पूर्णिया : जब संध लोक सेवा आयोग की तैयारी करता था तो फणीश्वर नाथ रेणु की रचना ‘ मैला आंचल ’ पढ़ने का मौका मिला. कौन जानता था कि मैला आंचल की पटकथा जिस परिवेश और इलाके के लिए लिखी गयी है, उसकी वास्तविकता से खुद रूबरू हो पाऊंगा. लेकिन जो देखा, सचमुच आज भी वह कहानी पूर्णिया की धरती पर जीवंत है. जाहिर है कि रेणु की रचना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी लिखने वक्त थी.
उक्त बातें प्रशिक्षु आइएएस सौरभ जोरवाल ने प्रभात खबर से खास बातचीत के दौरान शनिवार को कही. वे एक साल के अपने प्रशिक्षण अवधि को संपन्न कर पुन: वापस लौटने की तैयारी में थे. प्रशिक्षु आइएएस श्री जोरवाल ने कहा कि यह इलाका शिक्षा और मेडिकल हब के रूप में विकसित हो सकता है. इसकी संभावनाएं भी हैं, लेकिन ग्रामीण इलाके आज भी मैला आंचल से बाहर नहीं निकल पाया है.
अधिकारी और आम लोगों के बीच जो गैप है, उसे पाटने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सीखने की दृष्टि से पूर्णिया का उनका अनुभव काफी सुखद रहा. हालांकि इस बात का मलाल रह गया कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षित कार्य नहीं कर सका. अगर दोबारा अवसर मिला तो वे पुन: पूर्णिया आना चाहेंगे. कहा ‘ कहीं भी रहूंगा, पूर्णिया और यहां के लोगों को नहीं भूल पाऊंगा ’.