गया: शहर के बीचों-बीच स्थित आंबेडकर पार्क आवारा जानवरों की चरागाह बन गया है. सुबह से लेकर शाम तक जानवर यहां मंडराते रहते हैं. ये पार्क को गंदा करते हैं व यहां आने वाले लोगों पर हमले भी. पार्क में चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. खूबसूरती तो दूर तक नजर नहीं आती, जबकि जिले के कई वरीय अधिकारी अपने कार्यालय से सिर उठाते हैं, तो उनकी निगाहें इस पार्क पर ही पड़ती हैं. बावजूद इसके इसका हाल खस्ता है.
धरना-प्रदर्शन के लिए यह शहर का मुख्य केंद्र है, पर इसकी बदहाली दूर करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल या संगठन ने अब तक आवाज उठाने की पहल नहीं की. कार्यक्रम किया, गंदगी फैलायी व फिर अपने घर चले गये. इतना ही नहीं, पार्क के बाहर अवैध रूप से फलों की दुकान लगानेवाले भी इसकी बदहाली के लिए कम जिम्मेवार नहीं हैं. अब तो शहरवासी भी कहने लगे हैं-जब प्रशासन की नजरों के सामने के पार्क की हालत यह है, तो दूसरे पार्को की कौन पूछे.
पार्क में गंदगी का ही साम्राज्य
आमतौर पर पार्क शब्द आते ही दिमाग में शहर की धूल व गंदगी से हट कर हरे भरे पेड़-पौधों के साथ साफ जगह की तसवीर बनती है. लेकिन, यहां स्थिति कुछ और ही है. आंबेडकर पार्क में पेड़-पौधे तो दूर, सही से घास भी नहीं मिलेगी. मिलेंगे तो जानवरों के मल-मूत्र. पूरे पार्क में इन सबकी वजह से बड़े पैमाने पर गंदगी फैली होती है.
रास्ते में घूमनेवाले आवारा जानवरों के लिए सुस्ताने की जगह है यह पार्क. लोगों की मानें, तो इसका सबसे बड़ा कारण है इसके गेट का खुला होना. ऐसे में सड़कों पर घूमनेवाले आवारा जानवर इसमें प्रवेश पा जाते है. एक बात और, यह पार्क लोगों के पेशाब करने की जगह भी है. गौरतलब है कि पार्क के इर्द-गिर्द आयुक्त, डीएम व एसएसपी के कार्यालय हैं. यहां हर रोज अपने काम से हजारों लोग आते-जाते हैं. ऐसे में यह पार्क उनके पेशाब करने की जगह बन गया है. इसकी देखभाल के लिए तो कोई है ही नहीं, तो मना कौन करे.