वोट देबो तबै ते काम होताे अब केकरोस नैय डरबो…

दो संकल्प … जो दिखाते हैं मजबूत लोकतंत्र की धार कभी था नक्सली खौफ अब सलैया के लोगों में वोटिंग का उत्साह अमरनाथ पोद्दार, देवघर : मोहनपुर प्रखंड स्थित चांदन नदी पार 11 गांवों के दो बूथों में 10 वर्ष पहले कभी संगीनों के साये में मतदाता सहमे-सहमे वोट देते थे. 25 जनवरी 2009 में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 16, 2019 9:27 AM
  • दो संकल्प … जो दिखाते हैं मजबूत लोकतंत्र की धार
  • कभी था नक्सली खौफ अब सलैया के लोगों में वोटिंग का उत्साह
अमरनाथ पोद्दार, देवघर : मोहनपुर प्रखंड स्थित चांदन नदी पार 11 गांवों के दो बूथों में 10 वर्ष पहले कभी संगीनों के साये में मतदाता सहमे-सहमे वोट देते थे. 25 जनवरी 2009 में सलैया गांव से कुछ दूरी पर पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में एक नक्सली की मौत के बाद पूरा इलाका भयभीत था.
अक्सर नक्सलियों की बैठक, गतिविधियां, ठेकेदार से लेवी की घटना समेत चुनाव से ठीक पहले पोस्टरबाजी की दर्जनों घटनाओं से दहशत में था. आज इस इलाके के 11 गांव के लोग अब भय नहीं, बल्कि पूरे उत्साह के साथ वोट देने को तैयार हैं. पत्तल का दोना बनाने वाली 65 वर्षीय रानी मुरमू कहती है कि वोट देबो तबै ते काम होताे….अब हमरानी केकरोस नैय डरबो..
इन गांवों में है उत्साह : बूथ संख्या 317 में पड़ने वाले मचना, गजण्डा, सलैया, जीतमहला, तिलैया, कदरसा, रमरथिया, बैजूडीह व बैजूबसार गांव के 918 और बूथ संख्या 316 में पिपरा गांव के 848 मतदाता इस बार मतदान को लेकर खासे उत्साह हैं.
पिछले दस वर्षों में इस सीमावर्ती इलाके में फोकस प्राथमिक सुविधाएं बढ़ायी गयी है. नदी पर पुल के अलावा पिपरा से सलैया व बैजूडीह तक सड़कें बन गयी हैं. हर गांव में बिजली पहुंच गयी है. आज भी पुलिस की अभिरक्षा में चांदन नदी पर दूसरे पुल का काम चल रहा है.
दस वर्ष पहले इस इलाके में प्रत्याशी भी चुनाव प्रचार करने के लिए जाने में कतराते थे, अब तो रात में भी प्रत्याशी चुनाव प्रचार करते हैं. पुरुष के साथ-साथ महिलाएं भी वोट देने को उत्सुक हैं.
वोटर्स ने कहा
कइ वर्षों तक मेरे इलाके में भय का माहौल था. घटनाएं बिहार सीमा की ओर जंगलों में होती थी, लेकिन दहशत इस इलाके में फैला रहता था. चुनाव में कड़ी सुरक्षा रहती थी. अब कोई डर नहीं है. कई सुविधाएं बढ़ गयी है. हमलोग निडर होकर अपना मतदान करेंगे.
– जीतलाल हांसदा, अध्यक्ष सलैया स्कूल
पहले पुलिस बलों की संख्या रहने के बाद भी वोट देने में डर लगता था. पुलिस के सामने भी जाने से कतराते थे. शाम होते ही घर घुसना पड़ता था. अब तो सुंदर सड़क बन गयी है. गांव तक गाड़ी भी आती है. वोट निश्चित तौर पर देंगे, ताकि हमारे क्षेत्र में विकास होगा.
– बाबूमनी किस्कु
पहले लगातार नक्सली गतिविधियों से पुलिस की छापेमारी होती थी, युवाओं में डर सा माहौल था. कई निर्दोष युवा न फंस जाये, इसलिए डर से दूसरे प्रदेश में कमाने चले जात तो थे. लेकिन डर का माहौल नहीं है. अधिकांश युवा अपने घर काम करने लौट आये हैं. वोट देने में अब कोई भय नहीं है.
– अनिल मरांडी
हमारे इलाके में कोई असामाजिक गतिविधियों में नहीं था, लेकिन भय व दहशत का माहौल बना दिया गया था. चुनाव में कड़ी सुरक्षा रहती थी. अब सुरक्षा रहे या नहीं, बावजूद हमलोग भयमुक्त होकर अपना मतदान करेंगे पूरी उत्साह के साथ. अब रोज प्रत्याशी व समर्थक भी प्रचार में आते हैं.

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