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Bihar Assembly Election 2020 : बिहार में चुनाव से पहले एनडीए में कड़वाहट, विपक्षी खेमे में भी बढ़े मतभेद, जानिए सियासी समीकरण की क्या बन रही संभावनाएं

Bihar assembly election 2020 नयी दिल्ली/पटना : सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जदयू और लोजपा के रिश्तों में लगातार बढ़ती कड़वाहट और विपक्षी खेमे में सामने आ रहे मतभेदों ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में किसी तरह के नये राजनीतिक समीकरण की संभावनाओं को खारिज कर दिया है. सूत्रों ने कहा कि यह अभी तक अनिश्चित है कि राज्य की खंडित राजनीति में किसी तरह के नये गठबंधन बनेंगे, लेकिन दोनों प्रतिद्वंद्वी खेमों के संबंध में ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती जिससे कुछ दलों को अपने लिए विकल्प तलाशने का मौका मिल गया है.

Bihar assembly election 2020 नयी दिल्ली/पटना : सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जदयू और लोजपा के रिश्तों में लगातार बढ़ती कड़वाहट और विपक्षी खेमे में सामने आ रहे मतभेदों ने बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले राज्य में किसी तरह के नये राजनीतिक समीकरण की संभावनाओं को खारिज कर दिया है. सूत्रों ने कहा कि यह अभी तक अनिश्चित है कि राज्य की खंडित राजनीति में किसी तरह के नये गठबंधन बनेंगे, लेकिन दोनों प्रतिद्वंद्वी खेमों के संबंध में ऐसी कोई संभावना नहीं दिखती जिससे कुछ दलों को अपने लिए विकल्प तलाशने का मौका मिल गया है.

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत जनता दल (यूनाइटेड) से नाराज चल रही है क्योंकि उसका मानना है कि राजग साझेदारों के बीच सीटों के बंटवारे संबंधी बातचीत में राज्य में उसकी उचित मजबूती को सहयोगी ने तवज्जो नहीं दी है. जहां भाजपा और लोजपा के बीच समीकरण ठीक हैं, वहीं नीतीश कुमार की पार्टी चिराग पासवान द्वारा मुख्यमंत्री की बार-बार आलोचना किये जाने को लेकर गुस्से में है और पार्टी ने इशारा किया है कि भगवा पार्टी को राज्य में उनके अलावा किसी और को देखना चाहिए.

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “लोजपा बिहार में अपनी ताकत को ज्यादा आंक रही है और चिराग पासवान ज्यादा महत्वाकांक्षी हो रहे हैं. यह जदयू की कभी भी सहयोगी नहीं रही. वह भाजपा के साथ समय समय पर गठबंधन करती रहती है और भगवा पार्टी उसकी मांगों को देखेगी न कि हम.” केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी, जिसका नेतृत्व अब उनके बेटे चिराग कर रहे हैं, उसने 2015 में विधानसभा की 243 सीटों में से 42 पर चुनाव लड़ा था और आगामी चुनाव में इसी तरह की साझेदारी चाहती है जिससे जदयू इनकार कर रही है.

जदयू 2015 में राजद और कांग्रेस वाले प्रतिद्वंद्वी खेमे में थी. जदयू सूत्रों ने कहा कि लोजपा ने 2015 में केवल दो सीटें जीती थी और इसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2005 में था जब पार्टी ने बिहार चुनाव में अपने दम पर लड़ते हुए 29 सीटें जीती थी. खंडित जनादेश के कारण अगले कुछ महीनों में फिर से विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें कुमार ने राजग का नेतृत्व करते हुए राजद के लालू प्रसाद को हराकर पहली बार राज्य में गठबंधन को जीत दिलायी थी. इस चुनाव में लोजपा को महज 10 सीटें मिली थी.

वहीं, लोजपा का कहना है कि 2014 में जदयू को लोकसभा की महज दो सीटें मिलने के बावजूद उसे 2019 के आम चुनाव में 40 में से 19 सीट पर चुनाव लड़ने दिया गया जब वह चार साल बाद फिर से राजग में शामिल हो गयी थी. जहां भाजपा अपने गठबंधन सहयोगियों को साथ रखने की दिशा में काम कर रही है वहीं उसके शीर्ष नेताओं ने बार-बार कुमार के नेतृत्व में भरोसा जताया है और उन्हें राजग के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर नामित किया है.

राजनीतिक सूत्रों का मानना है कि इस वजह से भाजपा, लोजपा को तसल्ली देने में बहुत कामयाब नहीं हो पा रही है. पासवान परिवार अब तक भाजपा की तारीफ करता रहा है और केंद्रीय मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “गरीब अनुकूल” नीतियों की शुक्रवार को भी प्रशंसा की. लोजपा के एक नेता ने कहा कि लोजपा बिहार चुनाव में अपने राजग सहयोगियों से मात्र “सम्मानीय समझौता” चाहती है.

हालांकि, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने लोजपा के आक्रामक रुख का यह कहते हुए बचाव किया है कि किसी गठबंधन में अपनी सीटों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए यह किसी पार्टी का “सामान्य तेवर” है. उन्होंने कहा, “सभी दल अधिकतम सीट पर लड़ना चाहते हैं ताकि वे चुनाव के बाद मजबूत स्थिति में रहें.” कांग्रेस की बिहार इकाई के नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने अपने उस दावे के साथ हाल ही में अटकलों का दौर शुरू कर दिया था कि उन्होंने उभरती राजनीतिक स्थिति के बारे में लोजपा नेतृत्व से बातचीत की है और पूर्व सांसद पप्पू यादव अपनी ही पार्टी, जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के साथ चिराग पासवान को मुख्यमंत्री पद का संभावित दावेदार स्वीकार करने की बात कर रहे हैं.

वहीं, राजद नीत विपक्ष में, कुछ दलों ने तेजस्वी यादव को गठबंधन का मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाये जाने के प्रति अनिच्छा दिखाई है और सहयोगियों के बीच चर्चा कराने की मांग की है. सूत्रों ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री एवं हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) नेता जीतन राम मांझी जो राजद नेतृत्व पर निशाना साधते रहते हैं, वह जदयू के करीब आ रहे हैं. विपक्षी खेमे के दो और सदस्य, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश साहनी ने भी नेृतृत्व के मुद्दे पर विरोध जताया है जो विपक्षी खेमे में संकट के संकेत देता है.

Upload By Samir Kumar

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