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बिहार : ऐसे बढ़ रहा है मरीजों पर संक्रमण का खतरा

न्यू बाईपास एरिया में सड़क किनारे अस्पताल के ओटी तक धूल पटना : न्यू बाईपास इलाके के प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती मरीज संक्रमण के साये में हैं. क्योंकि, यहां के अस्पताल संचालक ओटी के नियम को ताक पर रख कर मरीजों का ऑपरेशन करा रहे हैं. मुख्य सड़क किनारे बने अस्पताल के ओटी तक धुल […]

न्यू बाईपास एरिया में सड़क किनारे अस्पताल के ओटी तक धूल
पटना : न्यू बाईपास इलाके के प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती मरीज संक्रमण के साये में हैं. क्योंकि, यहां के अस्पताल संचालक ओटी के नियम को ताक पर रख कर मरीजों का ऑपरेशन करा रहे हैं.
मुख्य सड़क किनारे बने अस्पताल के ओटी तक धुल पहुंच चुकी है. क्योंकि, ये अस्पताल जहां मेन रोड पर संचालित हैं यहां रोजाना सैकड़ों गाड़ियां गुजरती हैं. नतीजन यहां के ओटी में संक्रमण का खतरा अधिक हो गया है. मजे की बात तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक यहां के ओटी की जांच भी नहीं की है.
जबकि, नियमानुसार हर 15 दिन बाद संक्रमण की जांच होनी ही चाहिए. डॉक्टर भी मानते हैं कि अमूमन जांच में गंभीर बीमारियां देनेवाले जीवाणु (बैक्टीरिया) मिलते ही हैं और नवजात व मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है. बिहार में आम मरीजों के अलावा अधिकांश प्रसूताएं संक्रमण की चपेट में हैं.
स्त्री व प्रसूति रोग डॉक्टरों के एसोसिएशन के आंकड़ों की मानें, तो बिहार में हर 100 में 10 ऐसी प्रसूताएं होती हैं जिनकी डिलिवरी के बाद भी संक्रमण रहता है. इसके साथ उनके बच्चे भी इस चपेट में है. महिला डॉक्टरों के एसोसिएशन में यह बात सामने आयी है कि ऑपरेशन के बाद वाली महिलाएं किसी-न-किसी गड़बड़ी के कारण संक्रमण की चपेट में आती हैं.
क्या है ओटी के मानक और नियम
एक ऑपरेशन थियेटर में डबल डोर होता है. दूषित हवा ओटी तक न जाये इसकी व्यवस्था होनी चाहिए, यदि कहीं पर सिंगल डोर की ओटी है, तो वो मानक विपरीत है. साथ ही हर ऑपरेशन के बाद ओटी और उपयोगी संसाधन को संक्रमण रहित करना चाहिए. इतना ही नहीं ओटी में लगे एसी, पंखे, दीवार, फर्श आदि सभी की सफाई रोजाना दिन में दो से तीन बार होनी चाहिए. लेकिन, बाइपास एरिया के प्राइवेट अस्पताल इस नियम का पालन नहीं करते हैं.
नहीं हो रहा ओटी के कल्चर का टेस्ट
राजधानी के प्राइवेट अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटर में ओटी कल्चर की जांच नहीं हो रही है. ओटी की जांच सिर्फ पीएमसीएच, आईजीआईएमएस, गर्दनीबाग सरकारी अस्पताल व एनएमसीएच अस्पताल में ही होती है. लेकिन, स्वास्थ्य विभाग की टीम सरकारी ऑपरेशन थियेटर छोड़ कर निजी अस्पतालों की जांच नहीं कर रहे हैं. पीएमसीएच के माइक्रोबॉयलोजी विभाग के एक डॉक्टर ने बताया कि प्राइवेट अस्पताल से जांच करने से पहले ही कई तरह के रिक्वेस्ट आने शुरू हो जाते हैं. शायद यही वजह है कि जांच नहीं हो रही है.
हर छह महीने पर जांच जरूरी
आईजीआईएमएस के डॉक्टर रत्नेश चौधरी ने बताया कि हर अस्पताल को अपने ऑपरेशन थियेटरों की जांच छह महीने के अंतराल पर कराते रहना चाहिए. ऐसा न होने से संक्रमण का खतरा बना रहता है.
डॉ चौधरी के मुताबिक ओटी में कोई नया निर्माण हुआ हो, ओटी में इन्फेक्शन का लेवल ज्यादा लगे या कोई नया इंस्ट्रूमेंट लगाया गया हो, तो इसकी जांच जरूर होनी चाहिए. अन्यथा मरीज में संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है. वहीं, सिविल सर्जन डॉ पीके झा का कहना है कि ओटी सबसे सेंसिटिव जोन होता है. यहां के नियम का पालन लिए जरूरी है.
एक नजर यहां भी
– दुष्प्रभाव : घातक बीमारियां दे सकते हैं बैक्टीरिया
– सेंसिटिव जोन में संक्रमण स्तर की जांच में तीन बैक्टीरिया अमूमन मिलते ही हैं
– यदि इन्हें जल्दी समाप्त नहीं किया जाये, तो ये कई अलग-अलग रूप बदल सकते हैं, जो पहले से अधिक घातक भी साबित हो
सकते हैं
– स्टेप्टोकॉकस नामक इस बैक्टीरिया से निमोनिया, सांस लेने में तकलीफ आदि रोग हो सकते हैं
– ई-कोलाई नाम के इस बैक्टीरिया तेज बुखार, यूरिन ट्रैक में संक्रमण, फीड करने में अरुचि पैदा कर सकता है
– साल्मोनेला नामक इस बैक्टीरिया पेट में जाकर कई प्रकार की व्याधियों को पैदा कर सकता है
नोट: शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एनके अग्रवाल ने बचाव व होनेवाली बीमारी के दिये टिप्स
यह होना चाहिए
बचाव के लिए स्टाफ को ग्लव्स, मास्क कैप पहन कर ही मरीज का इलाज करना चाहिए.
परिजनों को भी बिना ग्लव्स, मास्क के मरीज के आसपास नहीं रहना चाहिए
ओटी के फर्श की दिन में तीन बार एंटी माइक्रोबियल लिक्विड से सफाई होनी चाहिए
लेकिन होता यह है
स्टाफ मास्क, कैप व ग्लव्स का इस्तेमाल नहीं करता, कभी-कभी गाउन भी नहीं पहनता
परिजनों पर स्टाफ की ओर से रोक-टोक नहीं है, वे बिना ग्लव्स, मास्क के मरीज व बच्चों को हाथ लगाते हैं
दिन में एक बार भी सफाई मुश्किल से हो पाती है व अगली दो बार औपचारिकता की जाती है

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