बोकारो: अन-धन लक्ष्मी घर आऊ, दरिद्रा बाहर जाऊ.. मंत्र से घर की वृद्ध महिला अपनी कुल देवी भगवती को घर में प्रवेश करा रही हों. पूरे दिन के व्रत के बाद संध्या के प्रथम पहर में घर-आंगन को लीप कर अष्टदल कमल के अल्पना निर्माण में दिखें तो यह मिथिला का प्रसिद्ध कोजागरा उत्सव के आने का सूचक है. इस बार कोजागरा उत्सव 18 अक्तूबर को मनाया जायेगा.
कोजागरा की ऐतिहासिकता सम्मत है. यह मिथिला की संस्कृति, कलात्मक, आध्यात्मिक परंपराओं का प्राचीन पर्व है. नव विवाहिता के यहां यह उत्सव विशेष रूप से मनाया जाता है. क्रीड़ा तथा मांगलिक अभिषेक व कुटुंब जनों का मिलन परम आह्लादकारी होता है. इस दिन मिथिला के प्रत्येक घरों में लक्ष्मी पूजन तथा कुलदेवी भगवती को विधिपूर्वक प्रवेश कराया जाता है.
कन्या पक्ष से आता है उपहार व भोज्य पदार्थ : मिथिला में कोजागरा अपने विभिन्न आयामों से युक्त हो जन मानस में व्याप्त हो जाता है. नव विवाहित लड़के के यहां कन्या पक्ष से प्राप्त उपहारों व भोज्य पदार्थो से कोजागरा उत्सव मनाया जाता है. ससुराल पक्ष से प्राप्त डाला की सजावट की प्रशंसा उनके कलात्मकता के आधार पर की जाती है. पुरहर पातिल कलश रखा जाता है. पातिल में जलता हुआ दीपक शुभ का द्योतक है.
चांदी की कौड़ी से पचीसी खेलने का प्रचलन : कोजागरा उत्सव में चांदी की कौड़ी से पचीसी खेलने का प्रचलन है. पान, मखान, नारियल, केला, दही, सुपारी, घुनसि पाग, जनेऊ, दक्षिणी आदि के कृत्रिम पेड़ दर्शनीय होते हैं. माता-बहनें पान-धान-दुभि से वर को अंगोछती है. दही से चुमावन करती हैं. पातिल के दीप से गाल सेका जाता है. ब्राह्मण दुर्वाक्षत देते हैं. दुल्हा सभी श्रेष्ठ जनों का आशीर्वाद लेते हैं.
भगवती की अगुआई करती हैं घर की वृद्धा : भगवती को सभी घरों में प्रवेश कराया जाता है. घर की वृद्धा लोटा में जल भर कर घर में बनी मुख्य अल्पना तक भगवती की अगुवाई करती हैं. वहां जलपूरित लोटे में कलश के ऊपर तांबे की सराई में चांदी के एक सिक्के को रख कर लक्ष्मी का पूजन करती है. प्रसाद का वितरण होता है. कोजागरा उत्सव के दौरान मिथिला वासी के घर-घर में उत्सव जैसा माहौल रहता है.