छठी मइया के गीतों से गूंजने लगे गांव-गली व मुहल्ले
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सूर्य की आराधना में तपस्या आज से
छठी मइया के गीतों से गूंजने लगे गांव-गली व मुहल्ले उगते और अस्ताचल सूर्य को अर्घदान की परंपरा नहाय-खाय आज, कद्दु से 10 गुणा ज्यादा दाम में बिक रहा अगस्त का फूल आस्था के इस पर्व में दिखता स्वच्छता और शुद्धता नवादा : नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ […]
उगते और अस्ताचल सूर्य को अर्घदान की परंपरा
नहाय-खाय आज, कद्दु से 10 गुणा ज्यादा दाम में बिक रहा अगस्त का फूल
आस्था के इस पर्व में दिखता स्वच्छता और शुद्धता
नवादा : नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ को लेकर घरों में छठी मईया के गीत गूंजने लगे हैं. बाजारों में भीड़ सुबह से ही खरीदारी करने वालों की लगी रही. इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है. छठ को लेकर लकड़ी और सूप, दौरा का बिक्री भी तेज हो गया है. वहीं गोबर के गोइठा और दूध की मांग भी बढ़ गयी है. हर तरफ लोग छठ की तैयारी में जुटे हैं. यही एक ऐसा त्योहार है जिसमें उगते और अस्त होते भगवान सूर्य को अर्ध देने की परंपरा है.
प्रकृति का साक्षात पूजा होने वाला इस छठ व्रत को कष्टी भी कहा जाता है. इसमें खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद छठव्रती 36 घंटा तक निर्जला उपवास रखती है जो आस्था का सबसे बड़ी उदाहरण है. नहाय-खाय के लिये बाजार में कद्दु के कीमत 10 गुणा अधिक दामों में अगस्त का फूल बेचा जा रहा है. 60 रूपये किलो कद्दु तो 600 रूपये अगस्त का फूल बेचा जा रहा है. चार दिनों तक चलने वाली इस पर्व के हर दिन का अलग है महत्व लोक आस्था के इस महापर्व का शुरूआत आज से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है. मंगलवार 24 अक्तूबर से शुरू होकर शुक्रवार 27 अक्तूबर तक मनाया जाने वाला यह पर्व का हर दिन का अलग ही महत्व है.
नहाय-खाय आज
इस व्रत का प्रथम दिन 24 अक्तूबर को नहाय-खाय से शुरू हो गया है. इस दिन छठव्रती प्रातः काल स्नान आदि कर अरवा चावल, चने की दाल, लौकी तथा अगस्त के फूल से विभिन्न व्यंजन तैयार करती हैं. भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित कर अपने आराध्य के निमित्त व्यंजन अर्पित करती हैं. पूजा के बाद व्यंजन को सबसे पहले छठव्रती ग्रहण करती हैं और फिर परिजन, कुटुम्ब तथा मित्रजनों को वितरित किया जाता है.
खरना कल
छठव्रत के दूसरे दिन खरना बुधवार 25 अक्तूबर को है. छठव्रती प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर दोपहर के बाद फिर से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर घर के नियत कक्ष में आम की लकड़ी से गुड़, अरवा चावल, गाय दूध, गाय की घी आदि से खीर बनाती है. शुद्ध आटे की रोटी भी बनायी जाती है. इसके अलावा कुछ लोग सेंधा नमक से चावल और दाल भी बनाते हैं. परंपराओं के अनुसार विभिन्न प्रकार के सात्विक व्यंजन तैयार किये जाते हैं. शुभ मुहुर्त में शांत भाव से छठी मैया और आराध्य देव की पूजा की जाती है. इस प्रसाद को सबसे पहले छठव्रती ग्रहण करती हैं. इसके बाद इसे परिजन और मित्रजनों में बांटा जाता है.
प्रथम अर्घदान 26 को
गुरुवार 26 अक्तूबर को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घदान (प्रथम अर्घदान) किया जायेगा. इसे डाला छठ भी कहा जाता है. इस दिन व्रती ब्रह्ममुहुर्त से पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर पूजा के निमित्त विभिन्न प्रकार के नेवैद्य तैयार करती हैं. गेहूं आटा, गुड़, गाय घी आदि से पकवान, चावल आटा, तिल, गुड़ से लड्डू व अन्य पकवान बनाया जाता है. इसे सूप में सजाया जाता है. जिसे डलिया में रख कर नदी, तालाब अथवा जलाशय तट पर ले जाया जाता है. वहां अस्तचलगामी सूर्यदेव को अर्ध अर्पित किया जाता है.
द्वितीय अर्घदान 27 को
शुक्रवार 27 अक्तूबर को उदीयमान सूर्यदेव का अर्घ अर्पित किया जायेगा. इस दिन छठव्रती पारन करती है. छठव्रती और श्रद्धालू ब्रह्म मुहुर्त से पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर श्रद्धा के साथ डलिया सजा कर छठ घाट ले जाते हैं. घाट पर छठ गीत गाते सूर्यदेव के उदय होने का इंतजार करते हैं. सूर्य उदित होने के साथ अर्ध अर्पण शुरू हो जाता है.
उसके बाद उदापन की प्रक्रिया के साथ ही छठव्रत का पारन करने बाद महापर्व छठ संपन्न हो जाता है. छठपूजा सामग्री को लेकर जुटने लगी भीड़ छठ महापर्व के लिए बाजारों में सूप व दऊरा के साथ ही अन्य पूजा सामग्रियों की बिक्री तेज हो गयी है. सोमवार को खरीदारी के लिये लोग आपा-धापी करते नजर आ रहे थे. नवादा शहर दिनों भर खचाखच भरा रहा.
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