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पटमदा. अपने दयनीय हालात से मौत को गले लगाने को तैयार हैं कई सबर, छत ढही, फिर भी आशियाना वही

पटमदा : पटमदा ब्लॉक से आठ किलोमीटर दूर लछीपुर पंचायत के बांसगढ़ लोटोसिनी सबर टोला के 29 परिवार (आदिम जनजाति) आज भी पशुओं की तरह जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. सबरों ने बताया कि कभी-कभी परिवार की हालत देख मौत को गले लगाने का मन करता है. 1985 में टोला के 12 सबर परिवार […]

पटमदा : पटमदा ब्लॉक से आठ किलोमीटर दूर लछीपुर पंचायत के बांसगढ़ लोटोसिनी सबर टोला के 29 परिवार (आदिम जनजाति) आज भी पशुओं की तरह जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. सबरों ने बताया कि कभी-कभी परिवार की हालत देख मौत को गले लगाने का मन करता है. 1985 में टोला के 12 सबर परिवार को इंदिरा आवास का लाभ दिया गया था. 30 साल में सभी आवास जर्जर, आधी से अधिक दीवारें गिर गयी हैं. घरों में खिड़की दरवाजे नहीं हैं. घर पर फूस रखकर किसी तरह धूप से बच रहे हैं. बारिश से बचने की व्यवस्था नहीं है. उक्त जर्जर आवास में फिलहाल 29 परिवार (करीब 100 लोग) रहता है. आर्थिक परेशानी के कारण बच्चे व बुजुर्ग ठंड में भी बिना कपड़े के रहने को विवश हैं.
आज भी सांप, बिच्छू का शिकार कर भरते हैं पेट
इन सबर परिवारों के घर के ऊपर से बिजली का तार गुजरा है, लेकिन उन्हें बिजली नहीं मिली है. गांव में एक चापाकल है. इसमें कभी पानी निकलता है, तो कभी बंद हो जाता है.

इनका रोजगार का एकमात्र साधन जंगल है. आदिम जनजाति परिवार के लोग आज भी सांप, बिच्छू, मेढक, चूहे, कौआ, बगुला आदि पशु पक्षियों का शिकार कर पेट भरते हैं.
उपेक्षित हैं लोटोसिनी के सबर परिवार : मालूम हो कि पंचायती राज व्यवस्था के पांच वर्ष बाद भी लोटोसिनी के सबर परिवार उपेक्षित हैं. प्रत्येक वर्ष पंचायतों में प्राथमिकता के अाधार पर 50 से 60 इंदिरा आवास की सूची बनती है, लेकिन इन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा है.
सबर परिवारों की सूची
पटमदा के बांसगढ़ लोटोसिनी सबर टोला में कन्हार्इ सबर, नंदलाल सबर, समीर सबर, मिलानी सबर, अजीत सबर, पानु सबर, सवेश्वर सबर, तुरू सबर, इंद्रोजीत सबर, सुशील सबर, पुटी सबर, इशान सबर, विष्णु सबर, सुभाष सबर, धनु सबर, चैतन सबर, भरत सबर, रवि सबर, ठाकुर सबर, मुशरी सबर, राशु सबर, श्रीमती सबर, भिखु सबर, अोलिन सबर, भाषको सबर, इंद्रो सबर का परिवार शामिल है.
अधिकारी व जनप्रतिनिधि गांव में नहीं आते : समीर
समीर सबर ने बताया कि उन्हें राशन से चावल मिलता है, लेकिन रोजगार नहीं होने कारण घर नहीं चल पाता है. परिवार की महिलाएं व बच्चे दूसरों की गाय, बैल व बकरी चराते हैं. जंगल से लकड़ी, पत्ता, फल-फूल आदि चुनकर साप्ताहिक हाट बाजारों में बेचते हैं. उनकी दयनीय स्थिति देखने अधिकारी व जनप्रतिनिधि गांव में कभी नहीं आते हैं. मिलानी सबरीन ने कहा कि ज्यादातर लोग जर्जर घरों में किसी तरह रहते हैं.

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