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राजधानी के अस्पतालों व जांच घरों में अल्ट्रासाउंड के नाम पर चल रहा खेल टेक्नीशियन करते हैं जांच, रिपोर्ट में डॉक्टर का नाम तक नहीं लिखते

रांची : राजधानी के कई अस्पताल और जांच घर मरीज को दी जानेवाली अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में डाॅक्टर के नाम का उल्लेख नहीं करते हैं. रिपोर्ट में डॉक्टर के नाम की जगह टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें खींच दी जाती हैं. ऐसे में न तो मरीज को और न ही मरीज का इलाज करनेवाले डॉक्टर को यह पता चल […]

रांची : राजधानी के कई अस्पताल और जांच घर मरीज को दी जानेवाली अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में डाॅक्टर के नाम का उल्लेख नहीं करते हैं. रिपोर्ट में डॉक्टर के नाम की जगह टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें खींच दी जाती हैं. ऐसे में न तो मरीज को और न ही मरीज का इलाज करनेवाले डॉक्टर को यह पता चल पाता है कि अल्ट्रासाउंड किसने तैयार की है. इस मामले में स्वास्थ्य विभाग भी मौन है.

राजधानी में करीब 20 से 25 लोग हैं, जिनके पास रेडियोलॉजी में डिग्री, डिप्लोमा व अल्ट्रासाउंड में विशेषज्ञता है, लेकिन 150 से ज्यादा सेंटरों पर धड़ल्ले से अल्ट्रासाउंड किया जा रहा है. वहीं, शहर में 15-20 किमी के दायरे में कई ऐसे अस्पताल, नर्सिंग होम व जांच घर हैं, जहां डॉक्टर के बजाय टेक्नीशियन ही जांच कर रिपोर्ट दे देते हैं. ऐसे कई अल्ट्रासाउंड सेंटरों से जारी रिपोर्ट के गलत होने की बातें सामने आ चुकी हैं. इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग की ओर से ऐसे जांच घरों या अस्पतालों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.
गॉल ब्लाडर में नहीं था स्टोन, पर रिपोर्ट में लिखा स्टोन है : राजधानी के एक रेडियोलॉजिस्ट ने बताया कि उनके पास एक मरीज एक जांच घर की पुरानी रिपोर्ट लेकर आया था. उसमें गॉल ब्लॉडर में स्टोन की बात कही गयी थी. रिपोर्ट में जांच करनेवाले डॉक्टर का नाम नहीं लिखा था. कई बार जांच करने के बाद भी गॉल ब्लाडर में स्टोन नहीं मिला. डॉक्टर ने पूर्व रिपोर्ट के डॉक्टर से बात करना चाहा, लेकिन नाम नहीं होने से रिपोर्टिंग पर चर्चा नहीं हो पायी. रेडियाेलॉजिस्ट ने बताया कि ऐसे दर्जनों रिपोर्ट आते हैं, जिसमें डॉक्टर के नाम का उल्लेख नहीं होता है.
क्या कहता है नियम
इंडियन रेडियोलाॅजिकल इमेजिंग एसोसिएशन (आइआरआइए) के राज्य सचिव डॉ विनोद कुमार बताते हैं कि अल्ट्रासाउंड में यह नियम है कि जिस डॉक्टर के नाम से मशीन खरीदी गयी है, उसी को अल्ट्रासाउंड करना है. मशीन को दूसरा कोई भी व्यक्ति उपयोग नहीं कर सकता है. रिपोर्ट में जांच करने वाले डाॅक्टर का नाम स्पष्ट रूप होना चाहिए. अगर मशीन किसी और को भी प्रयोग करना है, तो सिविल सर्जन कार्यालय में इसकी जानकारी देनी होगी.
जांच के लिए है कमेटी
पीसीएनडीटी एक्ट के तहत सिविल सर्जन कार्यालय से एक कमेटी बनायी गयी है, जो राजधानी के सेंटर की जांच करती है. यह देखा जाता है कि जांच करने के लिए वैध लोग है या नहीं. रिपोर्ट जारी करते समय नियमों को पालन होता है या नहीं, लेकिन जांच के नाम पर खानापूर्ति की जाती है. टीम छह माह या साल में एक बार जांच कर एक दो सेंटर पर शो कॉज कर देती है. इसके बाद स्पष्टीकरण देकर वह पुन: जांच करने लगते हैं.
राजधानी के एक निजी जांच घर द्वारा जारी की गयी अल्ट्रासाउंड िरपोर्ट, जिसमें डॉक्टर के नाम का उल्लेख नहीं है. वहीं, इसमें जांच घर का जो रजिस्ट्रेशन नंबर लिखा गया है, उस पर भी संदेह है.
हमारे पास ऐसे दर्जनों रिपोर्ट आते हैं, जिसकी रिपोर्टिंग भी गलत होती है. इससे मरीज भ्रमित हो जाता है. ऐसे रिपोर्ट करने वाले लोगों के यहां जांच होनी चाहिए.
डॉ विनोद कुमार, राज्य सचिव, आइआरआइए

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