना सिंचित क्षेत्र (हजार हेक्टेयर में)
स्वर्णरेखा परियोजना 236.48
कोनार योजना 62.79
बटेश्वर स्थान 4.89
अमानत बराज 25.00
उत्तरी कोयल 13.80
अजय बराज 40.51
गुमानी बराज 16.19
पुनासी जलाशय 24.00
कुल 423.66
मध्यम सिंचाई योजना
पंचखेरो जलाशय 3.08
अपर शंख जलाशय 7.07
भैरवा जलाशय 4.80
रामरेखा जलाशय 4.39
केशो जलाशय 1.66
सुरु जलाशय 4.44
झरझरा जलाशय 4.86
कंस जलाशय 2.48
सुरंगी जलाशय 2.60
नकटी जलाशय 2.25
सोनुआ जलाशय 8.08
बटाने जलाशय 1.66
कुल 49.27

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