sasaram News : आंखों की रोशनी छीन रही मोबाइल स्क्रीन, 13 फीसदी बच्चों की आंखें कमजोर
चिंता... जिले के स्कूलों में स्वास्थ्य विभाग की टीम बच्चों की कर रही स्क्रीनिंग
सासाराम सदर. मोबाइल देखने की आदत वर्तमान समय में स्कूली बच्चों में तेजी से लग रही है. गरीब हो या अमीर, हर घर में एंड्रॉयड मोबाइल फोन मौजूद है. परिजन भले ही अपने काम में व्यस्त हों लेकिन, मोबाइल बच्चों के इंटरटेनमेंट का साधन बन गया है. जिससे मोबाइल के स्क्रीन से बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है और बच्चे आंख के रोग से ग्रसित हो रहे हैं. इसको लेकर बिहार सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को पत्र जारी कर हर जिले के सभी स्कूलों में कैंप लगा बच्चों के आंखों की स्क्रीनिंग कर चश्मा उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है. विभाग के निर्देश पर सदर अस्पताल के आंख विभाग की ओर से स्कूलों में कैंप लगा बच्चों के आंखों की जांच की जा रही है. आंख चिकित्सक डॉ पुष्पा कुमारी ने बताया कि विभाग के निर्देशानुसार, शहर के रामा जैन गर्ल्स स्कूल में शिविर लगा 110 छात्राओं के आंखों की जांच की गयी थी. इसमें से 15 बच्चियों में आंख की समस्या सामने आयी थी. यानी की प्रथम जांच में ही 15.64 प्रतिशत स्कूली छात्राओं के आंख खराबी पायी गयी. संदेहास्पद सभी बच्चियों को चश्मा उपलब्ध कराने के लिए विभाग को सूचना दी गयी है.
चिकित्सक ने कहा कि मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से बच्चों की आंखें खराब हो रही हैं. जिससे निकट दृष्टि दोष, आंखों में सूखापन, खिंचाव और धुंधलापन जैसी समस्याएं हो रही हैं. लगातार स्क्रीन देखने से आंखों पर दबाव पड़ता है और पलकें कम झपकाए जाने के कारण आंखों में सूखापन हो रहा है.40 प्रतिशत चश्मा पहनने वाले लोग नेत्र विशेषज्ञ से नहीं कराते जांच
डॉ पुष्पा के अनुसार बच्चों में बार-बार आंखें मिचमिचाना, पढ़ने में झिझक, सिर व आंखों में दर्द की बात सामने आये, तो अनदेखी नहीं करें. यह नेत्र संबंधी सबसे प्रमुख समस्या अपवर्तक यानी रिफ्रैक्टिव दोष के कारण हो सकता है. इसमें बच्चा साफ-साफ नहीं देख पाता है. सदर अस्पताल के स्क्रीनिंग कार्यक्रम व एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार स्कूल जाने वाले 70 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी नेत्र समस्या से ग्रस्त हैं.आंखों की पूर्ण और सही जांच जरूरी
अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार ने बताया कि आंखों में दवा डालकर ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद), रेटिना की गड़बड़ी, ड्राई आई या मांसपेशियों की कमजोरी देखने के लिए पूर्ण परीक्षण जरूरी है. ऑटो-रेफ्रेक्टोमीटर मशीन से केवल चश्मे के नंबर का अंदाजा लगता है. व्यक्ति की उम्र, जीवनशैली, कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर बिताया समय, आंख की थकान जैसी स्थितियों को यह नहीं पकड़ पाती.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
