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सपना अभी भी!

– हरिवंश – धर्मवीर भारतीजी की एक कविता की पंक्ति है, ‘सपना अभी भी…’. दूध पी कर हुई बच्चों की मौत की पृष्ठभूमि में झारखंड स्थापना का आठवां साल है यह. पिछले आठ वर्षों की यात्रा से स्पष्ट है कि झारखंड एक ‘फेल्ड स्टेट’ है. फंक्शनल एनार्की (जीवंत अराजकता). गवर्नेस ब्रेकडाउन (अशासन की स्थिति). स्तब्ध […]

– हरिवंश –
धर्मवीर भारतीजी की एक कविता की पंक्ति है, ‘सपना अभी भी…’. दूध पी कर हुई बच्चों की मौत की पृष्ठभूमि में झारखंड स्थापना का आठवां साल है यह. पिछले आठ वर्षों की यात्रा से स्पष्ट है कि झारखंड एक ‘फेल्ड स्टेट’ है.
फंक्शनल एनार्की (जीवंत अराजकता). गवर्नेस ब्रेकडाउन (अशासन की स्थिति). स्तब्ध करनेवाला भ्रष्टाचार. दिशाहीन और खुदगर्ज राजनीति…. इन सबके बीच एक सुंदर और बेहतर झारखंड की कल्पना सपना ही तो है. दिन में तारे देखने जैसा. बिना सपने के न जीवन है, न समाज, न राज्य और न देश. इसलिए बीमार और रुग्ण राज्यों में भी सपना देखना जरूरी है.
क्या झारखंड के पास कोई सपना है? अगर सपना है, तो वह क्या है? हां, झारखंड के पास एक अदभुत और दुनिया को चमत्कृत कर देनेवाला सपना है. पर सपने को यथार्थ में बदलना सबसे कठिन चुनौती है.
आंदोलन करना, प्रदर्शन, संघर्ष, विरोध, आलोचना, आज भारतीय और झारखंडी समाज में सबसे आसान हैं. उतना ही कठिन है, करने की चुनौती. कुछ बनने का संकल्प. झारखंड के सपनों को धरती पर उतारने की जिद. झारखंड का सपना क्या हो सकता है?
झारखंड की बुनियाद में आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की बात होती थी. इस सभ्यता और संस्कृति में वह ताकत और क्षमता है, जो एक नयी रोशनी दे सकती है. दुर्भाग्य है कि जो झारखंडी नेता सत्ता में आते हैं, उनका मकसद अन्य नेताओं की तरह बनना ही है.
वे झारखंडी सपनों के अनुसार समाज गढ़ने का दर्शन नहीं विकसित करते. आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, पर्यावरण संकट. विशेषज्ञ कहते हैं कि इस संकट में दुनिया के अस्तित्व मिटने की संभावना है. आदिवासी समाज प्रकृति से तादात्म्य बना कर जीता है.
गांधीजी ने शायद भारत के ऐसे ही गांवों से सीखा होगा, जरूरत के अनुसार प्रकृति का उपयोग. लोभ के अनुसार नहीं. यह सूत्र झारखंड के विकास का नया माडल बन सकता है, जो प्रकृति के साहचर्य में जीवन की बात करे. आज दुनिया ऐसे माडल की तलाश में है. झारखंड का आदिवासी समाज, लोभ और लालच से संचालित नहीं रहा है.
हालांकि पिछले आठ वर्षों के अनुभवों ने स्पष्ट कर दिया है कि अधिसंख्य झारखंडी नेता और इनके समर्थक, लोभ और लालच की राजनीति से ही प्रेरणा ग्रहण कर रहे हैं. पर अब भी सामान्य आदिवासी जनता या टाना भगत जैसे लोगों का समूह या बिरसाइत लोगों का पवित्र परिवार जैसे तत्व हैं. इस समाज से भारत एक नया राजनीतिक दर्शन पा सकता है. लोभ और लालच की राजनीति के विकल्प में, एक साफ-सुथरी, बेहतर और विश्वसनीय राजनीति भी पनप सकती है.
मारंग गोमके जयपाल सिंह रहे हों, कार्तिक उरांव हों, ललित उरांव हों, या अन्य झारखंडी मंत्री-राजनेता. ये ईमानदारी की मिसाल रहे हैं. चाहे वे जिस दल या समूह से हों. इसी समाज में अनेक आदिवासी मंत्री, सांसद, विधायक और जानेमाने राजनेता हुए, जो लंबे समय तक महत्वपूर्ण पदों पर रहे. पर घर लौट कर, हल जोत कर जीवन गुजारा. सादगी और ईमानदारी की यह मिसाल आज दुर्लभ है. आज देश एक नयी, साफसुथरी और ईमानदार राजनीति की तलाश में है.
झारखंड इस नयी राजनीति का नायक या प्रतिनिधि बन कर पूरे देश की रहनुमाई कर सकता है. एक स्पष्ट तथ्य है, भारत की राजनीति इसी तरह बेईमानी की राजनीति रही (जो आज है), दलालों की राजनीति रही, तो यह देश नहीं बचेगा. इस अर्थ में झारखंड देश बचाने की अगुवाई कर सकता है.
झारखंड अगर पहल करे, तो बात यहीं तक नहीं रुकेगी. आज दुनिया संकट में है. दुनिया के सामने विकास के दो या तीन ही माडल थे. पूंजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद. तानाशाही व्यवस्था या निरंकुश शासन व्यवस्था की बात अलग छोड़ दें. आज साम्यवाद कहां है? रूस के बिखरने के साथ ही दुनिया में साम्यवाद की नींव उखड़ गयी. अमेरिका के इस अर्थसंकट ने पूंजीवाद को छिन्न-भिन्न कर दिया है. न साम्यवाद बचा, न पूंजीवाद. समाजवाद तो पहले ही निष्प्राण हो चुका था. इन सभी वादों या व्यवस्था की विफलता के मूल में लोभ, लालच और भ्रष्टाचार है.
अमेरिका, ब्रिटेन या पूंजीवाद के प्रतीक देशों का दर्शन है, समृद्ध भौतिक जीवन. इस जीवन प्रणाली में माना जाता है कि ‘लक्जरी’ (विलासिता) मनुष्य की मन:स्थिति का हिस्सा हो जाती है. फिर यह लक्जरी आवश्यकता बन जाती है. इस तरह श्रम से आप कमायें या न कमायें, पर भोग का जीवन भूख बन जाती है. यही भूख, लालच, भ्रष्टाचार और लोभ की जड़ में है. आज भारत या झारखंड इसी रास्ते पर हैं.
साम्यवादी प्रणाली भी इसी लोभ, लालच और भ्रष्टाचार से गयी. साम्यवादी दार्शनिकों ने माना कि साम्यवाद में शासकों का एक नया वर्ग उभरा, जो भोग-विलास, लोभ-लालच से संचालित था. और यह व्यवस्था भी इसी कारण गयी. उल्लेखनीय तथ्य है, यूगोस्लाविया के बड़े नेता और साम्यवादी चिंतक मिलान ज जिलास ने साम्यवाद के उदय के दिनों में ही न्यू क्लास की बात की. उनकी विश्व मशहर पुस्तक उन्हीं दिनों आयी,’द न्यू क्लास’, जिसमें साम्यवाद में उभरे नये वर्ग की बात की गयी.
स्पष्ट है कि दोनों राजनीतिक प्रणालियां, पूंजीवाद या साम्यवाद के पतन के मूल में असीमित लोभ, लालच और भ्रष्टाचार ही हैं. झारखंड का आदिवासी समाज शुरू से ही एक बेहतर जीवन दर्शन से संचालित रहा है. अगर झारखंड की राजनीति इस जीवन दर्शन को, अपना राजनीतिक दर्शन माने, तो दुनिया को एक नया विकास माडल मिल सकता है.
यह विकास माडल गांधी के गांववाद पर आधारित होगा. बहुत पहले गांधी दर्शन को निरूपित करने वाले प्रो. जे. सी. कुमारप्पा ने एक पुस्तक लिखी ‘कैपिटलिज्म, सोशलिज्म एंड विलेजिज्म’. इस गांववाद के तहत कृषि, उद्योग, सामूहिक रहनसहन पर आधारित अर्थप्रणाली विकसित हो सकती है.
आज भारत की राजनीति में वाम ताकतों और दक्षिण ताकतों में महज मात्रा का ही फर्क रह गया है. कोई बुनियादी भेद नहीं रहा. सबका आर्थिक विकास माडल एक है. यह सही है कि आज नया विकास माडल गढ़ना, दुनिया के सबसे कठिन कामों में से पहला कठिन काम है. पर यही संकट एक अवसर भी है, नये समाधान की. इस नये प्रयास के तहत झारखंड में क्या-क्या हो सकता है? यह जानने के पहले यह जरूर जान लें कि झारखंड को पिछले आठ वर्षों में विकास की हर कसौटी पर सबसे पीछे धकेल दिया गया है.
सरकारी आंकड़े चाहे जो भी कहें. अन्नपूर्णा कार्यक्रम हो या अंत्योदय या इंदिरा आवास या नरेगा (जो गरीबों के लिए है) इन कार्यक्रमों में झारखंड सबसे पीछे और फिसड्डी है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में देश का सबसे बदतर राज्य. ऐसे अन्य विकास कार्यक्रमों में भी.
इन सबसे निकलने के लिए झारखंड को चाहिए एक नयी राजनीति. झारखंड विकास के स्पष्ट रास्ते क्या हो सकते हैं? बिना विवाद के. पहला, कृषि विकास को प्राथमिकता. यहां प्लांडू स्थित भारत सरकार का प्रमुख कृषि शोध संस्थान है. इस संस्थान के चमत्कार झारखंड के लोगों को पता नहीं. 2001 में बाहर से सब्जियां, झारखंड आतीं थीं.
2004 तक झारखंड एक लाख टन ‘सरप्लस सब्जियां’ पैदा करने लगा. यहां हार्टिक्लचर के बढ़ने, पनपने की असीम संभावनाएं हैं. राज्य सरकार अगर इस संस्था को बढ़ावा देती है, तो कृषि, सब्जी और फल उत्पादन में झारखंड बहत आगे निकल सकता है.
बिजली उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड महत्वपूर्ण काम कर सकता है. कोयला आधारित बिजली उत्पादन केंद्र लगाकर. जहां-जहां कोयला खदाने हैं, वहीं बिजली उत्पाद केंद्र लगें. इस तरह अनेक बिजली उत्पाद केंद्र लग सकते हैं. केंद्र सरकार इस तरह के पावर प्लांट लगानेवालों को ‘टैक्स होलीडे’ दे.
झारखंड के बेहतर कोयला से देश के कई हिस्सों में बिजली तापघर चल रहे हैं. यही काम यहां क्यों नहीं? जो लोग यहां के बेहतर कोयला राज्य के बाहर ले जाते हैं, उन पर राज्य सरकार विशेष कर लगा सकती है. इस कदम से यहां पावर प्लांट लगाने में मदद मिलेगी.
इसी तरह ‘हाइड्रो पावर जेनरेशन’ का काम हो सकता है. यहां अच्छी बरसात होती है. बड़े बांध (डीवीसी जैसे प्लांट) यहां स्वीकार्य नहीं और यह टेक्नालाजी भी विवादों में है. तब छोट-छोटे बिजली उत्पादन केंद्र क्यों न बनें? जहां-जहां प्राकृतिक जल जमाव है. अगर वहां खेती की जमीन नहीं है, तो वहां छोटे-छोटे ‘हाइड्रो पावर जेनरेशन’ बैठाये जा सकते हैं. हवा से बिजली बनाने के संयत्र (विंडमिल) बैठाये जा सकते हैं. सरकार ‘पावरग्रिड’ बना कर उत्पादित बिजली एक जगह ला सकती है. फिर बेच सकती है. इससे न सिर्फ झारखंड का अंधेरा छंटेगा, बल्कि यह ‘पावर सरप्लस’ स्टेट बनेगा. इससे राज्य सरकार की कमाई हो सकती है.
इसी तरह इंजीनियरिंग कालेज, तकनीकी संस्थान वगैरह खोले जा सकते हैं. रांची, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग वगैरह में. अगर यहां से 20-30 हजार प्रति वर्ष इंजीनियर निकलने लगे, तो झारखंड की सूरत बदल जायेगी.
इसके लिए जरूरी है, अच्छे अध्यापकों को बढ़ाना. अगर पढ़ाई का स्तर सुधर जाये, तो झारखंड के गांवों तक बीपीओ और काल सेंटर खोले जा सकते हैं. जो बेकार युवा आज घर, परिवार और समाज के लिए चिंता के विषय हैं, वे राज्य को आगे ले जाने के सूत्रधार बन जायेंगे.
इसी तरह के अनेक काम हैं, जो बिना विवाद हो सकते हैं. इससे झारखंड का चेहरा बदल सकता है. अगर यह सब नहीं हुआ और झारखंड इसी रास्ते चलता रहा, इसी रफ्तार से बढ़ता रहा, तो 2020 में कहां होगा यह राज्य? आज अजरबैजान देश की जो हालत है, वहां हम आज से 12 वर्ष बाद यानी 2020 में पहुंचेंगे. अगर झारखंडवासी यह नहीं चाहते, तो उन्हें पहल करनी पड़ेगी. और यह पहल करने के लिए सपना देखना जरूरी है.
इसलिए, अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हम यही मानस बनायें, ‘सपना अभी भी …’ क्योंकि इसके अलावा न कोई विकल्प है, न रास्ता.
सरकारी आंकड़ों में झारखंड
राज्य सरकार ने 13 वें वित्त आयोग को दिये गये ज्ञापन में राज्य की स्थिति का उल्लेख किया है.सरकार ने आंकड़ों के सहारे राज्य में गरीबी और पिछड़ेपन की तुलना राष्ट्रीय औसत से की है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में झारखंड अभी पांचवें फेज में है, जबकि दूसरे राज्य आठवें-नौंवे फेज में हैं.
विषय झारखंड की स्थिति राष्ट्रीय औसत
गरीबी 44 26
साक्षरता दर 53.5 65.4
पुरुष साक्षरता दर 67.3 75.8
महिला साक्षरता दर 38.9 54.1
एससी साक्षरता दर 37.5 54.7
एसटी साक्षरता दर 40.7 47.1
मातृत्व मृत्यु दर 371 301
बाल मृत्यु दर 68.7 55
एनिमिया से ग्रसित बच्चे 70.3 69.5
पूर्णत: टीकाकृत बच्चे 34.2 43.5
बिजली उपयोग करने वाले परिवार 23 59
बिजली उपयोग करने वाले ग्रामीण परिवार 11 48
प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 30 वाट 373 वाट
सिंचित क्षेत्र 8.9 40
अनाज उत्पादकता(किलो/हेक्टर) 1073 1715
दिनांक : 15-11-08

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