वह शिक्षक बनने की योग्यता रखते हैं. बहस अधूरी रही. खंडपीठ ने मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 24 अगस्त की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व केंद्र सरकार की अोर से बताया गया कि पारा शिक्षकों की सेवा का नियमितीकरण करना राज्य सरकार का कार्य है. इसमें अब केंद्र की कोई भूमिका नहीं है. वहीं राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता ने खंडपीठ को बताया कि पारा शिक्षकों की नियुक्ति केंद्र सरकार की योजना के तहत की गयी है. इसका वित्तीय बोझ 60 प्रतिशत केंद्र सरकार व 40 प्रतिशत राज्य सरकार को वहन करना होता है.
याचिकाकर्ता पारा शिक्षक टेट उत्तीर्ण हैं तथा एनसीटीइ की सभी शर्तें पूरी करते हैं. प्रार्थी की अोर से टेट उत्तीर्ण पारा शिक्षकों का आंकड़ा खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि वह शिक्षक पद पर नियुक्त होने के योग्य है. पारा शिक्षक के रूप में स्वीकृत पद के विरुद्ध लंबे समय से नियुक्त है आैर सभी शर्तें पूरी करते हैं.
वैसी स्थिति में हमारी सेवा उसी कार्यरत इकाई में नियमित की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में पारा शिक्षकों को भी समान काम के बदले समान वेतन मिलना सुनिश्चित होना चाहिए. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी सुनील कुमार यादव, रंजीत कुमार जायसवाल, महेश वर्मा, अभिषेक कुमार सिन्हा, रामावतार प्रजापति, दिनेश कुमार साव, केदार नाथ महतो, विभूति नारायण सिंह, उदय कुमार गुप्ता, फारूक अंसारी, श्याम नंदन कुमार व अन्य की अोर से अलग-अलग याचिका दायर कर सेवा नियमित करने की मांग की गयी है.