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सीओपीडी से बचाव के लिए धूम्रपान का करें त्याग : डाॅ शिव

किशनगंज : फिजिशियन एवं श्वांस रोग विशेषज्ञ व एमजीएम मेडिकल काॅलेज किशनगंज के एसोसिएट प्रोफेसर डा शिव कुमार के सौजन्य से विश्व सीओपीडी दिवस के उपलक्ष्य में बुधवार को पश्चिमपाली में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें नि:शुल्क जांच शिविर भी लगाया गया. जिसमें मरीजों की निशुल्क जांच की गयी. इस मौके डा शिव […]

किशनगंज : फिजिशियन एवं श्वांस रोग विशेषज्ञ व एमजीएम मेडिकल काॅलेज किशनगंज के एसोसिएट प्रोफेसर डा शिव कुमार के सौजन्य से विश्व सीओपीडी दिवस के उपलक्ष्य में बुधवार को पश्चिमपाली में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें नि:शुल्क जांच शिविर भी लगाया गया. जिसमें मरीजों की निशुल्क जांच की गयी. इस मौके डा शिव कुमार ने मरीजों को फेफड़ों की बीमारियों व उनसे बचाव की जानकारी देते हुए कहा कि सीओपीडी फेफड़ों की प्राण घातक बीमारी है.

यह सांस की नली में होती है. सीओपीडी में हवा का आना-जाना सीमित हो जाता है. लक्षणों की समानता के कारण सीओपीडी को लोग अस्थमा समझ लेते है, जबकि यह उससे अधिक खतरनाक है. धूम्रपान इसका सबसे बड़ा कारण है. डा कुमार ने बताया कि मीडियम साइज की एक सिगरेट पीने से व्यक्ति की छह मिनट की जिदगी कम हो जाती है, क्योंकि सिगरेट में चार हजार हानिकारक तत्व होते हैं.
इसमें मुख्य रूप से निकोटिन, तार, कार्बन मोनोक्साइड, आरसेनिक और कैडमियम होता है. इसके अलावा दूसरा मुख्य कारण वायु प्रदूषण, चिमनी से निकलने वाला धुंआ व गोबर के उपले से निकलने वाले हानिकारक तत्व भी सीओपीडी का मुख्य कारण है.
धूम्रपान है बड़ी वजह
दरअसल, युवा पीढ़ी शौक के तौर पर धूम्रपान शुरू करते हैं, मगर बाद में उनका यही शौक लत में बदल जाता है.धूम्रपान से फेफड़ों में दिक्कत आने लगती है और युवा सीओपीडी की चपेट में आ जाता है. इससे बचाव के लिए धूम्रपान का त्याग करना ही जरूरी है. जरा भी दिक्कत होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह पर उपचार शुरू कर देना चाहिए.
डा कुमार ने बताया कि 20 फीसदी रोगी धूम्रपान नहीं करते फिर भी धुएं वाले वातावरण में रहने के कारण इस रोग से ग्रसित है. इसमें लकड़ी, गोबर, फसल के अवशेष आदि शामिल है. ग्रामीण इलाकों में महिलाएं व लड़कियां रसोईघर में अधिक समय बिताती है. शरबों में भी बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर ने स्थिति को गंभीर बना दिया है. सीओपीडी रोग से ग्रसित मरीजों को सांस लेने में परेशानी होती है.
परीक्षण
इस रोग की सर्वश्रेष्ठ जांच स्पाइरोमेट्री या पीएफटी है
क्या करें
सर्दी से बचकर रहें. पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें. सिर, गले और कानों को खासतौर पर ढके रहे तािक सर्दी नहीं लगे.
सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़ें. यह आदत आपको जुकाम और फ्लू की बीमारी से बचाकर रखती है.
बच्चों को पैसीव स्मोकिंग से बचाएं
पैसीव स्मोकिंग से अस्थमा का खतरा बना रहता है. बच्चों को प्रदूषण से दूर रखें, पैसीव स्मोकिंग अन्य श्वसन से जुड़े रोगों के िलए भी खतरनाक है. बच्चों में पैसीव स्मोकिंग का असर जल्दी होता है.क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है. इसलिए सिगरेट से निकलने वाला कार्बनडायआक्साइड और कार्बन मोनाआक्साइड सहित अन्य हानिकारण गैस बच्चे के फेफड़े को संक्रमित कर देते है.
बेहतर है बचाव : सीओपीडी का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को रोकना है. जो रोगी प्रारंभ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं, उन्हें अधिक लाभ होता है. इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल और धुएं के वातावरण में रहता है या कार्य करता है, तो उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे काम छोड़ देने चाहिए.
ग्रामीण महिलाओं को लकडी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा से संबंधित वैक्सीन लगवानी चाहिए. इसी तरह न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवानी चाहिए.
चार स्टेज है सीओपीडी की : डाॅ शिव कुमार ने बताया कि सीओपीडी की चार स्टेज होती है. पहली स्टेज में सुबह के समय खांसी आना और गले में खिचखिच होना होता है. दूसरी स्टेज में दौड़ते-भागते सांस का फूलना और बलगम आना होता है. घर की नित-क्रिया जैसे नहाना व कपड़े पहनने आदि में यदि सांस फूलती है, तो स्थिति चिंताजनक मानी जाती है. इसके अलावा हाथ व पैर में सूजन आना भी इस रोग की श्रेणी में आता है.
गुनगुने पानी से नहाएं
नियमित रूप से डॉक्टर के संपर्क में रहें और उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज सुनिश्चित करा लें.
धूप निकलने पर धूप अवश्य लें. शरीर की मालिश करने पर रक्त संचार ठीक होता है.
सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू व सांस के रोगियों को सुबह-शाम भाप (स्टीम) लेना चाहिए. यह गले व सांस की नलियों (ब्रॉन्काई) के लिए फायदेमंद है.
डॉक्टर की सलाह से वैक्सीन का प्रयोग जाड़े केमौसम में सक्रिय हानिकारक जीवाणुओं से सुरक्षा प्रदान करता है.
हाथ मिलाने से बचें. नमस्ते करना ज्यादा स्वास्थ्यकर अभिवादन है. इससे आप फ्लू समेत स्पर्श से होने वाले कई संक्रमणों से बच सकते हैं.
लक्षण
सुबह के वक्त खांसी आना. धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलता है.
सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है. बीमारी की तीव्रता बढने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है.
पीड़ित व्यक्ति का सीना आगे की तरफ निकल आता है. रोगी फेफड़े के अंदर रुकी हुई सांस को बाहर निकालने के लिए होंठों को गोलकर मेहनत के साथ सांस बाहर निकालता है, जिसे मेडिकल भाषा में पर्स लिप ब्रीदिंग कहते हैं.

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