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कटिहार में 10 में से 09 बच्चों को नहीं मिलता पौष्टिक आहार

सूरत-ए-हाल . एनएफएचएस-4 की ताजा रिपोर्ट से हुआ खुलासा आज राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का अंतिम दिन, अबतक नहीं हुई कोई गतिविधि कटिहार : केंद्र व राज्य सरकार के निर्देश पर गुरुवार तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है. हर वर्ष पहली से सात सितंबर तक यह सप्ताह मनाया जाता है. मुख्य रूप से समेकित […]

सूरत-ए-हाल . एनएफएचएस-4 की ताजा रिपोर्ट से हुआ खुलासा

आज राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का अंतिम दिन, अबतक नहीं हुई कोई गतिविधि
कटिहार : केंद्र व राज्य सरकार के निर्देश पर गुरुवार तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जा रहा है. हर वर्ष पहली से सात सितंबर तक यह सप्ताह मनाया जाता है. मुख्य रूप से समेकित बाल विकास सेवाएं व स्वास्थ्य महकमा की ओर से इस सप्ताह के तहत लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से कई तरह की गतिविधियां होती रही है. इस बार पोषण सप्ताह का समापन गुरुवार को होगा. पर इस बार कटिहार जिले में पोषण सप्ताह में कोई गतिविधि के आयोजन की सूचना नहीं है. जबकि पोषण के मामले में कटिहार की स्थिति अत्यंत खराब है. नवजात शिशु, बच्चे, किशोरी व महिलाओं में न केवल पोषण के प्रति समझ कम है.
बल्कि कुपोषण के शिकार भी है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट के अनुसार कटिहार जिले के 6-23 महीने की आयु समूह के हर 10 में से 9 बच्चे को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है. जिले में बच्चों के पोषण एवं स्वास्थ्य की स्थिति राष्ट्रीय मानक की तुलना में ठीक नहीं है. यद्यपि इस सर्वे के अनुसार पिछले सर्वे की तुलना में कई सूचकांक पर स्थिति में सुधार पाया गया है. एनएफएचएस-4 के जिले के 6 से 23 महीने के बच्चों में से मात्र 7. 9 प्रतिशत को ही पर्याप्त पोषण प्राप्त हो रहा है.
यह सर्वविदित है कि प्रारंभिक वर्षों में कुपोषण का सीधा संबंध मातृ स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. प्रसव पूर्व माता के देखभाल और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पौष्टिक आहार नहीं मिलने के कारण जिले में बच्चों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. जिले में सिर्फ 33 प्रतिशत महिलाओं को ही प्रसव पूर्व देखभाल की सेवा उपलब्ध हो पाती है. साथ ही एक तिहाई बच्चों का जन्म घर पर ही होता है. स्वास्थ सेवाओं के अलावा अधिकांश लोगों के पौष्टिकता से संबंधित ज्ञान का अभाव है. इस सर्वे के अनुसार कटिहार जिले में 3 वर्ष से कम उम्र के लगभग दो-तिहाई बच्चों का जन्म के पहले घंटे में परंपरागत प्रथाओं के कारण स्तनपान नहीं कराया जाता है.
जागरूकता के लिए होने थे कार्यक्रम
पहली से सात सितंबर तक चलने वाले राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का समापन गुरुवार को है. पर इस सात दिनों में सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर कोई गतिविधियों का आयोजन नहीं हुआ है. मुख्यरूप से आंगनबाड़ी केंद्र व स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर महिलाओं, बच्चों व आमलोगों को जागरूक करने को लेकर गतिविधियों का आयोजन होती रही है. लेकिन इस बार ऐसी कोई गतिविधियों के आयोजन की सूचना नही है. जबकि सप्ताह का समापन गुरुवार को हो जायेगा. एन एफ एच एस- 4 की रिपोर्ट व पोषण सप्ताह की उपेक्षा से अगले वर्ष तक बाल कुपोषण मुक्त बिहार कैसे बनेगा. यह एक बड़ा सवाल है.
6-59 महीने की उम्र में लगभग दो तिहाई बच्चे एनीमिया से पीड़ित
एनएफएचएस-4 के अनुसार 6-59 महीने की उम्र में लगभग दो तिहाई बच्चे यानी 61.3 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं, जबकि 15-49 आयु वर्ग समूह की गर्भवती महिलाओं में 57.8 प्रतिशत एनीमिया से ग्रसित हैं. यह इस बात की ओर इशारा करता है की पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषण चक्र बना हुआ है. सर्वे रिपोर्ट बताती है कि बिहार में केवल 6.5 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान सौ दिनों या उससे अधिक दिनों तक आयरन व फोलिक एसिड की दवा ली. इस सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों के बीच कुपोषण की जानकारी का आधार उम्र के अनुसार कम ऊंचाई, ऊंचाई के अनुसार कम वजन, उम्र के अनुसार कम वजन के आधार पर बच्चों के कुपोषण का आकलन किया गया है. पिछले सर्वे के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में सकारात्मक परिवर्तन आया है. फिर भी राज्य में 45.1 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले है. इस सर्वे के ताजा रिपोर्ट के अनुसार बाल स्वास्थ्य और पोषण में बिहार राज्य काफी सकरात्मक काम किया है. संस्थागत प्रसव, टिकाकरण एवं बाल्यावस्था में होने वाले खतरनाक बीमारी पर नियंत्रण के दिशा में अच्छी पहल हुई है. एनएफएचएस-4 और 3 की तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि एक दशक पहले 2005-06 बिहार में संस्थागत प्रसव 20 प्रतिशत था, जबकि अब 60 प्रतिशत संस्थागत प्रसव हो रहा है. लेकिन बच्चों के समग्र विकास के लिए बाल पोषण की स्थिति अपेक्षाकृत ठीक नहीं है.
नएफएचएस-4 की खास बातें
15-49 आयुवर्ग की 64.3 प्रतिशत धात्री महिला एनीमिया से ग्रसित
इसी आयुवर्ग की 57.8 प्रतिशत महिलाओं को खून की कमी
5 वर्ष तक 45.1 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट
कटिहार सहित राज्य में बच्चों की तुलना में आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या अभी पर्याप्त नहीं है. राज्य सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं एवं पोषण व्यवस्था के बेहतर संचालन करने की दिशा में पहल करनी चाहिए. एनएफएचएस-4 की रिपोर्ट निश्चित रूप से सोचने पर मजबूर करती है..
राजीव रंजन, समन्वयक, बिहार बाल आवाज मंच

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