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लोकसभा चुनाव में पानी की तरह बह रहा है पैसा!

-झारखंड. प्रत्याशियों को खोलना पड़ रहा है खजाना -आनंद मोहन/ सतीश कुमार- रांचीः लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों को खजाना खोलना पड़ रहा है. चुनावी प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट में करोड़ों बहाये जा रहे हैं. प्रत्याशियों के यहां दरबार सज रहा है. पेड कार्यकर्ताओं की भरमार है. हर काम के दाम वसूले जा रहे हैं. […]

-झारखंड. प्रत्याशियों को खोलना पड़ रहा है खजाना

-आनंद मोहन/ सतीश कुमार-

रांचीः लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों को खजाना खोलना पड़ रहा है. चुनावी प्रचार से लेकर बूथ मैनेजमेंट में करोड़ों बहाये जा रहे हैं. प्रत्याशियों के यहां दरबार सज रहा है. पेड कार्यकर्ताओं की भरमार है. हर काम के दाम वसूले जा रहे हैं.

बूथ खर्च के लिए 1500 से चार हजार रुपये तक लग रहे हैं. धनबाद में सबसे अधिक 2228 और सिंहभूम में सबसे कम 1336 बूथ हैं. राज्य के 10 लोकसभा क्षेत्र में बूथों की संख्या 1500 से अधिक है. पार्टियां एक-एक बूथ पर चार से पांच कार्यकर्ताओं की व्यवस्था कर मजबूत किलाबंदी करने में जुटी हैं. अगर राज्य में औसतन बूथों की संख्या 1500 और एक बूथ पर औसतन खर्च 2000 रुपये मान लिये जायें, तो एक लोकसभा क्षेत्र में एक पार्टी को सिर्फ बूथ मैनेजमेंट पर करीब 30 लाख रुपये खर्च करने होंगे. खर्च की यह सीमा न्यूनतम होगी, वहीं दूसरी ओर प्रचार का खर्च अलग है.

अपने-अपने इलाके में पैठ रखनेवाले वोट के सौदागर भी हैं. पार्टियां इन पर भी पैसे बहा रही है. वोट मैनेज करने के नाम पर पार्टियों से लाखों वसूले जा रहे हैं. प्रतिदिन जनसंपर्क अभियान में हजारों रुपये लग रहे हैं. 10 से 15 दिनों के प्रचार अभियान में यह खर्च लाखों में जायेगा.

चुनाव कार्यालय चलाने का खर्च 05 से 10 हजार : प्रत्याशियों के चुनाव कार्यालय मुहल्ले-टोले में खोले जा रहे हैं. कार्यालय खोलने के लिए क्षेत्र के युवाओं की टोली खर्च मांगती है. कार्यालय में झंडा-बैनर पहुंचाने के अलावा भी खर्च देने होते हैं. एक पार्टी की ओर से एक कार्यालय चलाने के लिए पांच से दस हजार रुपये तक दिये जाते हैं. संसदीय क्षेत्र में 20 से 30 तक की संख्या में चुनावी कार्यालय खोले जा रहे हैं. पार्टियों को एक संसदीय क्षेत्र के लिए 15 दिनों तक चुनावी कार्यालय खोलने में दो से चार लाख तक खर्च करने पड़ रहे हैं.

15 दिनों के लिए तीन हजार का पेमेंट : कुछ पार्टियों को चुनावी कार्य के लिए कार्यकर्ताओं का टोटा है. चुनावी प्रचार और बूथ पर डटने के लिए हॉस्टल-कॉलेजों के छात्रों से संपर्क साधा जा रहा है. चुनावी कार्यालय में भी छात्रों को बैठने की जिम्मेवारी दी जा रही है. हाल में ही रांची स्थित करमटोली के नजदीक एक निजी हॉस्टल में रहनेवाले छात्रों से एक खास पार्टी संपर्क साधने पहुंची थी. छात्रों ने पांच हजार की मांग की, पर बाद में तीन हजार रुपये पर बात बनी.

पेट्रोल भराने को लेकर लगती है कतार : रैली और जनसंपर्क अभियान को लेकर कार्यकर्ताओं की मोटरसाइकिल में पेट्रोल भरवाया जाता है. जिस क्षेत्र में रैली होती है, उस क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की गाड़ी में एक से दो लीटर पेट्रोल भरवाये जाते हैं. अमूमन प्रतिदिन किसी न किसी पेट्रोल पंप पर कार्यकर्ताओं की गाड़ियों का हुजूम लगता है. एक गाड़ी को 50 से 100 रुपये पेट्रोल के लिए दिये जाते हैं.

प्रत्याशियों के यहां सज रहा है दरबार वोट के सौदागर वसूल रहे हैं दाम

क्या है खर्च की सीमा

चुनाव आयोग ने एक प्रत्याशी के खर्च की सीमा 70 लाख रुपये तय की है.

10-20 हजार

प्रतिदिन जनसंपर्क अभियान में जुटनेवाले लोगों पर

(कई प्रत्याशियों के तो एक-एक

लाख रुपये तक खर्च हो रहे हैं)

20 हजार

प्रतिदिन चुनावी गतिविधियों व कार्यो पर

(प्रचार अभियान 10 से 15 दिनों तक चलेगा)

नोट : आंकड़ा राजनीतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं से बातचीत पर आधारित. यह खर्च सभी राजनीतिक दलों के लिए लागू नहीं होता.

आयोग की कड़ी नजर

– आयकर विभाग की टीम प्रत्याशियों के खर्च की निगरानी के लिए लगी है

– फ्लाईंग स्क्वायड, स्टेटिक स्क्वायड और चेक नाका बनाये गये हैं

– बैंक को विशेष-दिशा निर्देश दिये गये हैं. दो लाख से ज्यादा की निकासी पर सूचना देने को कहा गया है

– पार्टी फंड पर विशेष नजर है

– चुनाव आयोग द्वारा विशेष सेल का भी गठन किया गया है

– मीडिया की खबरों व विज्ञापन पर भी नजर

क्या कहा था मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने

पिछले रविवार के मुख्य निर्वाचन आयुक्त वीएस संपत रांची आये थे. उन्होंने झारखंड में पैसे के हो रहे दुरुपयोग पर चिंता जतायी थी. उन्होंने कहा था कि झारखंड में यूज ऑफ मनी पावर की शिकायत है. खर्च की निगरानी के लिए कई कदम उठाये गये हैं. राज्य के कई लोकसभा क्षेत्र खर्च के हिसाब से संवेदनशील हैं.

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