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ऑटो में भेड़-बकरी की तरह ढोये जा रहे बच्चे

पटना : राजधानी के स्कूलों के परिसर से लेकर वाहनों में दुर्घटनाएं हाल के दिनों में भी प्रकाश में आ चुकी हैं. लेकिन स्कूल इसे लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं. राजधानी में ही यह हाल है, तो राज्य के अन्य जिलों की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. स्कूल से लेकर […]

पटना : राजधानी के स्कूलों के परिसर से लेकर वाहनों में दुर्घटनाएं हाल के दिनों में भी प्रकाश में आ चुकी हैं. लेकिन स्कूल इसे लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं. राजधानी में ही यह हाल है, तो राज्य के अन्य जिलों की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
स्कूल से लेकर घर तक बच्चों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व विभिन्न शिक्षा बोर्ड भी अपने-अपने स्तर से दिशानिर्देश जारी कर चुके हैं, बावजूद यहां वाहनों की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं है. अब भी पहले की ही तरह स्कूल बसें दौड़ रही हैं, जिनमें सुरक्षा के समुचित इंतजाम नहीं है. वहीं, ऑटो व अन्य छोटे वाहनों में भेड़-बकरी की तरह बच्चे ढोये जा रहे हैं. जबकि इसे लेकर डीटीओ कार्यालय से लेकर जिला प्रशासन स्कूलों को बार-बार आदेश दे चुका है.
छोटे वाहनों के लिए कोई नियम नहीं : स्कूली बच्चों को आवागमन कर रहे ऐसे कई छोटे वाहन राजधानी की सड़कों पर देखे जा सकते हैं, जिनमें न तो लोहे के तार की जाली लगी है, न ही बच्चों को बैठाने के लिए सीटों की संख्या निर्धारित है. ऑटो में पिछली सीट पर भी बच्चे बेतरतीब बैठे देखे जा सकते हैं, जो सुरक्षा पर सवाल है.
नहीं हो सका समिति गठन न ही जांच
ऑटो व छोटे वाहनों में मनमाने ढंग से बच्चों को बैठाये जाने व सुरक्षा के दृष्टिकोइ से समय-समय पर जिला प्रशासन का भी ध्यान आकृष्ट कराया जाता रहा है. इसी क्रम में सामाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार ने जिला प्रशासन को वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए यथोचित कदम उठाने का आग्रह किया था. वर्ष 2014 में उन्होंने स्कूली बस समेत अन्य छोटे वाहनों के असुरक्षित परिचालन की शिकायत की थी. उसके बाद से अब तक पत्राचार व जांच के अलावा कुछ नहीं हो सका है. इस क्रम में स्कूलों को वाहन समिति का गठन करने का भी निर्देश दिया गया था, ताकि समय-समय पर विचार-विमर्श कर सुरक्षित परिचालन व वाहनों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
– बसों का रंग पीला हो व बाहरी हिस्से में दोनों तरफ स्कूल का नाम काले अक्षरों में लिखा हो
– बस स्कूल की है या किराये की, ‘ऑन स्कूल ड्यूटी’ आदि काले व स्पष्ट अक्षरों में लिखा होना चाहिए
– चालक का नाम, पता, बैज नंबर, लाइसेंस नंबर या बस मालिक का नाम, फोन नंबर, हेल्पलाइन नंबर आदि लिखा होना चाहिए
– बसों की खिड़कियों पर क्षैतिज ग्रिल व लोहे के तार की जाली लगी होनी चाहिए
– दरवाजे में लॉक हो, आपातकालीन दरवाजे हों, स्पीड गवर्नर लगा हो, गति सीमा 40 से अधिक न हो
– चालक की खिड़की व आपातकालीन दरवाजे के पास अग्निशामक यंत्र लगा हो
– जीपीएस व सीसीटीवी कैमरे से लैस हो, उसमें फर्स्ट एड बॉक्स भी जरूरी है
– स्कूल में एक ट्रांसपोर्टिंग मैनेजर, जो सुरक्षा को लेकर जिम्मेदार हो
– चालक को पांच वर्ष ड्राइविंग का अनुभव, वैध लाइसेंस के साथ
– हर बस में महिला गार्ड की तैनाती
– हाल की घटनाएं हैं इसका उदाहरण : हाल ही में राजधानी से सटे हिस्सों में दो बस दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. इसमें एक घटना मसौढ़ी की है, जो पिछले ही महीनों हुई थी. बस को ड्राइवर की जगह खलासी चला रहा था. जिस कारण दुर्घटना हुई. उसके बाद दानापुर में एक दुर्घटना हुई. बस में आग लग गयी, हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन बताया गया कि बस में अग्निशामक यंत्र नहीं था.
-स्कूली बसों में भी उड़ रही नियमों की धज्जियां
यहां की स्कूली बसों में सुरक्षा नियम व मापदंडों की धज्जियां उड़ रही है. जबकि सीबीएसइ ने स्कूली बसों को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया है. खिड़कियों में लोहे के तार की जाली भी लगायी जानी है, ताकि बच्चे सिर या हाथ बाहर न निकाल सकें. आये दिन इन बसों में कहीं
बच्चों की भीड़ तो कहीं खिड़कियों से उनके हाथ बाहर निकले नजर आते हैं. इसके अलावा बसों में अग्निशमन यंत्र समेत अन्य आवश्यक उपकरण भी नहीं लगे हैं. ड्राइवर-कंडक्टर पर नियंत्रण नहीं
रहने के कारण दुर्घटनाएं भी प्रकाश मेंआती रही हैं.
-वर्ष 2014 में ही डीटीओ ने दिया था निर्देश
उसके बाद 25 अग्त 2014 को तत्कालीन जिला परिवहन पदाधिकारी ने सभी स्कूलों के प्राचार्य व प्रबंधन को पत्र के माध्यम से सुरक्षा के मसले पर संयुक्त बैठक करने तथा सुरक्षित परिचालन सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया था. इसके साथ समस्या का शीध्र समाधान कर स्कूलों से 15 दिनो के अंदर संबंधित वाहनों की सूची तलब की गयी थी. लेकिन, वाहनों की स्थिति अब भी जस-की-तस है.

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