विजय केसरी, हजारीबाग : भगवान राम के जन्मोत्सव पर महावीरी झंडा हजारीबाग में पहली बार 1918 में निकाला गया. गुरु सहाय ठाकुर, यादव बाबू वकील, जगदेव गोप, हीरा लाल महाजन, कन्हैया गोप, हरिहर प्रसाद, टीभर गोप के नेतृत्व में गोधूलि वेला में बड़ा अखाड़ा में झंडा जमा हुआ.
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और विराट हो गया जुलूस
विजय केसरी, हजारीबाग : भगवान राम के जन्मोत्सव पर महावीरी झंडा हजारीबाग में पहली बार 1918 में निकाला गया. गुरु सहाय ठाकुर, यादव बाबू वकील, जगदेव गोप, हीरा लाल महाजन, कन्हैया गोप, हरिहर प्रसाद, टीभर गोप के नेतृत्व में गोधूलि वेला में बड़ा अखाड़ा में झंडा जमा हुआ. सिर पर प्रसाद की थाल, हाथों में […]
सिर पर प्रसाद की थाल, हाथों में महावीरी झंडा, दो ढोल बजाते दो लोग आगे-आगे चल रहे थे. इस छोटे से जुलूस को बड़ा अखाड़ा से कर्जन ग्राउंड ले जाया गया. उस जुलूस ने आज ऐतिहासिक व विराट रूप ले लिया है.
तीन दिन का हुआ जुलूस
हजारीबाग में चैत नवमी व दशमी दोनों दिन यह पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई. रामनवमी का जुलूस चैत नवमी के दिन निकलता था. चैती दुर्गा का विसर्जन 10वीं को होता था.
दोनों पर्व एक दिन आगे पीछे होने से रामनवमी का जुलूस नवमी व दशमी दोनों दिन में परिवर्तन हो गया.
भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या में चैत नवमी को ही जुलूस समाप्त हो जाता है, किंतु हजारीबाग में नवमी व दशमी दोनों दिन जुलूस रहता है. वर्तमान समय में जुलूस का विस्तार एकादशी में भी तब्दील हो गया है.
छोटा हुआ बड़ा महावीरी झंडा: रामनवमी जुलूस में महावीरी झंडे 1970 तक काफी बड़े-बड़े होते थे. वर्तमान समय महावीरी झंडों की संख्या में कमी व आकार में भी छोटे हो गये हैं.
जुलूस में नगाड़ा, ढोल व बैंजों की आवाज पर सभी लोग नाचे बिना नहीं रह पाते थे. लेकिन वर्तमान समय में ये सभी पारंपरिक वाद्ययंत्र समाप्त हो गये हैं. डीजे की आवाज से परेशानी बढ़ गयी है.
लगातार तीन दिनों तक डीजे की धुन पर सवाल उठने लगे हैं. जुलूस को लोग रामनवमी मेला के नाम से पुकारते थे. चैत मास का आगमन होते लोग रामनवमी मेले का इंतजार करने लगते थे. लेकिन यह मेला अब भीड़ में खो गया है.
महासमिति का गठन, हाथी पर अध्यक्ष घूमे: 1956-57 के समय से ही चैत महारामनवमी समिति के गठन की परंपरा शुरू हुई. उस समय गणमान्य व बुद्धिजीवी लोग पदाधिकारी बनते थे.
वर्तमान समय में महासमिति में सिर्फ युवाओं की टोली रह गयी है. जब हीरा लाल महाजन महासमिति के अध्यक्ष बने थे, तब रामनवमी जुलूस में पहली बार हाथी को शामिल किया गया था. अध्यक्ष के हाथी पर बैठ कर घूमने की परंपरा समाप्त हो गयी.
जीवंत झांकी व बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं जुलूस में शामिल: 1985 के रामनवमी जुलूस में जीवंत झांकी की प्रस्तुति शुरू हुई. वर्तमान में सैकड़ों अखाड़ों द्वारा बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बना कर निकाली जा रही हैं.
रामनवमी पर्व ने पुराने कई तरीकों की परंपराओं को नये रूप में बदला है. राम हमारे पूज्य देव हैं. वे सभी के दिलों में बसते हैं. सचमुच हजारीबाग की रामनवमी बेमिसाल व ऐतिहासिक है.
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