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ग्लोबल वार्मिंग का रबी फसलों पर दिख रहा असर

ग्लोबल वार्मिंग का रबी फसलों पर दिख रहा असर तापमान सामान्य से 0.6 डिग्री सेल्सियस है ज्यादा शस्य वैज्ञानिक डा. अनुपमा ने प्रभात खबर से कही जाले. ग्रीन हाउस गैस (कार्बन डाइआॅक्साइड, मिथेन, क्लोरीफ्लोरो कार्बन इत्यादि) के उत्सर्जन में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी से ग्लोबल वाॅर्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है़ सन 1970 से […]

ग्लोबल वार्मिंग का रबी फसलों पर दिख रहा असर तापमान सामान्य से 0.6 डिग्री सेल्सियस है ज्यादा शस्य वैज्ञानिक डा. अनुपमा ने प्रभात खबर से कही जाले. ग्रीन हाउस गैस (कार्बन डाइआॅक्साइड, मिथेन, क्लोरीफ्लोरो कार्बन इत्यादि) के उत्सर्जन में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी से ग्लोबल वाॅर्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है़ सन 1970 से 2000 तक में लगभग 0़ 6 डिग्री सेल्सियस औसत तापममान में वृद्धि हो गयी है़ अगर इसी रफ्तार से ग्लोबल वाॅर्मिंग होता रहा तो 2050 तक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि की आशंका जताई जा रही है़ कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उच्च तापमान में एक डिग्री सेल्सियस तथा निम्न तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाये तो खाद्यान्न का उत्पादन 35 प्रतिशत कम हो जायेगा़विगत कुछ वर्षों में वायुमंडल के तापमान में तब्दिली देखी जा रही है़ न्यूनत्तम तापमान अब पिछले कुछ वर्षों की अपेक्षा सर्दियां कम तथा कम अंतराल के लिए रहता है़ वायुमंडल के तापमान में लगातार वृद्धि की वजह से जाड़े की रात में अब कम शीतल हो रही है़ वायुमंडल में लगातार हो रहे परिवर्तन पर गेहूं की फसल में पूर्व की अपेक्षा कम हो रहे विकास पर चिंता जाहिर करते हुए इलाके के किसान परेशान हैं. इलाके के कई किसानों से मिलकर उनकी चिंता पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र की समन्व्यक सह शस्य वैज्ञानिक डा़ अनुपमा ने कहा कि जब तापमान ज्यादा अर्थात 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, तब गेहूं की पत्तियाें और पौधे का ढ़ांचा सिमटकर छोटा हो जाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण करने वाली सतह का क्षेत्रफल कम हो जाता है़ इसका जबर्दस्त प्रतिकूल प्रभाव पौधों अथवा कल्लों की संख्या पर पड़ता है़ इसके प्रभाव से गेहूं की बालियां छोटी हो जाती है और उसमें पुष्ट दानों की संख्या कम हो जाती है़ डा़ अनुपमा के अनुसार विगत कुछ वर्षों से दिसंबर का महीना कम शीतल होता जा रहा है तथा जनवरी माह में ज्यादा ठंड देखा जा रहा है़ नवंबर से फरवरी के दरम्यान न्यूनत्तम तापमान पूर्व की तुलना में अब दो से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक रहने लगा है़ वातावरण का तापमान अब गेहूं की फसल के लिए शुरू और अंत दोनों ही समय बढ़ता जा रहा है़ इसके फलस्वरूप नवंबर माह के मध्य में बुआई से नवंबर के अंत के आसपास की गई बुआई की फसल से ज्यादा पैदावार दिसंबर माह के मध्य में की गई बुआई में देखी जा रही है़ जनवरी के महीने की शीत भरी रात्रि के प्रभाव से गेहूं की फसल में अपेक्षाकृत अधिक कल्ले विकसित होते देखे गये हैं. डा़ अनुपमा ने किसानों को आश्वस्त करते हुए बताया कि ऐसा पूर्वानुमान है कि इस बार अपेक्षाकृत कम ठंड पड़ेगी. इसके बावजूद भी उनका कहना है कि अभी का मौसम गेहूं के पैदावार के लिए ठीक है़ उन्होंने किसान भाइयों से पहली सिंचाई करने के उपरांत नाइट्रोजन का उपरिवेशन करने को कहा. उन्होंने बताया कि वर्षा कम होने की वजह से इस बार रबी मौसम में मिट्टी में नमी की कमी देख जा रहा है़ अत: उनके अनुसार तेलहनी और दलहनी फसलों में समय पर हल्की सिंचाई आवश्यक बताया़

Prabhat Khabar Digital Desk
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