सूत्रों के अनुसार 2008 से 2011 के बीच डीसीएलआर कोर्ट से अधिकांश भू-दान के मामले में फैसला आया है, इस दौरान भू-दान कार्यालय द्वारा पर्याप्त साक्ष्य नहीं सौंपे जाने की वजह से भू-दान महायज्ञ कमेटी कई केस में हार गयी थी.
डीसीआरएल कोर्ट से कई लोगों को इसमें भू-दान पट्टा भी दिया गया था. साक्ष्य के अभाव में आपत्ति नहीं किये जाने पर शहर के कई रसूखदारों को भू-दान में जमीन मिल गयी थी. बताया जाता है कि जमींदारी प्रथा उन्नमूलन से पहले कई बड़े जमीन मालिकों ने गरीबों के लिए जमीन भू-दान महायज्ञ कमेटी को दान में दी, लेकिन भू-दान कार्यालय के कर्मियों की मिलीभगत से उनके वंशजों ने भी हाल के दिनों में भू-दान का पट्टा प्राप्त कर लिया. इससे जुड़े कई दस्तावेजों में भी हेरफरे की पूरी संभावना है.