समुदाय के लोग या अली, या हुसैन, या हुसैन के नारे के अलावा बीच बीच में नौहाख्वानी भी कर रहे थे. भाई बिगहा चौक पर उन्होंने जंजीरी मातम कर खुद को लहूलुहान कर लिया, जिसमें बुजुर्ग, बच्चे व युवा सभी शामिल थे.
करीब एक किमी दूर कर्बला तक ब्लेड से मातम करते हुए पहुंचे. वहां फातेहाख्वानी की व वापस लौटे. समुदाय के लोग शहीद-ए-कर्बला की याद में 40 दिनों तक गम मनाते हैं. समुदाय की महिलाएं विधवा की तरह जीवन बिताती हैं, जबकि समाज में कोई शुभ कार्य नहीं होता है. इस बीच लगातार मजलिसों का दौर जारी रहता है. जुलूस में शमीम हैदर, नेहाल हैदर, मुन्ना हैदर, हैदर हुसैन, ताहिर हुसैन, साबिर हुसैन, अख्तर हुसैन, सैयद अबरार हुसैन, सैयद लतीफ हुसैन, सैयद शदाब हैदर, सैयद शब्बीर हैदर, सैयद आकिब हुसैन, सैयद बाबर हुसैन, सैयद हैदर हसन, रवीश हुसैन, मोहम्मद हसन, राजा हुसैन, मासूम हुसैन, सैयद शकीर हुसैन के अलावा सैकड़ों लोग शामिल थे.