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कम बारिश के बावजूद अच्छी फसल
कृषि वैज्ञानिक ने कहा- सोच बदलनी होगी, नये प्रयोग करने होंगे. कम बारिश के बावजूद जल संचय करना होगा. तभी हम लड़ सकते हैं साल-दर-साल के सुखाड़-अकाल से. अजीत मिश्रा मेदिनीनगर : पलामू सुखाड़ व अकाल का स्थायी घर माना जाता है. सुखाड़ अकाल से क्या इस इलाके का नाता टूटेगा? यह सवाल लोगों के […]
कृषि वैज्ञानिक ने कहा- सोच बदलनी होगी, नये प्रयोग करने होंगे. कम बारिश के बावजूद जल संचय करना होगा. तभी हम लड़ सकते हैं साल-दर-साल के सुखाड़-अकाल से.
अजीत मिश्रा
मेदिनीनगर : पलामू सुखाड़ व अकाल का स्थायी घर माना जाता है. सुखाड़ अकाल से क्या इस इलाके का नाता टूटेगा? यह सवाल लोगों के मन में चलता रहता है. कई लोग इसे नियति मान चुके हैं. सुखाड़ व अकाल से पलामू का नाता टूट सकता है, बशर्ते इस दिशा में प्रयास किया जाये. कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि पलामू में भले ही बारिश कम होती हो, लेकिन जितनी बारिश होती है, उसका अगर संचय किया जाये, तो स्थिति बदलने में देर नहीं लगेगी.
कुछ इस तरह के प्रयास को कृषि वैज्ञानिकों ने धरती पर उतारने का भी प्रयास किया है. चियांकी के कृषि अनुसंधान केंद्र की परिधि में इस बार 24 एकड़ में सहभागी व नवीन किस्म के धान की खेती हुई है. जबकि इस बार पलामू में सुखाड़ की स्थिति है. इस परिस्थिति में भी खेती हुई, तो कैसे?
यह संभव हुआ प्रयास से और एक प्रयोग के तौर पर, ताकि इसे मॉडल बना कर पलामू के किसानों को बताया जा सके. यह प्रयोग भी अपनी जगह सफल रहा. चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ डीएन सिंह की मानें, तो पलामू की नियति सुखाड़ व अकाल नहीं है. बल्कि सजगता का अभाव भी इसे सुखाड़ की ओर ढकेलता है. कृषि अनुसंधान केंद्र में एक तालाब व एक चेकडैम बनाया गया है. बताया कि इस वर्ष जुलाई माह में 640 मिमी बारिश हुई थी.
उसी बारिश के कारण चेकडैम व तालाब दोनों में पानी पर्याप्त थे. इसी पानी से पटवन कर 24 एकड़ में धान की खेती की गयी. इसके अलावा ज्वार-बाजरा, मकई व अरहर की भी खेती हुई. 24 एकड़ में करीब साढे तीन क्विंटल धान पैदा कर सरकार को आधार बीज के लिए भेजने का निर्णय लिया गया है.
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक : चियांकी कृषि अनुसंधान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ डीएन सिंह का कहना है कि यह सही है कि लगातार वर्षापात कम हो रहा है, लेकिन जो बारिश हो रही है, उसका अगर संचय किया जाये, तो खेती के लिए पर्याप्त है.
इस विषय पर ध्यान देने की जरूरत है. 2015 में प्रयोग के तौर पर ही धान की खेती की गयी थी. दूर-दराज के किसानों को बुला कर भी दिखाया गया है, ताकि वह गांव में जाकर इस तरह का प्रयोग कर सकें.
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