सिय-पिय मिलन महोत्सव में श्रीराम को देख ठहरीं जनकपुर वासियों की आंखें
श्रीराम चरितमानस के सामूहिक नवाह्न परायण से कार्यक्रम का शुभारंभ तड़के शुरु हुआ तो देर रात श्रीराम लीला के मंचन से समापन हुआ.
बक्सर. पूज्य संत श्री खाकी बाबा सरकार के निर्वाण तिथि के अवसर पर नई बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में चल रहे 56वें सिय-पिय मिलन महोत्सव के पांचवें दिन शनिवार को गत दिनों की भांति विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये गये. श्रीराम चरितमानस के सामूहिक नवाह्न परायण से कार्यक्रम का शुभारंभ तड़के शुरु हुआ तो देर रात श्रीराम लीला के मंचन से समापन हुआ. इस दौरान श्रीकृष्ण लीला, श्रीराम कथा एवं भगवान श्रीराम व जानकी की झांकी के साथ श्री मिथिला का सीताराम विवाह पद गायन हुआ. जिसमें मिथिलानियों के गाए गीतों से माहौल मिथिलामय हो गया. वही दमोह की संकीर्तन मंडली द्वारा नौ दिवसीय अष्टयाम संकीर्तन जारी रहा. इस क्रम में दिन में श्रीकृष्ण लीला में भीष्म प्रतिज्ञा एवं श्रीराम लीला में सीता जन्म, विश्वामित्र आगमन एवं अहिल्या उद्धार प्रसंग का मंचन किया गया. भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी देखने पहुंचे देवता : प्रभु श्रीकृष्ण अपने बाल सखाओं से कहते हैं कि भैया ! माखन खाने का खेल खेलोगे?’ ‘माखन का खेल!’ यह सुन सखा आश्चर्य चकित होते हैं. उनके हां कहने पर श्रीकृष्ण अपनी माखनचोरी लीला की विस्तृत योजना उन्हें बताते हैं. योजना के अनुसार दूसरे दिन सुबह श्रीकृष्ण के जगते ही सखा मंडली उन्हें घेरे खड़ी हो जाती है. यशोदा मैया उबटन, स्नान, शृंगार आदि कर श्रीकृष्ण को सजाती-संवारती है. इसके बाद सखाओं समेत श्रीकृष्ण को कलेवा कराती हैं. फिर सबको खेलने जाने की अनुमति देती है. श्रीकृष्ण के साथ सखामंडली जाती है. वे श्रीकृष्ण के साथ एक गोपी के घर के बाहर पहुंचते हैं. वहां गोपी अपना सुध-बुध खोकर तन्मयता के साथ दधि मंथन कर रही है. आकाश में देवता, किन्नर, गंधर्व आदि इस मन मोहिनी लीला का दर्शन करने पहुंचते हैं. जनकपुर नगर की शोभा देख मुग्ध हुए श्रीराम : रामलीला के प्रसंग में जनकपुर प्रवेश व नगर दर्शन लीला का मंचन किया गया. जिसमें सांवला सलोना और सुंदर आकर्षक रूप देख जनकपुर के नर-नारियों की आंखें ठहर गयी. प्रभु श्रीराम को देख उनके चित उन्हीं में खो गये और नेत्र सुख की अभिलाषा बढ़ती गयी. मानो हर कोई यही महसूस कर रहा हो कि जानकी के योग्य वर तो यही है. दिखाया जाता है कि मुनि विश्वामित्र, प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण के साथ जनकपुर पहुंचते हैं. आगमन की सूचना पाकर महाराज जनक पहुंचते हैं और उनका यथा योग्य स्वागत करते हैं और ठहरने का इंतजाम करवाते हैं. उसी क्रम में गुरु विश्वामित्र से अनुमति लेकर श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ जनकपुर नगर की शोभा देखने जाते हैं. दोनों भाइयों के नगर में प्रवेश करते ही उन्हें देखने के लिए काम धाम छोड़ लोग दौड़ पड़ते हैं. इस बीच अष्टसखी संवाद होता है. सखियां राम, लक्ष्मण के रंग रूप का आपस में बखान करती हैं. एक सखी कहती है कि लगता है करोड़ों कामदेव की छवि को जीता है तो दूसरी कहती है कि हंस के बालकों के समान इनकी जोड़ी है. तीसरी सखी कहती है कि महाराज जनक को धनुष यज्ञ छोड़ जानकी का विवाह इसी वर्ष से कर देना चाहिए. एक सखी आशंकित होते हुए कहती है कि महाराज का धनुष बहुत कठोर है और यह बालक बहुत कोमल हैं. सभी सखियां दुविधा में पड़ जाती हैं, तभी अन्य सखी इस शंका को दूर करते हुए कहती है कि जिसके चरणरज से अहिल्या पत्थर से नारी बन गयी, ऐसे में क्या बिना शिव धनुष तोड़े रह पायेंगे. नजदीक पहुंचते ही सखियां दोनों भाइयों पर पुष्प वर्षा करने लगती हैं. नगर दर्शन कर दोनों भाई गुरु विश्वामित्र के पास लौट जाते हैं.
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