परेशानी. ई चालान पर ईंट भेजने के नियम से हो रही दिक्कत
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बालू, गिट्टी के बाद अब ईंट को लेकर होने लगी समस्या
परेशानी. ई चालान पर ईंट भेजने के नियम से हो रही दिक्कत डेहरी कार्यालय : विकास कार्यों के लिए काफी समय से बाधक बने गिट्टी व बालू की समस्या के बाद अब ई चालान पर ईंट की सप्लाई के सरकारी आदेश के कारण ईंट नहीं मिलने का सिलसिल बढ़ गया है. सरकार द्वारा घोषित नियम […]
डेहरी कार्यालय : विकास कार्यों के लिए काफी समय से बाधक बने गिट्टी व बालू की समस्या के बाद अब ई चालान पर ईंट की सप्लाई के सरकारी आदेश के कारण ईंट नहीं मिलने का सिलसिल बढ़ गया है. सरकार द्वारा घोषित नियम के विरुद्ध में ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा आंदोलन करने के कार्यक्रम के तहत यह घोषित किया गया था कि ईंट भट्ठा मालिक अब अपने भट्ठे से ईंट की बिक्री नहीं करेंगे. हालांकि, यह घोषणा सफल नहीं हो पायी, लेकिन अब भी चालान के बिना ट्रैक्टरों पर ईंट ले जाने पर पकड़े जाने की अफवाह से ईंट की सप्लाई करनेवालों की चांदी कटने लगी है.
अब बालू व गिट्टी की तरह ही लुके छिपे रात के अंधेरे में ईंट पहुंचाने के नाम पर दोगुने कीमत वसूलने के लिए सप्लायर तैयारी में लग गये हैं. यही कारण है कि आवश्यकता के अनुसार ईंट की उपलब्धता शहर में कम हो गयी है. लोगों का यह भी कहना है कि एक आशियाना बनाने की चाहवाले लोगों की उम्मीद पर ईंट की अनुपलब्धता कुठाराघात कर रहा है. वैसे लोगों का कहना है कि किसी प्रकार से गिट्टी व बालू को महंगे दामों पर खरीद कर हम लोग मकान बनाने के लिए काम शुरू किये, तो अभी हमारे सामने ईंट सबसे बड़ी समस्या बन गयी है.
आखिर हम गरीब मध्यम परिवार के लोग करें तो क्या करें. बड़े लोगों के आशियाना बनाने में किसी भी वस्तु की कमी नजर नहीं आ रही है. उनके ठिकानों पर बालू, गिट्टी व ईंट का स्टॉक इतना जमा है कि वह एक साल तक अपने मकानों में काम करा सकते हैं. मगर हम गरीब किसी प्रकार से ईंट, बालू व गिट्टी को इकट्ठा कर अपना घर बनाने का प्रयास करते हैं, तो कोई न कोई बाधा हमारे सामने उत्पन्न हो जाती है. जिससे हम चाह कर भी एक छोटा सा आशियाना नहीं बना पा रहे है. इसे हम अपनी किस्मत का दोष माने या यह माने की सरकार हमें मकान बनाने से वंचित करने के लिए रोज कोई न कोई नया नियम बना रही है.
डेहरी कार्यालय : विकास कार्यों के लिए काफी समय से बाधक बने गिट्टी व बालू की समस्या के बाद अब ई चालान पर ईंट की सप्लाई के सरकारी आदेश के कारण ईंट नहीं मिलने का सिलसिल बढ़ गया है. सरकार द्वारा घोषित नियम के विरुद्ध में ईंट भट्ठा मालिकों द्वारा आंदोलन करने के कार्यक्रम के तहत यह घोषित किया गया था कि ईंट भट्ठा मालिक अब अपने भट्ठे से ईंट की बिक्री नहीं करेंगे. हालांकि, यह घोषणा सफल नहीं हो पायी, लेकिन अब भी चालान के बिना ट्रैक्टरों पर ईंट ले जाने पर पकड़े जाने की अफवाह से ईंट की सप्लाई करनेवालों की चांदी कटने लगी है.
अब बालू व गिट्टी की तरह ही लुके छिपे रात के अंधेरे में ईंट पहुंचाने के नाम पर दोगुने कीमत वसूलने के लिए सप्लायर तैयारी में लग गये हैं. यही कारण है कि आवश्यकता के अनुसार ईंट की उपलब्धता शहर में कम हो गयी है. लोगों का यह भी कहना है कि एक आशियाना बनाने की चाहवाले लोगों की उम्मीद पर ईंट की अनुपलब्धता कुठाराघात कर रहा है. वैसे लोगों का कहना है कि किसी प्रकार से गिट्टी व बालू को महंगे दामों पर खरीद कर हम लोग मकान बनाने के लिए काम शुरू किये, तो अभी हमारे सामने ईंट सबसे बड़ी समस्या बन गयी है.
आखिर हम गरीब मध्यम परिवार के लोग करें तो क्या करें. बड़े लोगों के आशियाना बनाने में किसी भी वस्तु की कमी नजर नहीं आ रही है. उनके ठिकानों पर बालू, गिट्टी व ईंट का स्टॉक इतना जमा है कि वह एक साल तक अपने मकानों में काम करा सकते हैं. मगर हम गरीब
किसी प्रकार से ईंट, बालू व गिट्टी को इकट्ठा कर अपना घर बनाने का प्रयास करते हैं, तो कोई न कोई बाधा हमारे सामने उत्पन्न हो जाती है. जिससे हम चाह कर भी एक छोटा सा आशियाना नहीं बना पा रहे है. इसे हम अपनी किस्मत का दोष माने या यह माने की सरकार हमें मकान बनाने से वंचित करने के लिए रोज कोई न कोई नया नियम बना रही है.
रात के अंधेरे में दोगुनी कीमत पर पहुंच रही ईंट
आसमान छूने लगे भवन निर्माण की सामग्री के भाव
सरकार द्वारा गिट्टी, बालू व ईंट की बिक्री पर अपने तरफ से शिकंजा कसे जाने के बाद उक्त वस्तुओं का भाव आसमान छूने लगा है. शहर में झारखंड से आने वाली गिट्टी पहले 6000 रुपये प्रति एक सौ सीएफटी मिलती थी जो अब 7000 रुपये के दर को पार कर चुकी है. औरंगाबाद जिले से बालू की निकासी शुरू होने के बाद पहले 2500 रुपये प्रति सौ सीएफटी मिलने वाला बालू अब 4000 रुपये की कीमत को पार कर चुका है. यही नहीं अब ईंट का दर भी शहर में अपने उच्चतम ऊंचाई पर पहुंच चुका है. पहले 1500 ईंट के लिए 8000 रुपये देने पड़ते थे जो अब 9000 रुपये देने पड़ रहे है.
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