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मौसम में बदलाव के बाद तिल का सेवन जरूरी
नवादा (सदर) : मकर संक्रांति में अब कुछ दिन शेष बचा है. बाजार में तिलकुट के साथ-साथ गुड़ व चूड़े की दुकानें सज गयी है. बड़ी दुकानों से लेकर फुटपाथों पर लगने वाली दुकानों तक में इस तरह ही सामग्री दिख रही है. मकर संक्रांति को लेकर तिलकुट, मसका, गुड़ व चूड़ा में स्थानीय स्तर […]
नवादा (सदर) : मकर संक्रांति में अब कुछ दिन शेष बचा है. बाजार में तिलकुट के साथ-साथ गुड़ व चूड़े की दुकानें सज गयी है. बड़ी दुकानों से लेकर फुटपाथों पर लगने वाली दुकानों तक में इस तरह ही सामग्री दिख रही है.
मकर संक्रांति को लेकर तिलकुट, मसका, गुड़ व चूड़ा में स्थानीय स्तर पर बनने वाले समानों की अधिकता है. बाजार में कई क्वालिटी के तिलकुट मिल रहे हैं. चीनी का, गुड़ का, मावा का व तिल कदम धड़ल्ले से बिक रहा है. परंतु, सबसे ज्यादा मांग मावा तिलकुट व तिल कदम की है.
जानकारों का कहना है कि मकर संक्रांति पर चूड़ा, गुड़, तिलकुट व मसका सेवन करने का धार्मिक व पौराणिक महत्व है. तिल ठंड को दूर भगाने वाला होता है. मौसम में बदलाव के बाद तिल का सेवन जरूरी माना जाता है. यह स्वास्थ्यवर्धक भी होता है. पौराणिक ग्रंथों में भी इसका वर्णन है कि तिल देवताओं का प्रिय वस्तु है. विष्णु पूजन में इसका उपयोग होता है. ऐसी मान्यता है कि नयी फसल होने के बाद किसान सुपाच्य भोजन चूड़ा-दही के साथ तिलकुट का सेवन कर जश्न मनाते हैं.
मकर संक्रांति के दिन लोग सुबह में दही-चूड़ा, तिलकुट, गुड़, मसका व शाम में कुल्थी के दाल की खिचड़ी बना कर खाते हैं. जानकारी के अनुसार, कुल्थी का दाल पेट के अंदर के विकारों को दूर करता है. पथरी रोग, वायु वीकार इससे पूर्ण रूप से नष्ट होता है.
लुप्त हो रही पतंगबाजी
पहले मकर संक्रांति व उसके पहले से ही जम कर पतंगबाजी होती थी. यह प्रथा अब न के बराबर देखने को मिलती है. अब इक्का-दुक्का लोग ही पतंगबाजी का मजा लेते हैं. लोग अपने सगे-संबंधियों के यहां चूड़ा-तिलकुट भेजते हैं. खासकर बाहर रहने वाले रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों को सौगात के रूप में भेजा जाता है.
सब्जियों का उठाते हैं लुत्फ
मकर संक्रांति के अवसर पर लोग चूड़ा-दही, तिलकुट, मसका के साथ चटपटी सब्जियों का भी लुत्फ उठाते हैं. पर्व को लेकर सब्जियों की खरीदारी भी बढ़ जाती है. मांग अधिक होने के कारण सब्जियां बाजार से जल्दी गायब हो जाती है.
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