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राजनीतिक कुरुक्षेत्र में दलीय प्रतिबद्धता हुई बेमानी

राजनीतिक कुरुक्षेत्र में दलीय प्रतिबद्धता हुई बेमानी टिकट नहीं मिलने से निराश कई लोगों ने थामा दूसरे दल का दामनकहीं टिकट नहीं मिलने पर किया निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलानपूर्णिया के लगभग सभी विधानसभा सीटों पर उभरे बगावत के सुरपंकज कुमार भारतीय, पूर्णियाराजनीतिक अखाड़े में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का बिगुल बजते ही सभी दलों […]

राजनीतिक कुरुक्षेत्र में दलीय प्रतिबद्धता हुई बेमानी टिकट नहीं मिलने से निराश कई लोगों ने थामा दूसरे दल का दामनकहीं टिकट नहीं मिलने पर किया निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलानपूर्णिया के लगभग सभी विधानसभा सीटों पर उभरे बगावत के सुरपंकज कुमार भारतीय, पूर्णियाराजनीतिक अखाड़े में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का बिगुल बजते ही सभी दलों में अफरातफरी का माहौल है. कल तक साथ-साथ रहने का दावा करने वाले चेहरे आज एक दूसरे को ही चुनौती देने को तैयार हैं. बेटिकट हुए तो अपने घर के प्रति ही नजरिया बदल गया और अब गांडीव लेकर प्रहार करने को तैयार हैं. इस राजनीतिक कुरुक्षेत्र में धर्म, अधर्म, निष्ठा और प्रतिबद्धता सब कुछ बेमानी नजर आने लगी है. एनडीए में अफरातफरी मची है तो महागंठबंधन में भी घमासान जारी है. वहीं तीसरा मोरचा तथा और कई छोटी-छोटी पार्टियां भी ऊहापोह की स्थिति से गुजर रहा है. बहरहाल जनता तीसरे अंपायर की भूमिका में टुकुर-टुकुर देख रही है और फैसले देने की बारी का इंतजार कर रही है. बात एनडीए की करे तो धमदाहा और रूपौली विधानसभा क्षेत्र में अफरातफरी मची है. इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक बगावत के स्वर सुनने को मिल रहे हैं. एनडीए में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के हिस्से में धमदाहा सीट चली गयी. यहां रालोसपा के शिव शंकर ठाकुर उर्फ शिव शंकर आजाद उम्मीदवार बनाये गये हैं. उम्मीदवार की घोषणा होते ही सबसे अधिक निराशा भाजपा से जुड़े टिकटार्थियों को हुई. यहां से प्रबल दावेदार के रूप में पूर्व विधायक दिलीप कुमार यादव, पंकज पटेल, तहमुल हुसैन उर्फ बुलबुल और ज्योति रानी के नाम सामने आ रहे थे. दिलीप कुमार यादव तो हाल ही में इस उम्मीद पर राजद छोड़ भाजपा का दामन थामे था कि उन्हें भाजपा अपना प्रत्याशी बनायेगी. उन्हें निराशा हाथ लगी, तो उन्होंने जनअधिकार पार्टी का दामन थाम लिया. जबकि राजनीतिक बिसात पर अब तक सांसद पप्पू यादव और दिलीप यादव दो ध्रुव माने जाते थे. स्पष्ट है कि राजनीति में न तो कोई दोस्त होता है और न ही कोई दुश्मन होता है. इसी प्रकार भाजपा में अल्पसंख्यक चेहरा तहमुल हुसैन जब पार्टी से निराश हुए तो स्वतंत्र होकर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है. इस प्रकार भाजपा नेत्री ज्योति रानी ने भी बगावत का झंडा बुलंद करते हुए चुनाव लड़ने का एलान किया है. वहीं रालोसपा के निरंजन कुशवाहा भी अपने पार्टी के निर्णय से नाराज होकर पार्टी से त्याग पत्र दे चुके हैं और अब बागी उम्मीदवार के रूप में किस्मत आजमायेंगे. रूपौली विधानसभा क्षेत्र में भी घमासान मचा हुआ है. सीट भाजपा के खाते में गयी तो लोजपा के संभावित उम्मीदवारों को दर्द होना ही था. पूर्व विधायक शंकर सिंह ने सबसे पहले बगावती बोल बोलते हुए पार्टी से त्याग पत्र दे दिया. बहरहाल उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है. रूपौली में टिकट के दौड़ में शामिल रही भाजपा नेत्री किरण सिंह निषाद ने भी बगावती तेवर अपनाते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाने का एलान किया है. वहीं बनमनखी के पूर्व विधायक देवनारायण रजक ने भी विद्रोह करते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. स्पष्ट है कि दलों के टिकटार्थियों के लिए दलीय प्रतिबद्धता बेमानी हो चुकी है. महागंठबंधन में सबसे अधिक तूफान पूर्णिया सदर विधान सभा क्षेत्र को लेकर उठा हुआ है. महागंठबंधन के घटक दल कांग्रेस के खाते में यह सीट गयी है. कांग्रेस ने पार्टी के जिलाध्यक्ष इंदू सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया है. श्रीमती सिन्हा का सबसे पहले विरोध जदयू सांसद संतोष कुशवाहा ने ही किया. इसके अलावा गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अमरनाथ तिवारी ने भी श्रीमती सिन्हा के नाम पर एतराज जताया है. कांग्रेस के युवा नेता अरविंद कुमार साह ‘भोला’ जब बेटिकट हुए, तो जनअधिकार पार्टी का उम्मीदवार बन बैठे. वहीं जदयू के ही वरिष्ठ नेता दिवाकर चौधरी ने भी चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है. जबकि राष्ट्रीय जनता दल के नीरज कुमार सिंह उर्फ छोटू सिंह ने भी बगावत का झंडा बुलंद करते हुए समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी करने का फैसला किया है. श्री सिंह को सपा का टिकट मिलने से जनअधिकार पार्टी में भी ऊहापोह की स्थिति है क्योंकि सपा और जपा दोनों ही तीसरे मोरचे का घटक दल है. गुरुवार से नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया आरंभ ही हुई है और आनेवाले दिनों में कई और बागी चेहरे सामने आ सकते हैं. जाहिर है कि दलीय प्रतिबद्धता से दूर चुनावी कुरुक्षेत्र में दिलचस्प मुकाबला तय है, जहां कई मिथक टूटते नजर आयेंगे.

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