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अस्तित्व खोने के कगार पर सुवर्णरेखा और खरकई नदी
जमशेदपुर. उत्तराखंड हाइकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए गंगा-यमुना (नदियों) को लीगलपर्सन/जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार प्रदान करते हुए आठ सप्ताह में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश केंद्र सरकार को दिया है. यह फैसला सिर्फ गंगा-यमुना जैसी नदियों के लिए ही अहम नहीं है, बल्कि देश की कई नदियां हैं जो प्रदूषण और […]
जमशेदपुर. उत्तराखंड हाइकोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए गंगा-यमुना (नदियों) को लीगलपर्सन/जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार प्रदान करते हुए आठ सप्ताह में गंगा प्रबंधन बोर्ड बनाने का आदेश केंद्र सरकार को दिया है. यह फैसला सिर्फ गंगा-यमुना जैसी नदियों के लिए ही अहम नहीं है, बल्कि देश की कई नदियां हैं जो प्रदूषण और लगातार उपेक्षा किये जाने की वजह से अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच चुकी हैं. शहर की लाइफलाइन मानी जाने वाली सुवर्णरेखा और खरकई नदी का भी यही हाल है. नदी में लगातार गिर रहे कचरे के कारण नदी पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है.
कोल्हान में 17 स्थानों पर गिर रहा है कचरा. कोल्हान में 17 स्थान ऐसे हैं, जहां नाले की गंदगी सीधे नदी में गिर रही है. लाखों मिलियन गैलन दूषित पानी, मल-मूत्र, घर का कचरा सीधे नदी में बहा दिया जा रहा है. न तो गंदे पानी के ट्रीटमेंट का इंतजाम किया गया है, न घरेलू व कारखानों के कचरे को नदी में बहाने से पूर्व उसके ट्रीटमेंट की व्यवस्था है. जो भी अनुपयोगी लगा, उसे नदी में बहा दिया जा रहा है. अब नदी में इतना भी पानी नहीं बचा कि वह अपशिष्ट पदार्थ को बहा सके. जब हालात बदतर हो जाते हैं तो नदी की सेहत की याद आती है और सुधार के नाम पर करोड़ों खर्च किये जाते हैं.
तय मानक से चार गुणा हुआ बीओडी. अगर प्रदूषण विभाग की बात करें तो विभाग के आंकड़े नदी को खतरनाक स्थिति में बता रहे हैं. सुवर्णरेखा और खरकई नदी की बात करें तो इसकी निचली लहर में बीओडी (बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा तय मानक से चार गुणा अधिक है. कहा जा सकता है कि इन नदियों का पानी जहरीला हो गया है. अनुमान है कि जितने जल का उपयोग किया जाता है, उसके मात्र 20 प्रतिशत की ही खपत होती है. शेष 80 फीसद कचरा समेटे बाहर आ जाता है. इसे अपशिष्ट या मल-जल कहा जाता है, जो नदियों का दुश्मन है.
भले ही हम कारखानों को दोषी बताएं, लेकिन नदियों की गंदगी का तीन चौथाई हिस्सा घरेलू मल-जल ही है. अति प्रदूषित नदियों में सुवर्णरेखा और खरकई नदी शुमार है. नवरात्र में मूर्ति विसर्जन के बाद तो नदी की हालत और भी खराब हो जाती है. एक अनुमान के मुताबिक सैकड़ों एमएलडी सीवरयुक्त पानी हर रोज स्वर्णरेखा और खरकई नदी में मिल रहा है.
एक भी ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बन पाया
हालत की गंभीरता इसी से समझी जा सकती है कि नदी में 17 जगहों से सीवरलाइन के पाइप छोड़े गये हैं. इससे साफ है कि प्रदूषण विभाग के सख्त निर्देश और नदियों को बचाने की योजनाएं फाइलों तक सीमित हो गयी हैं और टनों कचरा प्रतिदिन सुवर्णरखा नदी में डाल दिया जा रहा है. इस पर अक्षेस का कोई नियंत्रण नहीं है. जमशेदपुर, मानगो, आदित्यपुर अक्षेस की ओर से अब तक इसको रोकने के लिए किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया है. दिखावे के लिए जमशेदपुर में दो ट्रीटमेंट प्लांट जुस्को की ओर से बनाया गया है. जमशेदपुर अक्षेस की आबादी 12 लाख से ज्यादा है लेकिन अक्षेस का अपना एक भी वाटर ट्रीटमेंट प्लाट नहीं है.
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