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भरनो में दुर्गा पूजा का इतिहास 106 वर्ष का, हिंदू, मुसलिम मिल कर मनाते थे त्योहार

सुनील रवि, भरनो : भरनो में दुर्गा पूजा का इतिहास 106 वर्ष का है. प्रखंड के हरिजन मुहल्ला में 1912 में सर्वप्रथम दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी. मुहल्ले के सहदेव मिश्र, रामेश्वर मिश्र व दुर्गा मिश्र ने मिल कर प्रखंड मुख्यालय की सरकारी भूमि पर पूजा शुरू करायी थी. पूजा के समय गांव में […]

सुनील रवि, भरनो : भरनो में दुर्गा पूजा का इतिहास 106 वर्ष का है. प्रखंड के हरिजन मुहल्ला में 1912 में सर्वप्रथम दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी. मुहल्ले के सहदेव मिश्र, रामेश्वर मिश्र व दुर्गा मिश्र ने मिल कर प्रखंड मुख्यालय की सरकारी भूमि पर पूजा शुरू करायी थी. पूजा के समय गांव में मेला का आयोजन किया जाता था, जिसमें प्रखंड के सभी गांवों के सैकड़ों लोग भाग लेते थे.
इसके बाद डोंबा गांव में रांची हिंदपीड़ी निवासी कोल्हा मल्हा द्वारा 1950 में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी. इनके नेतृत्व में लगातार तीन वर्षों तक मूर्ति बनाने का खर्च दिया जाता रहा. उस समय मूर्ति की कीमत लगभग 150 रुपये थी. गांव के हिंदू व मुस्लिम मिल कर त्योहार मनाते थे. जिसमें साफ सफाई का खर्च गांव के हनीफ गंझू, पूजा का खर्च महेश चौधरी, अतिथि स्वागत का कार्य गुंदन महतो व आदिवासी नृत्य (खोड़हा नृत्य) सुमेर पहान के नेतृत्व में होता था. पूजा में कोताही बरतने वालों पर गांव में पंचायत लगा कर कर पांच रुपये का अर्थदंड लगाया जाता था.
पूजा का सारा खर्च उस समय मात्र 400 रुपया था. इसके अलावा 1960 में प्रखंड के बाजारटांड़ में शिवदत्त मिश्र, 1980 में ब्लॉक चौक में गौतम मिश्र व अनिल केसरी के नेतृत्व में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी. उस समय 400-500 रुपये में संपन्न होने वाला पूजा अब अब लाखों रुपये में होता है.
सिसई में दारोगा साहब ने शुरू करायी थी पूजा
सिसई प्रखंड में दुर्गा पूजा का इतिहास 68 वर्षों का है. यहां वर्ष 1950 में निवर्तमान दारोगा बैजनाथ प्रसाद के नेतृत्व में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी थी. थाना परिसर में अंबिका प्रसाद, भगवान दास अग्रवाल, हुड़दंगी साव, मुंशी साहू व साधु साहू ने बैठक में दुर्गा पूजा मनाने का निर्णय लिया था. चंपा भगत ने दुर्गा पूजा के लिए भूमि दान में दी, जहां आज भी धूमधाम से दुर्गा पूजा महोत्सव होता है.
दुर्गा पूजा के लिए कोलकाता से मूर्ति लायी गयी थी. शुरुआती समय में पुजारी लोकनाथ षाडंगी द्वारा पूजा करायी जाती थी. इसके बाद वर्ष 1954 में दारोगा के रूप में जलील अख्तर ने सिसई में योगदान दिया. इनके नेतृत्व में हर वर्ष पूजा होती थी. बेल पूजा थाना परिसर में होती है. पूजा स्थल पर वर्ष 1950 से 1982 तक नवमी के दिन मेला का आयोजन किया जाता था. पूजा में बरगांव की टीम द्वारा अखंड हरि कीर्त्तन का आयोजन किया जाता था.
इसके अलावा 1966 में पुसो गांव में जमींदार प्रताप ओहदार के नेतृत्व में, डाड़हा (1971) में छल्लू साहू व बहुरन साहू, भदौली कुदरा (1985) में राम शरण जायसवाल, मुरगू (1986) में विश्वनाथ जायसवाल, प्रकाश जायसवाल, सरजू साहू, गणपति सिंह, हेमंत प्रसाद सोनी, नगर (1995) में डॉक्टर गंदुर राम, नीरपति देवी, मनीनाथ उरांव, छारदा (1999) में जुबी उरांव, नंद किशोर नाथ शाहदेव, नागफेनी (2000) में नीलांबर साहू, हरि साहू, महावीर साहू, बसंत साहू, धनपत साहू, बरगांव (2007) में सेवानिवृत्त शिक्षक राम सागर साहू, रामपाल साहू, पिलखी मोड़ (2009) में श्याम सुंदर महतो व संदीप महतो के नेतृत्व में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी थी. इन गांवों में आज पारंपरिक खोड़हा व नागपुरी गीत-नृत्य व कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं.

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