बस के रुकते ही अपने-अपने परिजनों से गले मिल कर भूकंप पीड़ित रो पड़ते हैं. प्रखंड के चिचुआबाड़ी, गौरीहाट माटीगारा, झीना खोर आदि विभिन्न गांव के सैकड़ों परिवारों की रोजी-रोटी नेपाल के काठमांडू से चलती थी. बहुतों ने अपने मेहनत व मशक्कत तथा कर्ज लेकर सिलाई व छपाई का कारखाना भी खोल लिया था और सपरिवार काठमांडू में रहते थे. काठमांडू से लौटे लोगों को अब इस यह चिंता सता रही है कि हमारा सारा धंधा तो भूकंप के कारण काठमांडू में चौपट हो गया. अब हमारा परिवार कैसे चलेगा. सामने कोई रोजगार नजर नहीं आ रहा है.
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दिल में खौफ और रोजगार की चिंता
छत्तरगाछ: दिल में भूकंप का खौफ है लेकिन सही सलामत घर वापसी का सुकून काठमांडू से लौटे पीड़ितों में साफ तौर पर देखा जा सकता है. बुधवार को काठमांडू से काकड़भिट्ठा होते हुए पोठिया प्रखंड के चिचुआबाड़ी पहुंचते ही लोगों में हादसे के जख्मों की तकलीफ तो थी पर घर पहुंचने की जल्दबाजी और चेहरे […]
छत्तरगाछ: दिल में भूकंप का खौफ है लेकिन सही सलामत घर वापसी का सुकून काठमांडू से लौटे पीड़ितों में साफ तौर पर देखा जा सकता है. बुधवार को काठमांडू से काकड़भिट्ठा होते हुए पोठिया प्रखंड के चिचुआबाड़ी पहुंचते ही लोगों में हादसे के जख्मों की तकलीफ तो थी पर घर पहुंचने की जल्दबाजी और चेहरे में खुशी साफ झलक रही थी.
छिन गया रोजगार
गौरीहाट निवासी मो मुन्ना 12 वर्ष से काठमांडू के नया बाजार में छपाई का काम करता है तथा अपनी मेहनत व मशक्कत से उन्होंने एक कारखाना बनाया. उसकी कमाई से उसका परिवार चल रहा था. लेकिन इस विनाशकारी भूकंप से उनका कारखाना ध्वस्त हो गया. उसकी एक बहन भी है, जिसकी शादी भी करानी है. मां हसीमुन के चेहरे पर एक तरफ अपने बेटा-बहू के सकुशल घर लौटने से खुशी है, तो दूसरी तरफ पुत्री की शादी की चिंता भी सता रही है.
धंधा हुआ चौपट
चिचुआबाड़ी गौरीहाट निवासी नूरे नवी ढाई लाख रुपये खर्च कर ड्राइ वास का कारखाना खोल रखा था. उन्होंने कहा कि मैं कर्ज तथा अपने बीबी के जेवर को गिरवी रख कर कारखाना में लगाया था परंतु आज मेरा सब कुछ खत्म हो गया. गौरी हाट निवासी मो मेराज कहते हैं कि भूकंप से हमारा सारा धंधा चौपट हो गया. हम तो किसी तरह भूकंप की चपेट से निकल कर अपने घर आ गये. लेकिन हम हम लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि हम अपने परिवारों का भरण-पोषण कैसे करेंगे.
सिलाई व छपाई से चलती थी रोजी-रोटी
डुबानोची पंचायत के मलरामगच्छ निवासी कयूम, महफूज आलम, मो सोलेमान ने बताया कि हम लोग सिलाई व छपाई काम अच्छी तरह जानते है. काठमांडू में प्रत्येक माह 15 हजार रुपये कमा लेते थे, जिससे घर का खर्च तथा बच्चों की पढ़ाई होती थी. परंतु विनाशकारी भूकंप ने हमारे रोजी-रोटी को ही बंद कर दिया. अब हमारा परिवार कैसे चलेगा यही चिंता हमें सता रही है.
तीन दिन बाद मिला खाना
चिचुआबाड़ी निवासी जमील कहते है कि भूकंप के बाद हम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. तीन दिन तक भूखे-प्यासे रहने के बाद भारत सरकार की तरफ से कुछ खाने-पीने का सामान मुहैया कराया, जिसे खाकर हमारी जान बची. किसी तरह जान बचा कर घर आये तो अब रोजी रोटी जैसी समस्या उत्पन्न हो गयी है. स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार अब प्रखंड के चिचुआबाड़ी, झीनाखोड़, माटियागाड़ी, गौरीहाट आदि गांव के सैकड़ों लोग काठमांडू में फंसे हुए है जो धीरे-धीरे किसी तरह से घर लौट रहे हैं.
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