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कालाजार रोग की रोकथाम के लिए हुआ दवा का फोकल छिड़काव

कालाजार रोग की रोकथाम के लिए फोकल छिड़काव

नमी व अंधेरे वाले स्थान पर कालाजार की मक्खियां ज्यादा फैलती है किशनगंज लीशमैनियासिस 20 से ज्यादा लीशमैनिया प्रजातियों के प्रोटोजोअन परजीवियों के कारण होने वाली बीमारियों का एक समूह है. ये परजीवी संक्रमित मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाई के काटने से मनुष्यों में फैलते हैं, जो 2-3 मिमी लंबा एक छोटा कीट वाहक है. इस बीमारी के तीन मुख्य रूप हैं, क्यूटेनियस लीशमैनियासिस (सीएल), विसराल लीशमैनियासिस (वीएल), जिसे कालाजार भी कहा जाता है, और म्यूकोक्यूटेनियस लीशमैनियासिस (एमसीएल). सीएल सबसे आम रूप है, वीएल सबसे गंभीर रूप है और एमसीएल बीमारी का सबसे अक्षम करने वाला रूप है. विदित हो जिले में जनवरी 2024 से मई तक कालाजार के 04 नए रोगी मिले हैं. यह रोगी जिले के बहादुरगंज, पोठिया, तेधागाछ एवं दिघलबैंक में सभी प्रखंडों से एक-एक है इसमें दो महिला एवं दो पुरुष है. सभी रोगी का उपचार कर उन्हें सकुशल घर भेज दिया है किंतु कालाजार रोग से प्रभावित राजस्व ग्रामों में कालाजार की रोकथाम के लिए सिथेटिक पाराथाइराइड (एसपी) घोल का छिड़काव आवश्यक होता है, इसी क्रम में गुरुवार को दिघलबैंक प्रखंड के प्रभावित क्षेत्र में फोकल छिड़काव किया गया है. जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने बताया की कालाजार एक जानलेवा बीमारी है जो कि बालू मक्खी के काटने से होती है. कालाजार फैलाने वाली बालू मक्खी को समाप्त करने का बस एक ही तरीका है सिथेटिक पारा थायराइड का पूरे घर में सही तरह से छिड़काव करना. कालाजार विषाणु जनित रोग है. यह एक बार शरीर में प्रवेश करने पर इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है. कालाजार की जांच दस मिनट में ऑन द स्पाट हो जाती है. डब्ल्यूएचओ के सहयोग से यह दवा नि:शुल्क प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उपलब्ध है. दो सप्ताह से अधिक बुखार, पेट के आकार में वृद्धि, भूख नहीं लगना, उल्टी होना, शारीरिक चमड़ा का रंग काला होना आदि कालाजार बीमारी के लक्षण हैं. नमी एवं अंधरे वाले स्थान पर कालाजार की मक्खियां ज्यादा फैलती है जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने कहा कि कालाजार बीमारी बालूमक्खी के काटने से होने वाला रोग है. नमी एवं अंधरे वाले स्थान पर कालाजार की मक्खियां ज्यादा फैलती है, लेकिन इससे ग्रसित मरीजों का इलाज आसानी से संभव है. यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी प्रवेश कर जाता है. दो सप्ताह से अधिक बुखार, पेट के आकार में वृद्धि, भूख नहीं लगना, उल्टी होना, शारीरिक चमड़ा का रंग काला होना आदि कालाजार बीमारी के लक्षण हैं. ऐसा लक्षण वाले मरीजों को विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) कालाजार की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसा लक्षण शरीर में महसूस होने पर ग्रसित मरीज को अविलंब जांच कराना जरूरी होता है. इसका इलाज कराने के बाद भी ग्रसित मरीज को सुरक्षित रहने के आवश्यकता होती है. इसके उपचार में विलंब से हाथ, पैर और पेट की त्वचा काली होने की शिकायतें मिलती हैं, जिसे पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) कालाजार से ग्रसित मरीज कहा जाता है. मुख्य रूप से पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) एक त्वचा रोग है, जो कालाजार के बाद होता है. जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में कालाजार का इलाज आसानी से हो सकता है. छिड़काव अभियान के दौरान क्षेत्रों में ऐसे मरीजों की भी खोज की जाएगी और उन लोगों को तत्काल इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल भेजा जायेगा. कालाजार मरीजों को इलाज के साथ श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में दी जाती है सहायता राशि सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया कि कालाजार के मरीजों को सरकारी अस्पताल में इलाज आसानी से किया जाता है. इलाज के साथ ही कालाजार संक्रमित मरीजों को सरकार द्वारा श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में सहायता राशि भी प्रदान की जाती है. सरकार द्वारा वीएल कालाजार से पीड़ित मरीज को 7100 रुपये की श्रम-क्षतिपूर्ति राशि भी दी जाती है. यह राशि भारत सरकार के द्वारा 500 एवं राज्य सरकार की ओर से कालाजार राहत अभियान के अंतर्गत मुख्यमंत्री प्रोत्साहन राशि के रूप में 6600 सौ रुपये दी जाती है. वहीं पीकेडीएल कालाजार से पीड़ित मरीज को राज्य सरकार द्वारा 4000 रुपये की सहायता राशि श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की जाती है. कालाजार के लक्षण बुखार अक्सर रुक-रुककर या तेजी से तथा दोहरी गति से आना, भूख लगना, वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता, कमजोरी, त्वचा सूखी, पतली और शुष्क होती है तथा बाल झड़ने लगते हैं. इस बीमारी में खून की कमी बड़ी तेजी होने लगती है. गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है. इसी से इसका नाम कालाजार पड़ा अर्थात काला बुखार पड़ा है.

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