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न माफिया धराये, न बालू उठाव रुका

बालू पर जंग : दियारे की नाकेबंदी बेअसर, पुलिस की कार्रवाई टांय-टांय फिस दियारे में जब-जब गोलियां तड़तड़ाती हैं, तब-तब ही पुलिस जागती है. पटना : बालू में बाहुबलियों का वर्चस्व और हर बार बैरंग लौटती है पुलिस. बालू का अवैध कारोबार करोड़ों में है, राज्य को आर्थिक चोट व पर्यावरण का नुकसान होता है. […]

बालू पर जंग : दियारे की नाकेबंदी बेअसर, पुलिस की कार्रवाई टांय-टांय फिस
दियारे में जब-जब गोलियां तड़तड़ाती हैं, तब-तब ही पुलिस जागती है.
पटना : बालू में बाहुबलियों का वर्चस्व और हर बार बैरंग लौटती है पुलिस. बालू का अवैध कारोबार करोड़ों में है, राज्य को आर्थिक चोट व पर्यावरण का नुकसान होता है. पर, पुलिस तब उठती है, जब दियारे में कारोबार पर वर्चस्व को लेकर गोलियां तड़तड़ाती हैं. पिछले 31 जुलाई को जब दियारे के गैंगवार में एक की जान गयी, तब पटना पुलिस जागी और एसएसपी मनु महाराज, आरा के एसपी व दल-बल के साथ एके-47 लेकर दियारे में पहुंचे.
फिर मुख्य अपराधियों को छोड़ 28 मजदूरों को पकड़ लाये, जो अवैध खनन में लगे थे. तब भी दियारे में पटना-आरा की पुलिस का सर्च अभियान चल रहा है और बालू पर जाकर पुलिसिया खौफ पैदा की जा रही है. हालांकि, यह अलग बात है कि गैंगवार के बाद बालू के सरगना इलाके को छोड़ कर फरार हैं. न तो उनकी गिरफ्तारी हो पायी है और न ही बालू का यह अवैध कारोबार ही रुका है.
रणनीति नहीं, आनन-फानन मेें कार्रवाई कर रही है पुलिस
बालू के गैंगवार को लेकर पटना पुलिस की पहली कार्रवाई सवालों के घेरे में है. पुलिस रणनीति के तहत काम नहीं कर रही है. आनन-फानन में उसकी कार्रवाई जारी है. नतीजा यह है कि मजदूरों की गिरफ्तारी से बिहटा, मनेर और कोइलवर का लोकल फैक्टर पुलिस के खिलाफ हो गया है. विरोध अंदर खाने ही हैं. लेकिन, पुलिस की कार्रवाई को नुकसान पहुंचा रही है. यहां बता दें कि अवैध ही सही पर कारोबार से जुड़ कर लोकल लोग अपनी दाल-रोटी चलाते हैं.
अब इस सूरत में पुलिस लोकल लोगों को फेवर में लेने के बजाय मजदूरी करने वालों पर कार्रवाई करके बुरी तरह फंस गयी है. अब देखना यह है कि पुलिस पूरे मामले में लीपा-पोती करके वापस लौटती है या फिर कुछ नया हथकंडा अपना कर भूल सुधार करती है. पुलिस की अब तक की कार्रवाई देखी जाए तो 28 मजदूर, तीन अपराधी एक साथ पकड़े जा चुके हैं, इसके बाद पुलिस ने छह और अपराधियों को गिरफ्तार किया. इसमें कृष्णा सिंह, अभिमन्यु सिंह, नीरज सिंह, रामबाबू राम, अनिल कुमार एवं शशि कुमार शामिल हैं. लेकिन मुख्य अभियुक्त अभी भी फरार हैं.
नेटवर्क को भेदना अासान नहीं
इस इलाके में एक तरह से पुलिस की कथित नाकेबंदी है. बेसब्री से बालू माफियाओं की तलाश जारी है. लेकिन, बालू के दलदल में उलझी दो जिलों की फोर्स काे अब तक न तो फौजिया हाथ लगा है और न ही सिपाही. उनके तीन गुर्गे भले ही पकड़े गये हैं. लेकिन, एके-47 रखने वाला फौजिया पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है.
फौज का भगौड़ा यह बालू माफिया इतनी आसानी से पुलिस के हाथ नहीं आयेगा. यकीनन वह पुलिस के सामने बड़ा मोरचा भी ले सकता है. उसके गैंग में 30-40 नये अपराधी हैं, जो आधुनिक असलहे से लैस हैं. इनका नेटवर्क भेदना कितना मुश्किल है, यह गैंगवार के 11 दिन के बाद का रिजल्ट बता रहा है. अब तक दोनों माफिया पकड़ में नहीं आये हैं.
फौजिया के गैंग पर नहीं रखी गयी निगरानी
अपराधियों पर निगरानी का पूरा सिस्टम फेल है. यहां बता दें कि वर्ष 2014 में एसएसपी मनु महाराज की टीम ने दियारे में जाकर फौजिया को पकड़ा था. उसके साथ निपेंद्र समेत कुल नौ लोग पकड़े गये थे. एके-47 समेत भारी संख्या में असलहा पकड़ा गया था.
लेकिन, गिरफ्तारी के बाद जब फौजिया जेल चला गया, तो पुलिस ने उस पर से नजर हटा लिया. वह कब जमानत पर बाहर आया और कब से दोबारा बालू घाट पर सक्रिय हो गया, पुलिस को भनक तक नहीं लगी. उस पर निगरानी नहीं रखी गयी. नतीजा यह हुआ कि फौजिया ने नया गैंग खड़ा कर लिया. अब जब गैंगवार हो गया है, तब पुलिस की नींद टूटी है.

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