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पटना : 2021 की जनगणना शुरू, गांवों की गिनती अंतिम चरण में, अब आयेगी शहरों की बारी
जनगणना में ओबीसी के आंकड़े भी किये जायेंगे शामिल शशिभूषण कुंवर पटना : 2021 की जनगणना की शुरुआत हो चुकी है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने इससे संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है. पहले चरण में गांवों की गिनती की जाती है. गांवों की गिनती के बाद इस आधार पर जनसंख्या से संबंधित विभिन्न आंकड़े […]
जनगणना में ओबीसी के आंकड़े भी किये जायेंगे शामिल
शशिभूषण कुंवर
पटना : 2021 की जनगणना की शुरुआत हो चुकी है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने इससे संबंधित अधिसूचना जारी कर दी है. पहले चरण में गांवों की गिनती की जाती है.
गांवों की गिनती के बाद इस आधार पर जनसंख्या से संबंधित विभिन्न आंकड़े जुटाये जाते हैं. बिहार के डिप्टी रजिस्ट्रार जनरल पीके चौधरी ने बताया कि बिहार में जनगणना के आरंभिक कार्य हो चुके हैं. सूबे के गांवों की गिनती का काम अंतिम चरण में है. गांवों की गिनती पूरी होने के बाद शहरों की गिनती शुरू होगी.
इसके बाद लोगों की गिनती की जायेगी. वहीं, केंद्र सरकार ने 2011 और 2021 की जनगणना के बीच सामाजिक आर्थिक व जातीय जनगणना (एसईसीसी) भी करायी है.
एसईसीसी के आधार पर ही केंद्र सरकार द्वारा खाद्यान्न की आपूर्ति की जाती है. साथ ही इसी आंकड़े के आधार पर प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभुकों का चयन होता है. डिप्टी रजिस्ट्रार जनरल ने बताया कि जिला और प्रखंडों के माध्यम से गांवों से संबंधित सूचनाएं मंगायी जा रही हैं.
गांवों के आंकड़ों के संग्रह में यह देखा जायेगा कि 2011 की जनगणना के अनुसार बसावटों में क्या परिवर्तन हुए हैं. यह भी हो सकता है कि जहां पर 10 साल पहले कोई गांव नहीं था, अब वहां पर नयी बसावट हो गयी हो.
इससे यह सूचना भी मिल जायेगी कि बसावटों में क्या बदलाव आया है. प्रारंभिक स्तर पर गांवों का आंकड़ा प्राप्त होने के बाद शहरों की गिनती शुरू कीजायेगी. इसी तरह से चरणबद्ध तरीके से दूसरी सूचनाओं के संग्रह का काम शुरू होगा.
पिछली जनगणना में जातीय आंकड़े नहीं हुए थे जारी
केंद्र सरकार ने 2021 की जनगणना में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के आंकड़ों को शामिल करने की घोषणा की है. देश में कई समूहों द्वारा इसकी मांग की जाती रही है. भाजपा 2019 के चुनाव में इसकी घोषणा कर इस मुद्दे का जोर-शोर से पिछड़ी जातियों के बीच प्रचारित कर सकती है.
10 साल पर होने वाली जनगणना के आंकड़ों के काम को पूरा करने में करीब तीन साल का समय लगता है. जबकि, इसके आंकड़ों को तैयार कर प्रकाशित करने में सात-आठ साल लग जाते हैं. 1935 के बाद यूपीए सरकार ने पहली बार 2011 में देश में सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना (एसईसीसी) की शुरुआत की थी.
इसका प्रकाशन एनडीए के सत्ता में आने के बाद तीन जुलाई 2015 को किया गया था. एसईसीसी की जनगणना के सामाजिक आर्थिक आंकड़े तो जारी कर दिये गये पर जातीय आंकड़ों को जारी नहीं किया गया. इस जनगणना में सभी जातियों की गिनती की गयी थी. अब 2021 की जनगणना शुरू होने वाली है. इसमें पहली बार किसी विशेष जातियों की भी गणना करायी जायेगी. हालांकि, डिप्टी रजिस्ट्रार ने बताया कि ओबीसी को लेकर अब तक उन्हें केंद्र से कोई निर्देश नहीं मिला है.
ऐसे होगी गिनती
जनगणना में अंतिम जनगणना के आंकड़ों के अलावा उम्र से संबंधित आंकड़े, नि:शक्तता के आंकड़े, शिक्षा से संबंधित आंकड़े, मातृभाषा से संबंधित आंकड़े, धर्म के आधार पर आबादी के आंकड़े, अनुसूचित जाति से संबंधित आंकड़े, अनुसूचित जनजाति से संबंधित आंकड़े, घरों की सुविधाओं से संबंधित आंकड़े, कामगारों के आंकड़े, शादीशुदा लोगों के आंकड़े, प्रवासी लोगों के आंकड़े, प्रजनन से संबंधित आंकड़े और अंत में जनगणना के बाद में होने वाले सर्वे का काम होता है.
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