भारतीय सुपर कंप्यूटर के निर्माता माने जाने वाले डॉ विजय पांडुरंगा भटकर को नालंदा विश्वविद्यालय का चांसलर नियुक्त किया गया है. भटकर पूर्व चांसलर जॉर्ज यो की जगह लेंगे. भटकर वडोदरा के एमएस यूनिवर्सिटी, नागपुर के सर विश्वेसरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और दिल्ली स्थित आइआइटी से पढ़ाई की है. भारत के सुपर कंप्यूटर के आर्टिटेक्ट के तौर पर जाने वाले भटकर सेंटर ऑफ डवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग से जुड़े रहे हैं और इनके नेतृत्व में भारत ने 1991 में परम 8000 और 1998 में परम 10000 सुपर कंप्यूटर बनाने में सफलता हासिल की.
साइंटिफिक एडवायजरी कमिटी और काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के गवर्निंग बोर्ड के सदस्य रहे विजय भटकर को 2000 में पद्म श्री और 2015 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर नियुक्त किये जाने की घोषणा के बाद अंजनी कुमार सिंह ने उनसे बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश :
– नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर पद पर नियुक्ति को आप किस रूप में देखते हैं?
कई सालों से व्याख्या न देता रहा हूं. शिक्षा के विषय में सोचता रहा हूं. शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की जरूरत है. जिस विषय में सोचता रहा हूं, उस दिशा में काम करने का मौका मिला है, ताे निश्चित रूप से अच्छा अनुभव कर रहा हूं.
– नालंदा विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु के रूप में प्रसिद्ध रहा है. इसे दोबारा पुनर्स्थापित करने की दिशा में आपकी क्या प्राथमिकता/ योजना होगी?
नालंदा विश्वविदयालय सिर्फ देश का विश्वविद्यालय नहीं रहा है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय रहा है. जहां पर वैश्विक शिक्षा की व्यवस्था रही है. शिक्षा के उस प्रारूप को फिर से बहाल करना और नालंदा विवि को फिर से विश्व गुरु के रूप में पुनर्स्थापित करना प्राथमिकता सूची में ऊपर होगा. निश्चित रूप से इस दिशा में वह सब प्रयास किये जायेंगे, जो जरूरी है. अध्ययन, अध्यापन और स्वध्याय की जो परंपरा हमारी शिक्षा प्रणाली में रही है उसे फिर से बहाल करने की दिशा में काम किया जायेगा. परंपरागत और आधुनिक शिक्षा का जो समावेश रहा है उसे उसी रूप में समाहित कर वैश्विक स्तर पर इसकी प्रतिष्ठा को बहाल करने की दिशा में काम किया जायेगा.
– नालंदा विवि को पुनर्स्थापित करने की दिशा में आप क्या चुनौती देखते हैं?
जिस आचार्य परंपरा के बल पर नालंदा विवि ने पूरे विश्व में अपनी शिक्षा का प्रसार किया था, उस पुराने रूप में उसे पुनर्स्थापित करने को एक चुनौती के रूप में लेता हूं. विवि को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु के रूप में पुनर्स्थापित करना एक चुनौती है, लेकिन जहां चुनौती होती है, वहीं संभावना का द्वार भी खुलता है. इसलिए इन चुनौतियों को एक संभावना के रूप में देख रहा हूं. जिस तरह से भारत और दूसरे देशाें के विद्यार्थी नालंदा में आकर पठन-पाठन करते थे, वैसा माहौल कायम करना तथा उसके लिए उन सभी जरूरी संसाधनों को उपलब्ध कराना हमारी योजना में शामिल होगा. वैसा माहौल बने, वैसी शिक्षा की व्यवस्था हो, तथा वैसे पढ़ाने वाले गुरु हों, जिससे पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की गरिमा को बहाल किया जा सके.
वैसा विश्वविद्यालय जहां पर दूसरे देशों के महान लोग पढ़ाई के लिए आते रहे हैं. वैसा माहौल को तैयार कर परंपरागत और आधुनिक शिक्षा का समावेश किया जायेगा, जो आज के जरूरत के मुताबिक भी हो.
– आप कंप्यूटर साइंटिस्ट हैं. कंप्यूटर मैगजिम डेटा कवरेज आपकी देन है, तो क्या माना जाये कि इस विश्वविद्यालय में नयी तकनीकों पर फोकस किया जायेगा?
निश्चित रूप से नयी तकनीकों का प्रयोग सिर्फ आइटी के क्षेत्र में ही नहीं होना चाहिए, बल्कि मैं चाहता हूं कि यह पूरी शिक्षा प्रणाली में आये. जरूरत और समय के मुताबिक शिक्षा में बदला व जरूरी है. साथ ही एक लिबरल एजुकेशन सभी को मिले इस दिशा में भी काम किया जायेगा.
– लिबरल एजुकेशन से आपका तात्पर्य ?
हमारी संस्कृति , दूसरों की संस्कृति सभी का ज्ञान. इसमें उन सभी संस्कृतियों का समावेश होगा. लेकिन हमारी अपनी जो संस्कृति है, उस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
– यानी संस्कृति पर ज्यादा जोर होगा?
यह बात समझने की है कि आखिर हमारी संस्कृति क्यों शाश्वत रही. क्योंकि हमारे मूल्य वैसे रहे हैं. हमारी संस्कृति में सभी संस्कृतियों को समावेश है. सभी को समाहित करती है, स्वीकार करती है, इसलिए हमारी संस्कृति आगे बढ़ी . हमारी जो पुरातन संस्कृति रही है उसके साथ ही आधुनिक संस्कृति को भी हमने अपनाया है इसलिए हम आगे बढ़े हैं. हमारी संस्कृति की यह खासियत है कि वह ‘सनातन’ और ‘सदानूतन’ रही है.
– आपकी राज्य सरकार से क्या अपेक्षा होगी?
यही कि जो टैलेंट दूसरे जगहों से आयेंगे, उनको वहां जाने से लेकर रहने में कोई दिक्कत नहीं हो. अभी पटना से राजगीर जाना होता है. यदि सीधे राजगीर के लिए कनेक्टिविटी हो तो और ज्यादा अच्छा होगा. इसके साथ ही डिजिटल कनेक्टिविटी हो, तो और काम आसान होगा. वीडियो कनेक्टिविटी, 4जी कनेक्टिविटी एक नयी तकनीक होलोलेंस आ रही है, इस सब का प्रयोग कर हम बेहतर शिक्षा दे सकते हैं. इन सबों के लिए आधारभूत संरचना को और अधिक सुदृढ करना होगा. डिजिटल कनेक्टिविटी, फिजिकल कनैक्टिविटी और इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है हार्ट की कनेक्टिविटी. इन सारी चीजों को एक साथ समाहित कर हम नालंदा विवि को फिर से पुनर्स्थापित कर सकते हैं.
– आपसे नालंदा विवि और बिहार के लोगों को आपसे काफी उम्मीदें है, उस उम्मीद पर आप कैसे खरा उतरेंगे?
मैं विश्वास दिलाता हूं कि उनके उम्मीदों पर मैं खरा उतरूंगा. अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा. नालंदा को वैश्विक यूनिवर्सिटी बनाने की दिशा में मिल जुलकर प्रयास करेंगे और उस मुकाम को हासिल करेंगे. हमारा नारा रहा है, जय जगत, जय भारत.
जानें डॉ विजय भटकर को
11 अक्टू बर 1946 को पुणे में जन्मे डॉ विजय पांडुरंग भटकरवडोदरा के एमएस यूनिवर्सिटी, नागपुर के सर विश्वेसरैया नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी और दिल्ली स्थित आइआइटी से पढ़ाई की है. भारत के सुपर कंप्यूटर के आर्टिटेक्ट के तौर पर जाने वाले भटकर सेंटर ऑफ डवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग से जुड़े रहे हैं और 1991 में परम 8000 और 1998 में परम 10000 सुपर कंप्यूटर बनाने में इनका अहम योगदान रहा है. महाराष्ट्र और गोवा में ई-गवर्नेंस कमिटी के चेयरमैन भी रहे हैं. लगभग 12 किताब और 80 रिसर्च पेपर पेश करने वाले भटकर को संत ध्यानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार, लोकमान्य तिलक अवार्ड के अलावा कई महत्वपूर्ण पुरस्कार मिल चुके हैं.
गौरतलब है कि 2010 में नालंदा यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया. 443 एकड़ में फैले इस विश्वविद्यालय से नोबेल पुरस्कार विजेता अर्मत्य सेन, सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जार्ज यो, हावर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सौगत बोस, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर लार्ड मेघनाथ देसाइ के अलावा कई महत्वपूर्ण हस्तियां जुड़ी रही हैं
संघ से रहा है करीबी रिश्ता
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुषांगिक संगठन विजन भारती से जुड़े रहे भटकर को केंद्र सरकार ने 2015 में सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड फॉर एजुकेशन का सदस्य नियुक्त किया और उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बदलाव करने का जिम्मा दिया गया. जनवरी 2015 में उन्होंने योग गुरु रामदेव और वनवासी कल्याण आश्रम को उन्नत भारत अभियान योजना के क्रियान्वयन पर चर्चा के लिए बुलाया. भारतीय कृषि में गायों की महत्ता उनका पसंदीदा विषय रहा है.