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प्रवचन::: पिरामिड को पवित्र स्थल माना गया

अनेक पाश्चात्य संस्थाएं जिनमें रोसिक्रूसियन तथा फ्रीमेसन भी शामिल हैं, जो मूल रूप से अपने को मिस्त्र का बताते हैं. उनका मत है कि प्राचीन मिस्त्र में ये विशाल पिरामिड उच्च ध्यान में लोगों को दीक्षित करने के पवित्र स्थल थे. हजारों वर्षों तक आध्यात्मिक शिक्षक तथा गुरुजन पूरे विश्व के चुने हुए आध्यात्मिक साधकों […]

अनेक पाश्चात्य संस्थाएं जिनमें रोसिक्रूसियन तथा फ्रीमेसन भी शामिल हैं, जो मूल रूप से अपने को मिस्त्र का बताते हैं. उनका मत है कि प्राचीन मिस्त्र में ये विशाल पिरामिड उच्च ध्यान में लोगों को दीक्षित करने के पवित्र स्थल थे. हजारों वर्षों तक आध्यात्मिक शिक्षक तथा गुरुजन पूरे विश्व के चुने हुए आध्यात्मिक साधकों को आध्यात्मिक, आत्मिक तथा प्राण-ऊर्जा के पुनर्निर्माण की शिक्षा देते थे जो क्रियायोग से बहुत कुछ मिलती-जुलती थी. इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च ध्यान तथा आध्यात्मिक जीवन के लिए अत्यावश्यक तत्व प्राण-ऊर्जा के रूपांतरण, संरक्षण, नियमन का प्रशिक्षण दिया जाता था. ऐसा लगता है कि पिरामिडों की प्राण-ऊर्जा-निर्माण की अपार क्षमता का लाभ उपयुक्त साधकों में चक्रों तथा अतीन्द्रिय मार्गों के जागरण तथा अतिरिक्त प्राण-ऊर्जा के उत्पादन के लिए किया जाता था. प्राचीन मिस्त्र में आध्यात्मिक दीक्षा का अर्थ व्यक्ति के स्नायु-संस्थान तथा मन की प्राण-ऊर्जा को पिरामिडों में संचित ब्रह्माण्डीय शक्ति के साथ समस्वर करना था.

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