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नहीं बुझी शहरवासियों की प्यास

देवघर: साल 2014 समाप्त होने में महज कुछ दिन शेष बचे हैं. बावजूद इसके जिले का पेयजल व स्वच्छता विभाग की कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतरी. विभागीय पदाधिकारियों की देखरेख में पिछले कई वर्षो से करोड़ों की लागत से शहरी जलापूर्ति योजना का काम चल रहा है. मगर अब तक पूर्ण रूप से धरातल […]

देवघर: साल 2014 समाप्त होने में महज कुछ दिन शेष बचे हैं. बावजूद इसके जिले का पेयजल व स्वच्छता विभाग की कई योजनाएं धरातल पर नहीं उतरी. विभागीय पदाधिकारियों की देखरेख में पिछले कई वर्षो से करोड़ों की लागत से शहरी जलापूर्ति योजना का काम चल रहा है. मगर अब तक पूर्ण रूप से धरातल पर उतर नहीं सका है.

हालांकि विभागीय निर्देश पर योजना का काम करने वाले संवेदक कंपनी आइवीआरसीएल के कर्मियों व मजदूरों ने अंडर ग्राउंड पाइप डालने के नाम पर जुलाई माह में विश्व प्रसिद्ध श्रवणी मेले के दौरान शहर की सड़कों पर जगह-जगह गड्ढे खोदकर कबाड़ा कर दिया था.

बारिश की तेज बौछारों व सड़कों में गड्ढा होने की वजह से स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों, महिलाओं व बुजुर्गो का आवागमन दूभर हो गया था. जगहृ-जगह मिट्टियों के ढेर व कीचड़ से मेले के आयोजन पर प्रश्नचिन्ह सा लग गया था. ऐसे में प्रशासनिक पदाधिकारियों की तल्खी देख विभाग ने आनन-फानन में पाइप डालने का काम पूरा कर किसी तरह से सड़क को भरने का काम किया. हालांकि शहरवासी इस बीच एक माह तक काफी परेशानी ङोलते रहे.

यह सिलसिला अब भी समाप्त नहीं हुआ है. बल्कि बीच-बीच में पानी टंकी मोड़, मंदिर मोड़ व झौंसागढ़ी मुहल्ला, बाजला चौक के समीप कास्टर टाउन मुहल्ले के इलाके में पाइप डालने के नाम पर गड्ढा खोदने का क्रम अब भी जारी है. योजना को पूरा करने के लिए जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक पदाधिकारियों व विभागीय पदाधिकारियों की ओर से लगातार दबाव बनाया गया है. मगर योजना पूरी न हो सकी. शहरवासी अब भी पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं. जबकि जिले के विभागीय पदाधिकारियों ने 15 नवंबर तक योजना को पूरा कर लेने की घोषणा की थी. ज्ञात हो योजना को दो जोन में बांट कर पूरा करना था.

निर्मल भारत अभियान का भी बुरा हाल

कमोवेश यही आलम पेयजल विभाग की ओर से चलाये जा रहे निर्मल भारत अभियान का भी है. अभियान के तहत एनजीओ के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर लोगों को जागरूक बना कर उन्हें खुले में शौच करने से रोकने का प्रयास किया गया. उसके बाद इच्छुक ग्रामीण की जमीन पर शौचालय निर्माण की योजना सालभर तक चलती रही. मगर कई गांवों में शौचालय निर्माण के नाम पर ग्रामीणों से पैसे भी लिये गये. मगर उनका शौचालय नहीं बना. नतीजा विभाग की यह योजना पूर्ण रूप से धरातल पर न उतर सकी. इससे ग्रामीणों में विभागीय योजना के प्रति मायूसी देखी जा रही है.

नहीं बदली तसवीर

शहर में कुछ नहीं बदला. मगर जो नहीं बदला. वो है पेयजल व स्वच्छता विभाग के कारण शहरवासियों की किस्मत. लोग आज भी इस कनकनाते ठंड में सुबह-सुबह उठ कर सबसे पहले सड़क किनारे लगे टैप (सरकारी नल) या पड़ोस के चापानल में अपने परिवार के लिए पानी भरते आसानी से देखे जा सकते हैं. जबकि करोड़ों रुपये की योजना से शुरू हुए अति महत्वाकांक्षी शहरी जलापूर्ति योजना अब भी अधूरी पड़ी हुई है.

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