मुंगेर : हिंदी गजल के सशक्त हस्ताक्षर छंदराज नहीं रहे. वे उस समय से बीमार चल रहे थे. जिंदगी और मौत से जूझते हुए उन्होंने बुधवार की सुबह अंतिम सांस ली तथा दुनिया को अलविदा कह इहलोक में चले गये. उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को लाल दरवाजा स्थित श्मशान घाट पर किया जायेगा. साहित्य जगत में छंदराज के नाम से मशहूर पेशे से शिक्षक थे और मूलत: सीवान के रहने वाले थे. वे जमालपुर के केशोपुर विद्यालय में शिक्षक थे. वे साहित्य व शिक्षा के प्रति समर्पित थे.
अवकाश ग्रहण करने के बाद भी बच्चों के पठन पाठन में लगे रहे. छंदराज एक ऐसे शायर थे जिनसे मुंगेर की पहचान बनती थी. देश के विभिन्न हिस्सों के कवि सम्मेलन और मुशायरे में उनकी खनकदार आवाज तथा कम शब्दों में अंदाजे बया का लोग लोहा मानते थे. उनकी दो पुस्तकें दर्द की फसले और फैसला चाहिए काफी चर्चित रही है. इन पुस्तकों में छंदराज के गजल का अश्क दिखता है. साहित्य जगत में उन्होंने अपने सांनिध्य में युवाओं को गजल लिखने के तौर तरीके से लेकर रदीफ काफिया के इल्म की जानकारी देते रहे.
उन्हें इस बात का हमेशा मलाल रहता था कि मुंगेर का साहित्यिक आयोजन में मुंगेर के लोगों की उपेक्षा आखिर क्यों होती है. उनकी मौत की खबर सुनते ही बेकापुर स्थित उनके आवास पर चाहने वालों का तांता लग गया. लोगों ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. उनके निधन पर सूचना एवं जन संपर्क विभाग के उपनिदेशक केके उपाध्याय, साहित्यकार शिवनंदन सलिल, अनिरुद्ध सिन्हा, अशोक आलोक, डॉ ओमप्रकाश प्रियंबद, विजय गुप्त, विजेता मुद्गलपुरी, मधुसूदन आत्मीय, कौशल किशोर पाठक, पूर्व डीआइजी ध्रुव गुप्त, डॉ अमरेंद्र, प्राध्यापक डॉ श्यामदेव भगत, वरिष्ठ पत्रकार कुमार कृष्णन, प्रसून लतांत, डॉ मृदुला झा, प्रो. शिवरानी, अंजनी सुमन ने शोक संवेदना व्यक्त की.