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गड्ढे का पानी पीते हैं असुर जाति के छात्र

गुमला : बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ पर स्थित राजकीयकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय पोलपोल पाट में पढ़ने वाले विलुप्त प्राय: असुर जनजाति के 150 बच्चे गड्ढा का पानी पीते हैं. छात्र मध्याह्न भोजन स्कूल में खाते हैं, लेकिन पीने व बर्तन धोने के लिए गड्ढे में जमा पानी का उपयोग करते हैं. गड्ढा स्कूल से कुछ […]

गुमला : बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ पर स्थित राजकीयकृत उत्क्रमित मध्य विद्यालय पोलपोल पाट में पढ़ने वाले विलुप्त प्राय: असुर जनजाति के 150 बच्चे गड्ढा का पानी पीते हैं. छात्र मध्याह्न भोजन स्कूल में खाते हैं, लेकिन पीने व बर्तन धोने के लिए गड्ढे में जमा पानी का उपयोग करते हैं.
गड्ढा स्कूल से कुछ दूरी पर है. बॉक्साइट माइंस के उत्खनन से गड्ढा हुआ है, जहां बारिश का पानी जमा है. स्कूल में पानी की सुविधा नहीं है. गांव में भी पानी का साधन नहीं है, इसलिए विवशता में बारिश के जमा पानी का उपयोग स्कूल के बच्चे करते हैं.
इसकी जानकारी शिक्षा विभाग व प्रखंड प्रशासन को दी गयी है, लेकिन अभी तक स्कूल में पानी का साधन उपलब्ध नहीं कराया गया है. हालांकि अभी तक दूषित पानी पीने से किसी प्रकार की बीमारी की शिकायत नहीं मिली है. लेकिन भविष्य में बच्चों के सेहत पर इसका प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि बच्चे जिस गड्ढे का पानी पी रहे हैं. उसमें बॉक्साइट के चूर्ण का अंश है.
150 बच्चों में एक शिक्षक
स्कूल में वर्ग एक से आठ तक पढ़ाई होनी है. पर मात्र एक शिक्षक होने के कारण छह क्लास तक ही पढ़ाई होती है. इंटर तक पढ़ाई शुरू करने की घोषणा भी हुई है. शिक्षकों की कमी के कारण छात्रों की पढ़ाई बाधित हो रही है. स्कूल में 150 बच्चे हैं.
मजबूरी है दूषित पानी पीना : छात्र
स्कूल के विद्यार्थी रीना असुर, नवरी असुरी, पार्वती असुर ने कहा कि स्कूल में पानी की सुविधा नहीं है. चापानल नहीं लगाया गया है. हिंडालको कंपनी भी पानी नहीं देती है. इस कारण गड्ढे के पानी का उपयोग करते हैं. पानी के अलावा संसाधन भी नहीं है. स्कूल में एक ही शिक्षक हैं. आठ तक पढ़ाई होनी थी, पर एक से छह क्लास तक ही पढ़ाई होती है.
पानी खोजना पड़ता है : एचएम
स्कूल के एचएम टिपुन असुर ने कहा कि यहां कोई सुविधा नहीं है. कई बार तो मुझे बैठक में जाना पड़ता है, तो स्कूल की रसोईया ही बच्चों को पढ़ाती है. हिंडालको कंपनी की ओर से एक शिक्षिका को मानदेय पर रखा गया है. पानी की भारी किल्लत है. मध्याह्न भोजन बनाने के लिए पानी खोजना पड़ता है.
शिक्षा विभाग को चापानल नहीं लगाना है. कोई फंड भी नहीं है. पीएचइडी या प्रखंड से चापानल लगाना है. ऐसे स्कूल की जो समस्या है, वह विकराल है़ इसे दूर किया जायेगा़.
एसडी तिग्गा, डीएसइ, गुमला
स्कूल में चापानल लगाने के लिए टेंडर निकाला गया था. वहां नया चापानल लगाया जायेगा. स्कूल के सामने जो गड्ढा है, उसे कुआं को रूप देकर पानी को शुद्ध किया जायेगा.
रविंद्र गुप्ता, बीडीओ, बिशुनपुर

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