पटना : देश के जानेमाने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, रीतिका खेरा और सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा है कि बिहार में अनाज के बदले कैश योजना को नहीं लागू करना चाहिए. केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को कहा है कि इसे हर हाल में लागू किया जाये लेकिन यह सही नहीं है. बिहार की सरकार भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया है लेकिन इसके कई नुकसान हैं. जिन दो राज्यों झारखंड और राजस्थान में इसे लागू किया गया है वहां बहुत ही बुरा हाल है योजना का. लोगों को राशन भी नहीं मिल रहा है और टेक्नोलॉजी का साइड इफेक्ट दिखाई दे रहा है.
रीतिका ने बताया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि आधार मैंडेट्री नहीं है तो फिर क्यों इस पर सरकारें फोकस कर रही हैं. जैसे ही पास मशीनें लगेंगी, लोगों को इसका लाभ नहीं मिलने लगेगा. राजस्थान और झारखंड में 62 प्रतिशत लोगों को ही अनाज मिल रहा है बाकी को मशीनें ही रिजेक्ट कर दे रही हैं. सभी वक्ता नवज्योति निकेतन, कुर्जी में कैश ट्रांसफर योजना पर राज्य स्तरीय विमर्श के बाद मीडिया को संबोधित कर रहे थे.
बिहार में क्यों नहीं लागू होना चाहिए ? : ज्यां द्रेज ने कहा कि बिहार में पीडीएस सिस्टम में सुधार हुआ है वैसे में कैश को लागू करने का कोई ज्यादा हड़बड़ी नहीं होनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि सभी लोग कैश से डरते हैं लेकिन एक डर है कि कैश ट्रांसफर महंगाई के अनुसार नहीं बढ़ेगा. यानी पैसा मिलने पर वे उतना अनाज नहीं खरीद पाएंगे जितना उन्हें अभी पीडीएस से मिलता है. दूसरा यह कि बिहार जैसे राज्य में जहां सैकड़ों पंचायतों में कैश ट्रांसफर की प्राॅपर व्यवस्था नहीं है, यानी बैंक की कमी है, बैंक काफी दूर हैं, रास्ते दुर्गम हैं और बैंकों का व्यवहार बहुत खराब रहता है. वहां पैसा निकालना बहुत ही बुरा अनुभव है. तीसरा तो यह है कि कैश का दुरुपयोग आसानी से हो सकता है. राशन का दुरुपयोग नहीं होगा लेकिन पैसे अन्य मदों में खर्च हो जाएंगे.