पटना : मशहूर हिंदी लेखक कृष्ण चंदर की कहानी ‘जामुन का पेड़’ को काउंसिल फॉर इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआइएससीइ) ने 10वीं के सिलेबस से हटा दिया है. बोर्ड परीक्षा से पहले ही आइसीएसइ ने नोटिस जारी कर कहा है कि 2020 और 2021 की बोर्ड परीक्षाओं में इस कहानी से जुड़े सवाल नहीं पूछे जायेंगे.
काउंसिल के सेक्रेटरी और चीफ एग्जीक्यूटिव गैरी आरथून ने नोटिस जारी कर सभी स्कूलों को कहा है कि यह जानकारी स्टूडेंट्स और संबंधित शिक्षकों को दे दें. स्टूडेंट्स को 2020 और 2021 की परीक्षाओं की तैयारी के दौरान इस कहानी पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि नोटिस में यह नहीं बताया गया है कि ऐसा क्यों है या कहानी को लेकर किस बात पर आपत्ति है.
हालांकि ‘जामुन का पेड़’ कहानी लाल फीताशाही पर एक प्रसिद्ध व्यंग्य है. लोगों का मानना है कि व्यंग्य को देखते हुए ही यह निर्णय लिया गया है. गौरतलब है कि ‘जामुन का पेड़’ कहानी आइसीएसइ की 10वीं कक्षा के हिंदी में शामिल है. 2015 से यह सिलेबस का हिस्सा थी. यह कहानी 1960 में लिखी गयी थी.
कुछ इस प्रकार है कहानी
यह एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो मशहूर कवि है. वह कवि तूफान के दौरान सचिवालय के लॉन में खड़े जामुन के पेड़ के नीचे दब जाता है.
लॉन का माली दबे हुए शख्स को बचाने की पहल करता है. वह इस बारे में चपरासी को जानकारी देता है. चपरासी यह मामला क्लर्क पर छोड़ देता है. मामला बिल्डिंग सुपरिटेंडेंट से होते हुए उच्चाधिकारियों तक पहुंच जाता है. पेड़ के नीचे दबा शख्स बचाने की गुहार लगाता रहता है और मामला चार दिन बाद चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचता है. इसके बाद, दोबारा से एक दूसरे पर जिम्मेदारियां थोपने का दौर चलता है.
मामला कृषि, वन विभाग से लेकर संस्कृति विभाग तक पहुंचता है. संस्कृति विभाग के पास इसलिए क्योंकि दबा हुआ शख्स कवि था. कहानी के मुताबिक, संस्कृति विभाग का अधिकारी मौके पर पहुंचता है और उस किताब की तारीफ करता है, जिसकी वजह से कवि को अवॉर्ड मिल चुका है. हालांकि, वह कवि से यह भी कहता है कि उसे बचाना उसका काम नहीं है. इसके बाद फाइल हेल्थ डिपार्टमेंट के पास पहुंचती है, जो इसे विदेश मंत्रालय भेज देता है.
विदेश मंत्रालय इसलिए क्योंकि पेड़ को पड़ोसी मुल्क के पीएम ने लगाया था. हालांकि विदेश मंत्रालय ने पेड़ काटने के प्रस्ताव को यह कह कर खारिज कर दिया कि इससे उस देश से रिश्ते खराब हो जायेंगे. मामला प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचा, लेकिन वह विदेश दौरे पर थे. लौटने के बाद उनके सामने यह प्रस्ताव रखा गया और आखिरकार कवि को बचाने के लिए पेड़ काटने की मंजूरी दी गयी, लेकिन पीएमओ से जब वह आदेश अधीक्षक के पास पहुंचा, तब तक कवि की मौत हो चुकी थी.