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सत्याग्रह शब्द आते ही गांधी सामने खड़े हो जाते हैं

कल्पना शास्त्री गांधीवादी लेखिका यदि आज पिछली शताब्दी की ओर मुड़ कर देखें तो दो बातें सामने आती हैं. विज्ञान और तकनीक का जैसे विकास हुआ उसी तरह एक मानवीय तकनीक का भी विकास हुआ. जिसे सत्याग्रह कहा गया. सत्याग्रह शब्द आते ही गांधी जी सामने खड़े होते हैं. भले ही गांधी के बारे में […]

कल्पना शास्त्री गांधीवादी लेखिका
यदि आज पिछली शताब्दी की ओर मुड़ कर देखें तो दो बातें सामने आती हैं. विज्ञान और तकनीक का जैसे विकास हुआ उसी तरह एक मानवीय तकनीक का भी विकास हुआ. जिसे सत्याग्रह कहा गया. सत्याग्रह शब्द आते ही गांधी जी सामने खड़े होते हैं. भले ही गांधी के बारे में बहुत गहरी गलतफहमियां पैदा की जा रही हो, पर यदि उनकी आत्मकथा को कोई पढ़े तो सामने आती है दो बातें-संवाद और निडरता. जब तक संवाद का महत्व रहेगा और निडरता की जरूरत रहेगी, गांधी दुनिया के लिए संदर्भ युक्त रहेंगे. आज ये बातें बार-बार समाज में पूछी जाती है.
गांधी का संदर्भ आज क्या है? आज जब देखती हूं जहां गांधी का प्रभाव समाज पर अब भी बाकी है. वहां आदमी संवाद पर ज्यादा जोर देता दिखायी देगा. कम उम्र के युवक गांधी की किताब पढ़कर वर्षों सादगी से गांवों में आदिवासियों के बीच काम करते दिखाई देते हैं. खुद तो बदल जाते ही हैं, उनके परिवार में भी एक अलगपन दिखाई देता है. आपस में खुला संवाद रहता है. डांट डपटकर, आतंक, और डर दिखाकर ऊपरी अनुशासन रखने की कोशिश नहीं दिखाई देती. बराबरी का संवाद रखा जाता है.
गांधी को बचपन में पिता का डर लगता था. अंधेरे से डर लगता था. उन्होंने कोशिश करके डर को तोड़ा और पिता से संवाद स्थापित किया. दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंक कर अपमान किया गया.पर, वहीं प्लेटफॉर्म पर उन्होंने दो से तीन घंटों तक चिंतन किया और एक सकारात्मक प्रतिक्रिया वाला उपाय निकाला जो आम आदमी इस्तेमाल कर सकते थे.
सत्याग्रह. गांधीजी ने कभी बड़े-बड़े भाषण नहीं दिये, न ही विद्वता का आडंबर दिखाया, और न बड़ी-बड़ी किताबें लिखीं. हिंसक व लड़ाकू आदमी बहादुर होता है इस मिथ को हीं उन्होंने तोड़ दिया. मानस शास्त्र की वास्तविकता उन्होंने सामने ला कर रख दी. आम धारणा रहती है की जिसकी तीखी प्रतिक्रिया है, वह बहादुर है.
हिंसक आदमी हिंसा करता ही है डर के कारण. अहिंसा बहादुर व्यक्ति का लक्षण है. ये बातें गांधी के कारण स्थापित हो गयी. आज की दुनिया में हम देखें तो निडर होना आज हर लड़की की जरूरत बन गयी है. प्रतिक्रियावादी न होना और अन्तर्मन से संतुलित होना भी गैरबराबरी की व्यवस्था वाले इस समाज में उतना ही जरूरी है. क्योंकि तभी हम इस व्यवस्था को बदल सकते हैं . इसलिए भी आज के समाज में गांधी विचार का सही तरीके से प्रसार होना जरूरी हो गया है.
सादगी और कम से कम चीजों का उपयोग करना, गांधी की ये बात भी आज की बाजारू उपभोक्तावादी समाज में जरूरी हो गयी है. हमारी आवश्यकताएं बढ़ाने पर कुछ लोगों का बाजार बढ़ रहा है. जीवन की सादगी पूंजीवादी व्यवस्था के मूल आधार को ही तोड़ देती है. आज देखती हूं ढोंग ऊपरी चमक दमक, खर्चीली शादियों के पीछे लोग पागल हैं उसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय ही मानते हैं, तो लगता है आज फिर जरूरत है गांधी विचार की. जो मानवीय मूल्यों को फिर प्रतिष्ठापित करे. कई देशों में क्रांति हुई जो नेतृत्व किया वह सत्ता पर जरूर बैठा. भारत में ऐसा नहीं हुआ.
दुनिया में गांधी ही ऐसा व्यक्ति था जिसने आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया पर कुर्सी पर नहीं बैठा, वरन लोकशक्ति की बात करने लगा. भारत की संस्कृति में सत्ता से ज्यादा तटस्थ ताकतों का महत्व रहा है. इस मामले में दुनिया में शायद यह एकमात्र उदाहरण है. भारत जिंदा है तो इन्हीं विचारों के कारण. विभिन्नताओं के बावजूद एक दूसरों को स्वीकृत करने की , सह अस्तित्व की भावना है. वरना इतनी विभिन्नताओं में तो हमारा देश यूरोप की तरह 20-25 देशों में टूट चुका होता.

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