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बिहार : कहीं विलुप्त न हो जाये किउल नदी, बाढ़ के समय भी रहता है इसमें बहुत कम पानी
पटना : कभी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मशहूर रही किउल नदी के किनारे के जंगल अब दूर होते जा रहे हैं. साथ ही इस नदी में लगातार पानी की कमी होती जा रही है. अब बाढ़ के समय भी इसमें पहले जैसा पानी नहीं रहता. इस नदी के बहने वाले रास्ते में दूर-दूर तक […]
पटना : कभी अपनी प्राकृतिक छटा के लिए मशहूर रही किउल नदी के किनारे के जंगल अब दूर होते जा रहे हैं. साथ ही इस नदी में लगातार पानी की कमी होती जा रही है. अब बाढ़ के समय भी इसमें पहले जैसा पानी नहीं रहता. इस नदी के बहने वाले रास्ते में दूर-दूर तक बहुतायत में मिट्टी दिखती हैं. अब यह खतरा मंडराने लगा है कि यह नदी कहीं विलुप्त न हो जाये. इस कारण इस पर आश्रित रहने वाले हजारों मजदूरों और जलीय जीवों का भी जीवन संकट में है.
जमुई शहर से सटे तकरीबन 60 किमी लंबी किउल नदी में कई पाट बन गये हैं. नदी की धार बदल रही है. नदी में कई जगह तो मिट्टी के बड़े-बड़े टीले नजर आने लगे हैं. गरसंडा घाट, कल्याणपुर, बिहारी, खैरमा, मंझबे घाट से अत्यधिक बालू निकाले जाने से नदी का स्वरूप बिगड़ गया है. नदियों में फैली गंदगी की सफाई के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता है.
केवल छठ पर्व के मौके पर ही घाटों की सफाई होती है. जल संसाधन विभाग के सूत्रों की मानें तो किउल नदी पर बने अपर किउल जलाशय योजना से 15 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जाता था. इस जलाशय योजना से लाभान्वित लखीसराय जिले के किसान भी होते थे. लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है.
नदी में अच्छी क्वालिटी के बालू की कमी
जमुई की तरफ किउल नदी के कुछ भाग में ही अब अच्छी क्वालिटी का बालू है. इस नदी में पानी नहीं आने से जलीय प्राणी पहले ही समाप्त हो चुके हैं. बारिश कम होने के कारण पठारी नदियों से जलश्रोत नहीं बन पाने के कारण इस नदी में पानी की कमी दिखती है. पर्यावरणविद इसका कारण नदी का अत्यधिक दोहन मानते हैं.
– उत्तरी छोटानागपुर के पहाड़ों से निकली है नदी : किउल नदी का उद्गम स्थल उत्तरी छोटानागपुर का पहाड़ है. झारखंड के गिरिडीह की तीसरी हिल रेंज से यह नदी जमुई के रास्ते लखीसराय पहुंचती है. हरूहर नदी में मिलकर फिर मुंगेर जिले में गंगा में मिल जाती है.
इस नदी की कुल लंबाई लगभग 111 किमी है. इस दूरी में इसमें दर्जन भर पहाड़ी नदियां मिलती और अलग भी होती हैं. पहाड़ी नदी के कारण ही इस नदी का बालू लाल होता है.
– कभी लबालब भरी रहती थी
नदी: जमुई और लखीसराय की लाइफ लाइन किऊल नदी में कभी लबालब पानी रहता था. पानी के तेज बहाव के कारण पहाड़ों के पत्थरों के टुकड़ों का चूर्ण बालू बनकर पानी के साथ आता था. लेकिन अब हालात अलग हैं.
बारिश के मौसम के बाद नदी लाल रेत से सोने की खेत की तरह चमचमाती थी. लेकिन अब हालात अलग हैं. बारिश कम होने की वजह से पानी के साथ बालू का बहाव अब नहीं के बराबर हो रहा है. यही कारण है कि बालू की क्वालिटी अब पहले जैसी नहीं रही.
पर्यावरणविद आरके सिन्हा का कहना है कि एक समय गंगा सहित कई नदियों के किनारे बड़ी संख्या में पेड़ होते थे. गंगा किनारे झलासी का तो किउल किनारे कई तरह के पेड़ और फिर इसके पीछे जंगल हुआ करता था. इन पेड़ों की जड़ें नदियों किनारे की मिट्टी को पकड़कर रखती थीं. इससे नदी की धार में मिट्टी का कटाव नहीं होता था. अब पेड़ों की कटाई कर दिये जाने से किनारे की मिट्टी कमजोर हो गयी और इनका कटाव शुरू हो गया है. यही हाल किउल का है. इस कारण इसका पेट ऊंचा हो गया.
और इसमें अब पानी नहीं आ रहा. दूसरी बात यह है कि इसका उद्गम छोटानागपुर की पहाड़ी से होने के कारण और बारिश की कमी के कारण भी इस नदी में पानी की कमी हुयी है. यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके साथ ही कई अन्य छोटी नदियां विलुप्त हो जायेंगी.
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