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तेज झटका और हवा में झूल गये कोच, क्षत-विक्षत शवों की शिनाख्त भी मुश्किल
कानपुर में पुखरायां के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस (19321) में रविवार तड़के करीब 3:10 बजे एक जोरदार झटका लगा और 14 डिब्बे हवा में झूल गये. रात के अंधरे में आयी इस मौत ने करीब 130 से ज्यादा लोगों की जान ले ली. चारों ओर चीख-पुकार मच गयी और रेल के डिब्बे खून से लथपथ हो […]
कानपुर में पुखरायां के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस (19321) में रविवार तड़के करीब 3:10 बजे एक जोरदार झटका लगा और 14 डिब्बे हवा में झूल गये. रात के अंधरे में आयी इस मौत ने करीब 130 से ज्यादा लोगों की जान ले ली. चारों ओर चीख-पुकार मच गयी और रेल के डिब्बे खून से लथपथ हो गये. इस रेल हादसे में कई परिवार बिखर गये. किसी के पिता, तो किसी की मां, किसी के बेटा-बेटी की जान चली गयी, तो किसी के सामने बैठा हंसता-खेलता परिवार पलक झपकते ही खत्म हो गया. घटनास्थल के आसपास हर तरफ रौंगटे खड़ा कर देनेवाली तसवीरें थीं. कई लोगों के शव डिब्बों के अंदर फंस गये थे, जिन्हें गैस कटर की मदद से काट कर बाहर निकाला गया. लोग अपनों को खोजने के लिए बदहवास इधर-उधर भाग रहे थे, तो कानपुर देहात के अस्पताल शवों और घायलों से पटा पड़ा था. घटना के खौफनाक दास्तान सुन अनजान भी रो रहे थे. ट्रेन हादसे की दुखद कहानियां इस त्रासदी पर बैचेन कर रही हैं.
इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में शनिवार को एक परिवार बैठा. उसे क्या मालूम था कि इस यात्रा में उसका हंसता-खेलता परिवार पलक झपकते ही खत्म हो जायेगा. ट्रेन अपनी गति से चल रही थी, तभी रविवार तड़के करीब 3:10 बजे कानपुर में पुखरायां के पास ट्रेन में एक जोरदार झटका लगा और 14 डिब्बे पटरी से उतर गये. कई डिब्बे तो हवा में झूल गये. उस वक्त यात्री गहरी नींद में सो रहे थे. जोरदार आवाज से नींद टूटी, तो देखा कि ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गयी है. रेल हादसे के मंजर की खौफनाक दास्तान सुन कर कानपुर देहात के अस्पताल में अनजान लोग भी सुबक-सुबक रो रहे थे.
भोपाल की नूपर शर्मा एस-1 कोच में सवार थीं. उनके साथ परिवार के तीन लोग और थे. दायें पैर में गंभीर चोट के कारण जनरल वार्ड में भरती नूपुर ने बताया कि हादसे के वक्त वह जाग रही थीं. अचानक ट्रेन जोरदार आवाज के साथ पलट गयी. कोच में अंधेरा छा गया. चारों ओर चीख-पुकार मची थी. स्थानीय लोग देवदूत बन कर आये और घायलों को अस्पताल पहुंचाया. कई लोग जान बचाने के लिए छटपटा रहे थे. इस बीच, कई गंभीर लोगों ने दम तोड़ दिया. उनके शव से खून टपक रहा था. लाशों के नीचे दबीं नूपुर के नीचे एक मासूम बच्ची थी. वह जिंदगी के लिए संघर्ष कर रही थी. नूपुर ने उसे बचाने की कोशिश कर रही थी, तभी कई लोग वहां आये और बच्ची को बाहर निकाला.
पटना के अरुण सुरक्षित निकले : एस-1 डिब्बे में मौजूद उद्योगपति अरुण शर्मा को हादसे के 10 घंटे बाद बचा लिया गया, लेकिन परिवार के लिए पटना तक की यह यात्रा काफी भयावह रही. अभी तक शर्मा के छोटे बेटे की कोई खोज-खबर नहीं मिली है. पत्नी, दो बेटों गिज्ञांश (11) और त्रियांश (नौ) के साथ शर्मा यात्रा कर रहे थे.
वह अपने दोस्त की 21 नवंबर को होनेवाली शादी के लिए पटना जा रहे थे. उनका कहना है कि हम सभी एस-1 डिब्बे में सो रहे थे. तभी देर रात करीब तीन बजे तेज झटका लगा और हम नीचे गिर गये. सेना के लोगों ने मुझे उस मुड़े-तुड़े डिब्बे से दोपहर एक बजे निकाला. शर्मा की पत्नी नुपुर के भी हाथों की हड्डियां टूटी हैं और उनका भी उसी अस्पताल में इलाज चल रहा है. हालांकि, पूरा परिवार अपने बेटे त्रियांश को लेकर बहुत चिंतित है. उसका अभी तक कोई पता नहीं चला है.
अपनों को ढूंढ रही दीपिका : इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में दीपिका त्रिपाठी अपने 45 रिश्तेदारों के साथ सफर कर रही थी. कुछ घंटे पहले उनकी नींद लगी थी कि अचानक आधी रात को उन्हें एक जोर का झटका लगा, जिसके बाद वह अंधेरे से घिर गयीं. थोड़ी ही देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि उनका कोच आधा हवा में लटका हुआ है. दीपिका और उसके माता-पिता जो दूसरे कोच में थे, इस दुर्घटना में बाल-बाल बच गये हैं. दीपिका ने बताया, ‘मैं जैसे-तैसे करके कोच से बाहर निकली और तब मुझे पता चला कि आखिर हुआ क्या है. हमें हमारे पांच रिश्तेदार नहीं मिल रहे हैं.
रुंधे गले से बोले पिता, सिर्फ बेटे का पर्स मिला
इस ट्रेन हादसे में अमित गुप्ता नाम का एक युवक भी लापता है. अमित कानपुर आ रहे थे. हादसे के बाद उनके पिता घटनास्थल पर अमित को खोज रहे हैं. रोते हुए पिता ने बताया कि अमित इसी ट्रेन से घर आ रहा था. अब तक उसका पता नहीं चल पाया है. सिर्फ उसका पर्स ही मिल पाया है.
रोहित को नहीं मिल रहे मां, भाई और बहन
रोहित पांडे नाम के युवक ने भोपाल से अपनी मां, भाई और बहन को जनरल कोच में बिठाया था. सभी लोग फैजाबाद जा रहे थे. शाम तक फोन से बात हुई थी, पर अब कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. अब वह अपने पिता के साथ घटनास्थल पर जा रहे हैं.
बोगी में से जीवित निकले दो बच्चे
छह और सात साल के दो बच्चों को दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन के एस-3 बोगी से निकाला गया है. इन बच्चों के निकट एक महिला मृत मिली है, जो संभवत: उनकी मां हो सकती है. एक अन्य कोच में दो लड़कियां फंसी हुई हैं. सुरक्षाकर्मी निकालने का प्रयास कर रहे हैं.
मेरे पापा कहीं नहीं दिख रहे
घटनास्थल पर अपनी आंखों के ठीक ऊपर माथे पर पट्टीलगाये एक लड़की घूम रही थी. वह तुरंत ही अस्पताल से मरहम पट्टी करा कर लौटी थी. वह अपने पिता को खोज रही थी. लड़की ने बताया कि हम अपने पिता के साथ घर जा रहे थे. तड़के ट्रेन में जोरदार आवाज आयी और ट्रेन बेपटरी हो गयी. हम लोग कुछ समझते, तब तक चारों ओर चीख-पुकार मच गयी. मेरे माथे पर भी चोट आयी है. मुझे गांववालों ने अस्पताल में भरती कराया, लेकिन वहां मेरे पिताजी नहीं दिखे तो मैं यहां आकर ढूंढ रही हूं. अभी तक उनका पता नहीं चल पाया है. उनके बारे में कोई सूचना नहीं है.
शादी के लिए इंदौर से मऊ जा रही दुल्हन पर टूटा दुखों का पहाड़
इंदौर-पटना एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने से 20 वर्षीय रूबी गुप्ता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. जल्द ही दुल्हन बनने जा रही रूबी हादसे के बाद से अपने लापता पिता को खोज रही हैं. रूबी के एक हाथ की हड्डी टूट गयी है. उनकी शादी एक दिसंबर को होनी है.
इसके लिए वह इंदौर से आजमगढ़ के मऊ जा रही थीं. भाई-बहनों में सबसे बड़ी रूबी के साथ उनकी बहनें 18 वर्षीय अर्चना तथा 16 वर्षीय खुशी, भाई अभिषेक तथा विशाल और पिता राम प्रसाद गुप्ता थे. उनके पिता हादसे के बाद से लापता हैं. इस परिवार के साथ उनके पारिवारिक दोस्त राम प्रमेश सिंह भी यात्रा कर रहे थे. रूबी ने कहा, ‘मैंने हर जगह देखा लेकिन मुझे मेरे पिता नहीं मिले. कुछ लोगों ने मुझे उन्हें अस्पताल और मुर्दाघर में खोजने को कहा है, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं. मैं नहीं जानती कि अब मेरी शादी निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक होगी या नहीं. अभी तो मैं पिता को ढूंढ़ना चाहती हूं.’ रूबी अपने साथ शादी के कपड़े और गहने लेकर चली थीं, वह भी उन्हें नहीं मिल रहे. उन्होंने अभी तक शिकायत दर्ज नहीं करवायी है.
इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन में सवार दूल्हा समेत दो परिवार शादी में शरीक होने जा रहा था, लेकिन उनका वहां पहुंचना किस्मत नहीं है, यह किसी को नहीं पता था. कानपुर के पुखरायां में हुए भीषण ट्रेन हादसे में इस परिवार के पांच लोगों की मौत हो गयी है. ये लोग गाजीपुर के ब्रह्मानंद गांव के रहनेवाले थे. इनमें दूल्हा भी शामिल था. वाराणसी का रहनेवाला एक दूसरा परिवार भी शादी में शामिल होने के लिए इस ट्रेन में सफर कर रह था.
इस परिवार के भी पांच लोग शिकार हो गये. दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन में वाराणसी के कुल 517 यात्री सवार थे. इसमें ज्यादा यात्री एस-1 और एस-2 कोच में सवार थे. दुर्घटना में सबसे ज्यादा इन्हीं दो कोचों को नुकसान पहुंचा है. एस-2 में ही इस परिवार के पांच लोग सवार थे, जो तीन दिसंबर को होनेवाली शादी में शामिल होने जा रहे थे. फूलपुर पिंडारा के रहनेवाले इस परिवार में पति-पत्नी समेत तीन बच्चों की मौत हो गयी. इसमें संजय श्रीवास्तव, उनकी पत्नी प्रतिमा श्रीवास्तव और उनके बच्चे सुरभि, अभय और सुहानी शामिल थी. संजय की चचेरी बहन की शादी 23 नवंबर को है, जिसमें शामिल होने के लिए वे आ रहे थे. एक दूसरा परिवार जो शादी में शामिल होने के लिए गाजीपुर के ब्रह्मानंद गांव जा रहा था, भी खत्म हो गया. इसमें दूल्हा भी शामिल था.
देवदूत बन कर सामने आये ग्रामीणों ने की मदद
ट्रेन हादसे में घायल यात्रियों को मदद करने के लिए पुखरायां के आसपास के लोग देवदूत बन कर सामने आये और जहां तक बन पड़ा उन्होंने मदद की. घटनास्थल से निकट के गांव की दूरी करीब डेढ़-दो किमी है. स्थानीय लोगों ने बताया कि तड़के एक जोरदार आवाज सुनी गयी. ऐसा लगा कि कहीं बम विस्फोट हो गया. तभी लोगों की चीखने-पुकारने की आवाज आने लगी. ग्रामीण आवाज की ओर दौड़ गये. लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं.
तब तक पुलिस या रेस्कयू टीम भी नहीं आयी थी. खुद की पहल पर ग्रामीणों ने कई घायलों को अस्पताल पहुंचाया. पांच किमी दूर से आये एक पूर्व सैनिक घायलों को निकालने में जुटे रहे. उनके कपड़े खून से रंग गये थे. यहां तक कि एक स्थानीय स्कूल के बच्चे पहुंच गये. स्कूल के बसों को घायलों को मुख्य सड़क तक पहुंचाने में लगाया गया. घायलों के परिजनों को खाने-पीने का सामान भी गांव के लोगों ने बांटे.
इस हादसे में अपनों को गंवानेवालों के दुख और उनकी पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. उसके इस असहनीय दुख में पूरा देश उनके साथ है. रेलवे इस हादसे के कारणों की गहन जांच करेगा, जवाबदेही तय करेगा और समुचित दंडात्मक कार्रवाई करेगा. जहां तक संभव हो, लोगों को बचाने के लिए प्रभावी इलाज मुहैया कराया जाये.
सोिनया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष
हादसा क्यों और कैसे हुआ, यह जांच का िवषय है. हमारी पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है. यह राजनीित करने का समय नहीं हैं. मैंने मंत्रियों और अफसरों को मौके पर भेजा है. राहत व बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चलाने के निर्देश दिये हैं. मैने रेल मंत्री से भी बात की है. घायलों को शीघ्र यथोचित इलाज की सुविधा देना हमारी प्राथमिकता है.
अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
राज्य के छत्तरपुर व दतिया जिलों से बचाव टीमें दुर्घटनास्थल पर भेजी गयी हैं. हादसे में जख्मी हुए प्रदेश के यात्रियों का मुफ्त इलाज किया जायेगा. दुर्घटना में मारे गये उनके राज्य के लोगों के परिवारों के लिए दो-दो लाख रुपये तथा घायलों के लिए 50-50 हजार रुपये दिये जायेंगे. हादसे में हताहत लोगों के परिजनों को ईश्वर शांति प्रदान करें
शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश
एस-1 कोच की बर्थ संख्या-24 पर सफर कर रहे आजमगढ़ के निवासी दीपक (20) करीब 10 घंटे तक कोच के छत की लोहे की चादर और बर्थ के बीच बुरी तरह दबे रहे. हिलना-ढुलना तो दूर, सांस लेना तक मुश्किल था. उनका दाहिना पैर रेलिंग में फंसा था और बगल में दो यात्रियों के शव पड़े थे. मदद की गुहार लगाता रहा, लेकिन आवाज बाहर नहीं जा रही थी. दो सिपाही उसके पास पहुंचे, लेकिन वे लोहे की चादर को नहीं उठा पाये. फिर आठ लोगों ने मिल कर लोहे की चादर उठा कर दीपक को बाहर निकाला. दीपक इंदौर की एक प्लास्टिक फैक्टरी में काम करनेवाले पिता से मिल कर लौट रहा था. टिकट कंफर्म नहीं था, तो अपने एक परिचित के साथ बर्थ पर सो रहा था.
ट्रेन हादसे के बाद मौक पर सेना ने मोर्चा संभाल लिया है. जीवनदाता बन कर आये सेना के जवानों ने ट्रेन में फंसे एक बच्चे को जिंदा निकाला. बच्चा गंभीर रूप से घायल था. क्रेन की मदद से एक के ऊपर एक चढ़े रेल के डिब्बों को हटाया जा रहा है. सेना ने कहा कि वह पूरी रात बचाव अभियान चलायेगी. इस बीच, सेना ने घटनास्थल पर मलबे को हटाने के लिए अपने आर्मर्ड रिकवरी वाहन को काम पर लगाया है. सेना के बचाव अभियान में 90 बचाव कर्मी और पाचं चिकित्सकों समेत 50 सदस्यीय मेडिकल टीम शामिल हैं. सेना के कानपुर स्टेशन कमांडर, ब्रिगेडियर बी एम शर्मा ने कहा कि सेना, सिविल प्रशासन और एनडीआरएफ समेत अन्य सभी एजेंसियों के संपर्क में है.
रेल हादसे के बाद टि्वटर पर कुछ टि्वट्स संवेदना भरे रहे, तो कुछ लोगों ने सरकार के प्रति नाराजगी भी जाहिर की. हादसे के बाद ही टि्वटर पर कानपुर ट्रेंड करने लगा.
… और कहां हम बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे हैं. प्रभु, हमे बुलेट नहीं, सेफ सफर चाहिए.
मनीष कुमार
बुलेट ट्रेन की जगह हमें सुरक्षित यात्रा चाहिए. सरकार पहले सुरक्षित सफर तय करे.
प्रशांत भारती
पहले हमें तय करना होगा, हमें सफर चाहिए या मौत. बुलेट ट्रेन नहीं चाहिए. हमें सुरक्षित घर भेजिए.
अाकीब सिद्दकी
रेलवे को किराया बढ़ाने से मतलब है. मंत्रालय टिकटों का दाम बढ़ाना ही जानता है. उसे हमारी सुरक्षा से मतलब नहीं है.
शुभम अग्रवाल
देश को बुलेट ट्रेन का जुमला देने वाले प्रधानमंत्री जी, पहले ट्रेन पटरियों की मरम्मत करवाइए.
भूपेंद्र सिवाह
दुखद घटना है. जितनी तैयारी हम बुलेट ट्रेन की कर रहे, उसका आधा भी ध्यान सुरक्षित यात्रा की ओर नहीं दिया जा रहा है. वी नीड सेफ, नॉट बुलेट.
पवन दुबे
रेलवे के रख-रखाव पर ध्यान देने की जरूरत
आर के सिंह
पूर्व चेयरमैन, रेलवे बोर्ड
रेल हादसे ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि रेलवे में रख-रखाव की समस्या है. रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने जिस तरह से रेल फ्रैक्चर की बात कही है, वो चिंताजनक है. पूरी स्थिति का पता तो जांच के बाद ही चल पायेगा, लेकिन रेल राज्य मंत्री ने दुर्घटना की आशंका जिस ओर व्यक्त की है, वास्तव में वह चिंताजनक है. रेल राज्य मंत्री को अधिकारियों की ओर से ही इनपुट दिया गया होगा, जिसके आधार पर उन्होंने रेल फ्रैक्चर की बात कही है.
यदि ऐसा हुआ है, तो यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक बात है. रेल फ्रैक्चर या ट्रैक पर बेंड को आसानी से रोका जा सकता है. इसकी आशंका जाड़े में बनती है, इसलिए जाड़े से पूर्व अल्ट्रासोनिक चेकिंग की जाती है. औचक निरीक्षण किया जाता है. 10 डिग्री से कम तापमान होने पर भी इस तरह के रेल फ्रैक्चर की संभावना नहीं रहती है. इसलिए कहीं-न-कहीं लापरवाही हुई है, जिससे इस तरह की दुर्घटना घटी है. इस पर रेल मंत्रालय को ध्यान देना चाहिए.
रेल मंत्री सुरेश प्रभु अच्छा काम कर रहे हैं. रेलवे के मेंटेनेंस के लिए पहले की तरह आज पैसे की कोई ज्यादा दिक्कत नही है. निवेश के माध्यम से पैसा आ रहा है. एफडीआइ के जरिये पैसे जुटाये जा रहे हैं. पहले की तरह अब बजटरी सपोर्ट की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. कुछ लोग रेल चक्के में गड़बड़ी, तो कुछ लोग रेल पहिया के जाम होने की आशंका जता रहे हैं. जो भी हो, ये सारी बातें रख-रखाव से संबंधित है और यह भयानक हादसा है, जिसे रोका जा सकता था. इसलिए इस दिशा में रेल मंत्रालय को विशेष फोकस करने की जरूरत है, जिससे भविष्य में इस तरह की दुर्घटना को रोका जा सके.
एक बात और ध्यान देने की है कि रेल बेल्ट फ्रैक्चर होता है तो जरूरी नहीं कि हादसा भी तभी होता है. कई गाड़ियों के गुजरने के बाद हादसा हो सकता है. इसलिए जरूरी नहीं है कि रेल बेल्ट फ्रैक्चर हुआ और सबसे पहले आनेवाली गाड़ी डिरेल हो गयी. उस परिस्थिति में भी समय पूर्व ध्यान दिया गया होता, तो इसे रोका जा सकता था.
जहां तक सेफ्टी की बात है, तो पूर्व रेल मंत्री नीतीश कुमार के समय अलग से 17000 करोड़ रुपये का सेफ्टी फंड बनाया बनाया गया था, जिसका उपयोग रेल पटरियों को दुरुस्त करने के साथ ही पुल-पुलियों के निर्माण में भी किया गया. वर्तमान रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने सेफ्टी फंड के लिए एक लाख करोड़ रुपये के प्रावधान करने की घोषणा की है, लेकिन इस दिशा में अब तक पूरी सफलता नहीं मिल पायी है. इसलिए इस तरह के हादसों को रोकने के लिए जरूरी है कि रेलवे के रख-रखाव पर पूरा ध्यान दिया जाये साथ ही सुरक्षा और संरक्षा पर जोर दिया जाये, जिससे हादसे न हो और लागों को रेल पर भरोसा भी कायम रहे.
(अंजनी कुमार सिंह से बातचीत पर आधारित)
बड़े ट्रेन हादसे
इंदौर-पटना एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से एक बार फिर भारतीय रेल की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं. आइए वर्ष 1981 से लेकर 2016 तक हुई बड़ी ट्रेन दुर्घटनाओं पर नजर डालें.
06 जून, 1981: बिहार में तूफान के कारण ट्रेन नदी में जा गिरी.
800
लोगों की मौत.
28 मई, 2010 : पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में नक्सली हमले में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पटरी से उतरी. 148 लोगों की मौत.
09 सिंतबर, 2002 : बिहार के औरंगाबाद जिले में हावड़ा-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस के 14 डिब्बे धावी नदी में गिरे, 100 लोगों की मौत हो गयी.
02 अगस्त, 1999 : असम के गायसल में 2,5000 यात्रियों को लेकर जा रही दो ट्रेनें आपस में टकरायीं. 250 लोगों की मौतद हो गयी.
26 नवंबर, 1998 : पंजाब के खन्ना में जम्मू-तवी-सियालदा एक्सप्रेस फ्रंटियर मेल दुर्घटनाग्रस्त. 212 लोगों की मौत हो गयी.
14 सितंबर, 1997 : मध्य प्रदेश के बिलासपुर में अहमदाबाद-हावड़ा एक्सप्रेस के पांच डिब्बे नदी में गिरे. 81 लोगों की मौत
20 अगस्त, 1995 : यूपी के फिरोजाबाद में पुरुषोत्तम एक्सप्रेस ने कालिंदी एक्सप्रेस को टक्कर मारी. 400 लोगों की मौत हो गयी.
18 अप्रैल, 1988 : यूपी के ललितपुर के पास कर्नाटक एक्सप्रेस पटरी से उतरी. 75 लोगों की मौत.
08 जुलाई, 1988 : केरल में आइलैंड एक्सप्रेस अशतामुदी झील में गिरी. 107 लोगों की मौत.
हावड़ा-कानपुर मार्ग की ट्रेनें प्रभािवत
चार ट्रेनें रद्द: झांसी-लखनऊ इंटरसिटी (11110, 11109), झांसी-कानपुर पैसेंजर (51804, 51803) ट्रेन रद्द.
14 का रास्ता बदला : लखनऊ-लोकमान्य तिलक टर्मिनस (12108), वाराणसी-अहमदाबाद साबरमति एक्सप्रेस (19168), गोरखपुर-लोकमान्य तिलक टर्मिनस कुशीनगर एक्सप्रेस (11015, 11016), कोलकाता-झांसी (11105), छत्रपति शिवाजी टर्मिनस-लखनऊ पुष्पक एक्सप्रेस (12534), ग्वालियर-बरौनी मेल (11124, 11123). लखनऊ-लोकमान्य तिलक टर्मिनस एक्सप्रेस (12108), गोरखपुर-यश्वंतपुर एक्सप्रेस (15015), भोपाल-लखनऊ एक्सप्रेस (12594), लोकमान्य तिलक टर्मिनस-प्रतापगढ़ एक्सप्रेस (12173), लोकमान्य तिलक टर्मिनस-सुल्तानपुर एक्सप्रेस (12143) का रास्ता बदला गया है.
िबहार-झारखंड के घायल यात्री
नवीन कुमार तिवारी, पुत्र नागेंद्र तिवारी (55), पलामू झारखंड
प्रकाश कुमार, पुत्र वीरेंद्र प्रकाश (22), पटना
रेखा देवी, पत्नी प्रमोद कुमार (45), पटना
मदन राम, पुत्र अजीत राम (62), पटना
प्रमोद, पुत्र शिवशंकर (45), महाराजगंज पटना
फुलादेवी, पत्नी हरीलाल (70), पटना
सुनील, पुत्र बीएल दाम (46), पटना
मालती शर्मा, पत्नी दयाराम शर्मा (45), बिहार
आशी, पुत्री कुमार आनंद (13), पटना
रविंद्र पंडित, पुत्र उपलाल पंडित (35), पटना
उत्तम कुमार, पुत्र सतीश कुमार (24) बिहार
अशोक कुमार, पुत्र यदुवेंद्र (48), पटना
रामू, पुत्र दामू चकर (40), पटना
संजीत कुमार, पुत्र सत्यनारायण (26) पटना
काकोदकर कमेटी की अनुशंसा की अनदेखी
अंजनी कुमार सिंह
नयी दिल्ली : रेल मंत्री सुरेश प्रभु के गंभीर प्रयासों के बाद भी रेल का सफर सुरक्षित और सुहाना नहीं बन पा रहा है. इंदौर-पटना ट्रेन दुर्घटना को लेकर तरह-तरह की आशंका जतायी जा रही है.
एक ओर हादसे की वजह जहां रेल की पटरियों में दरार आने या पटरियों के मुड़ जाने की बात कही रही हैं, वहीं कुछ प्रत्यक्षदर्शी एस-2 कोच में असामान्य आवाज होने और व्हील के टूटने की बात भी बता रहे हैं. यह हादसा ऐसे समय में हुआ है, जब देशभर के रेल अधिकारी रेलवे के कायाकल्प के लिए तीन दिन से सूरजकुंड में जुट कर रेल के विकास और सफर को सुहाना बनाने की दिशा में गहन चरचा कर रहे थे.
काकोदकर कमेटी ने रेलवे के रख-रखाव की दिशा में जो सलाह दी थी, उस पर अब तक अमल नहीं किया गया है. कमेटी ने कई तरह की गड़बड़ियों की ओर इशारा किया था, लेकिन संसाधन की कमी का हवाला देकर कमेटी की रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया. सूत्रों का कहना है कि जनरल मैनेजर को ज्यादा अधिकार मिलने के बाद से वह रेलवे बोर्ड की सुनते नहीं है.
पहले किसी भी तरह की जरूरत या दिक्कतों के लिए जीएम, बोर्ड मेंबर या चेयरमैन से निर्देश लेते थे, लेकिन अब वह सीधे रेल मंत्री को रिपोर्ट कर रहे हैं. इसलिए कई मामलों में बोर्ड मेंबर को भी बहुत कुछ पता नहीं चल पाता है. रेलवे के विभिन्न विभागों में तैनात कर्मचारी अधिकारियों के घर के काम-काज में लगे होते हैं, जबकि उनका रिपोर्टिंग स्पॉट पर दिखाया जाता है. यही नहीं, सरकार के स्वच्छता कार्यक्रम में बहुत सारे अधिकारियों को लगा दिया गया है. बोर्ड के अलावा जोनल ऑफिसों में भी अफसरों की एक टीम बनायी गयी है, जिनका काम ट्वीटर, फेसबुक, मेल का जवाब देना भर रहा गया है.
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