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नक्सलियों के गढ़ में टमाटर की खेती ने बदली दर्जनों गांव की तसवीर, महिलाएं हो रहीं आत्‍मनिर्भर

।। दुर्जय पासवान ।। गुमला : नक्सलियों का खौफ और पलायन की मजबूरी ने जिंदगी को बदत्तर बना दिया था. घर का चूल्हा जलाने के लिए सोचना पड़ता था. बच्चों की शिक्षा लोगों को खाये जा रही थी. 100 रुपये के लिए किसानों को सोचना पड़ता था, लेकिन बदलते समय ने महिला किसानों को आज […]

।। दुर्जय पासवान ।।

गुमला : नक्सलियों का खौफ और पलायन की मजबूरी ने जिंदगी को बदत्तर बना दिया था. घर का चूल्हा जलाने के लिए सोचना पड़ता था. बच्चों की शिक्षा लोगों को खाये जा रही थी. 100 रुपये के लिए किसानों को सोचना पड़ता था, लेकिन बदलते समय ने महिला किसानों को आज गरीब मजदूर से मालिक बना दिया है. चंद रुपयों के लिए तरसने वाली महिलाएं आज हजारों रुपये कमा रही हैं.
हम बात कर रहे हैं गुमला जिला के 12 और रायडीह प्रखंड के उन 10 गांव की सैकड़ों महिला किसानों की, जिन्होंने अपने बूते न घर की हालत बदली, बल्कि गांव से निकल राज्य की बड़ी सब्जी मंडियों में अपनी धमक दिखायी है.
यह सब संभव हुआ है, टमाटर की खेती से. टमाटर की खेती ने 22 गांवों की तसवीर बदल दी है. महिला किसान आर्थिक रूप से मजबूत हुई हैं. पहले फेज में इन 22 गांवों में करीब पांच हजार किलो (पांच टन) टमाटर की बम्पर पैदावर हुई है. प्रदान संस्था की पहल पर महिला किसानों ने इन टमाटरों को कोलकात्ता व ओड़िशा राज्य के मंडियों में बिक्री के लिए भेजा है. बड़ी मंडी के कई व्यापारी खुद गुमला आकर महिला किसानों से टमाटर खरीदकर ले गये.
टमाटर की क्वालिटी के अनुसार 18 से 20 रुपये प्रतिकिलो की दर से सभी टमाटरों को बेचा गया. किसान सुमन खड़िया व हिलारिया टेटे के अनुसार पांच टन टमाटर खेत में लगे फसल से पहली तोड़ाई में प्राप्त हुआ है. अभी दूसरी और तीसरी तोड़ाई बची हुई है. किसानों को उम्मीद है कि अभी और 10 से 12 टन टमाटर खेत से निकलेंगे. इसके लिए भी बाजार तैयार है और खरीदारी व्यापारी भी गुमला की टमाटर पर नजर लगाये हुए हैं.
* गरीबी को मात दे, महिलाएं बन रही कृषि उद्यमी
गुमला के 12 और रायडीह प्रखंड के 10 गांव की महिला किसानों को संस्था ने नयी राह दिखायी है. गुमला के खरका, पोकमा, छोटाखटंगा, बसुवा, फोरी, जुंगाटोली, चुहरू, पंडरिया, भरदा, केसीपारा, कलिगा, धनगांव और रायडीह प्रखंड के कोंडरा, कोब्जा, भींजपुर, मोकरा, जोकारी, सिलम, नवाटोली, कोनकेल, खटखोरी, भलमंडा गांव के महिला किसान टमाटर की खेती कर आर्थिक रूप से मजबूत हुई हैं.
मोकरा गांव की सुमन खड़िया, जोकारी गांव की हिलारिया टेटे, छोटाखटंगा गांव की पैने देवी, खरका गांव की आशा देवी, पंडरिया की विनीता खड़ियाईन, छोटाखटंगा गांव की राधिका देवी, कोनकेल गांव की मुक्तिदानी कुजूर, कोब्जा गांव की जगरानी मिंज ने कहा कि संस्था के सहयोग से अब गांव की महिलाएं कृषि के क्षेत्र में बेहतर काम कर रही हैं.
कई महिलाएं खेतीबारी कर महिला उद्यमी बन गयी हैं. संस्था के तकनीकी पदाधिकारी राहुल कुमार ने कहा कि करीब पांच हजार किलो टमाटर हुआ है. गुमला बाजार में इतना टमाटर की खपत नहीं हो सकती थी. इसलिए ओड़िशा राज्य के राउरकेला, कोलकाता, झारखंड राज्य के जमशेदपुर व रांची जैसी बड़ी मंडियों में टमाटर को बेचा गया है. इसबार टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च व बैगन के 50 लाख गाच्छी तैयार किया गया है.
पहले गांव में कुछ नहीं था. घर के पुरुष कमाते थे तो खाते थे. कई बार तो मजदूरी नहीं मिलने पर घर का चूल्हा नहीं जलता था. काम के लिए दूसरे राज्य जाना पड़ता था. लेकिन संस्था ने हम महिलाओं को खेतीबारी से जोड़ा. आज हम दो महीने की मेहनत कर टमाटर की खेती कर मजबूत हुए हैं. मिर्चा, शिमला मिर्च, बैगल, गोभी सहित अन्य सब्जी की भी खेती कर रहे हैं.
* राधिका देवी, महिला किसान, छोटाखटंगा
टमाटर की खेती करने में 2500 से 3000 रुपये खर्च है. लेकिन इससे कमाई 20000 से 25000 हजार रुपये तक है. महिलाओं में कुछ करने का जज्बा था. घर की खराब स्थिति से भी उबरना चाहते थे. इसलिए महिलाओं ने समूह बनाकर टमाटर की खेती की. आज 200 से अधिक महिला किसान एक खेती में 20 से 25 हजार रुपये कमा रहे हैं.
राहुल कुमार, तकनीकी पदाधिकारी, प्रदान

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