राम विवाह के दीदार को देश के कोने-कोने से पहुंचे थे श्रद्धालु
देश के कोने-कोने से आये धर्माचार्य, साधु-संत व हजारों की तादाद में बैठे महिला व पुरुष इस अलौकिक क्षण का गवाह बने.
बक्सर. शहर के नई बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोतसव आश्रम में चल रहे सिय-पिय मिलन महोत्सव के भव्य व आकर्षक विवाह मंडप में मंगलवार की रात चुटकी भर सिंदूरदान कर प्रभु श्रीराम, जनक दुलारी सीता के पिया हो गये. मंगल गान के बीच आचार्यों ने भांवरें फिराईं और नेग सहित सभी रीति-रिवाजों को पूरा किया, फिर दुलह बने श्रीराम ने दुलही सीताजी के मांग में सिंदूर दान किया.विवाह का रस्म पूरा होने के साथ ही पुष्प वर्षा होने लगी तथा करतल ध्वनि के बीच श्री सीताराम के जयघोष से विशाल पंडाल गूंज उठा. मिथिला परंपरा के अनुसार मंगल गीतों के बीच विवाह की यह विधि तकरीबन तीन बजे रात तक चली. देश के कोने-कोने से आये धर्माचार्य, साधु-संत व हजारों की तादाद में बैठे महिला व पुरुष इस अलौकिक क्षण का गवाह बने. साकेतवासी संत श्री नारायण दास जी भक्तमाली उपाख्य मामाजी के गुरु महर्षि खाकी बाबा सरकार की 56वें निर्वाण तिथि पर होने वाले श्री सीताराम विवाह को देखने के लिए वहां लगे विशाल पंडाल दर्शकों से खचाखच भरा था. शहनाई की धुन पर थिरकते द्वार पूजा को पहुंचे बाराती : बैंड-बाजे बज रहे हैं. देवता मंगल गान कर रहे हैं. बराती शहनाई की धुन पर थिरक रहे हैं. चारों दिशाओं से सुंदर और शुभ दायक शगुन हो रहे हैं. प्रभु श्रीराम समेत चारों दूल्हे की अलौकिक छवि देखते ही बन रही है. इस बीच महाराज दशरथ की अगुवाई में द्वार पूजा की रस्म के लिए बाराती महाराज जनक के दरवाजे पर पहुंच रहे हैं. बारातियों में ब्रह्मा जी, भगवान विष्णु व भगवान शिव के अलावा देवराज इंद्र तथा ऋषि-मुनि भी शामिल हैं. द्वार पूजा की रस्म के लिए महाराज दशरथ के साथ घोड़ों पर सवार चारों दूल्हे प्रधान मंच स्थित जनवासे से दरवाजे पर जाते हैं. महिलाएं मंगल गीत गा रही हैं. महाराज जनक वैदिक मंत्रों के बीच द्वार पूजा की रस्म पूरी करते हैं. द्वार पूजा के बाद बारातियों संग चारों दूल्हे पुनः जनवासे में लौट जाते हैं. धुरक्षक की विधि पूरा कराने जनवासा पहुंचीं मिथिलानियां : माथे पर कलश लेकर मिथिलानियां जनवासे पहुंचती हैं. वे परंपरा के तहत वहां अईगा मांगने व धुरक्षक की विधि पूरा कराती हैं. वे महाराज दशरथ से दूल्हों को मंडप में भेजने का निवेदन करती हैं, फिर पूरी रस्म पूरी कर जनवासे से पंडाल के बीचों-बीच बने विवाह मंडप में लौट जाती हैं. प्रभु श्रीराम समेत चारों दूलह सरकार पालकी पर सवार होकर महाराज जनक के आंगन में पहुंचते हैं. माता सुनैना समेत अन्य महिलाएं गीत गाकर चारों दूल्हों की परिछावन विधि संपन्न करती हैं. मिथिलानियां चारों दूल्हे को आदर के साथ मंडप में लेकर जाती हैं. वहां धान कुटाई व लावा मिलाने के साथ सखियां हंसी-ठिठोली करती हैं. सखियों के हास-परिहास से निरुत्तर हुए प्रभु श्रीराम : सखियां सीता जी के साथ ही अन्य बहनों को वहां ले आती हैं. पारंपरिक गीतों के बीच वे नहछू-नहावन की रस्म पूरी कराती हैं. इस बीच धान कुटाई व लावा मेराई की विधि भी कराई जाती है. मिथिला के इस लोक विधि के बीच चारों भाइयों से सखियां हंसी-ठिठोली करती हैं तथा उनके निरुत्तर होने पर खूब मजे लेती हैं. इस बीच वे मंगल गाली गाते हुए हास-परिहास करती हैं तथा प्रभु श्रीराम से तरह-तरह के सवाल कर उनकी बोलती हैं. फेरा के साथ श्रीराम ने किया सिंदूरदान : आचार्यों द्वारा गोत्राचार के बाद गौरी-गणेश की पूजा कराई जाती है. देवता प्रकट हो पूजा ग्रहण करते हैं. पूजा के बाद दुल्हा व दुल्हन को सुंदर आसन पर बिठाया जाता है. मुहूर्त आने पर महाराज जनक व महारानी सुनैना को बुलाया जाता है. महाराज जनक, श्रीराम जी के चरण पखारते हैं. इसके बाद दोनों पक्षों के पुरोहित वर तथा कन्या की हथेलियों को मिलाकर मंत्रोच्चार के बीच पाणिग्रहण करते हैं. लोक व वेद की सम्मिलित रीति के साथ महाराज जनक कन्यादान करते हैं। वर व कन्या भांवरि के साथ फेरे लेते हैं, फिर प्रभु श्रीराम, मां सीता की मांग में सिंदूर दान करते हैं। यह देख देव गण आकाश से पुष्प की वर्षा कर रहे हैं. कन्यादान के समय भावुक हुए दर्शक : महाराज जनक व रानी सुनैना कन्यादान के लिए मंडप में विराजमान हैं. महिलाएं ओरी तर ओरी ए तर, बइठे बर रे नेतिया…आदि कन्यादान की पारंपरिक गीतें गा रही हैं. गीतों को सुन कन्यादान के समय वहां बैठे आम से लेकर खास तक सभी भावुक हो जाते हैं और आखों से झर रहे आंसू पोंछने लगते हैं. कन्यादान के बाद श्रीराम जी और सीता जी को श्रेष्ठ आसन पर बैठाया जाता है. चारों तरफ खुशियां छा जाती हैं. श्रीराम व सीता के विवाह के उपरांत गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पर बारी-बारी से मांडवी, श्रुतकीर्ति व उर्मिला को बुलाते हैं. तब उसी विधि के साथ पहले मांडवी के साथ भरत का, उर्मिला के साथ लक्ष्मण का तथा श्रुतकीर्ति का सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न के साथ वैवाहिक रस्म पूरी की जाती है. सखियों के मजाकिया शर्त से : वैवाहिक विधि के बीच मां सीता की सखियां श्रीराम समेत चारों भाइयों को मिथिला के रिवाज का पूरा ख्याल रखती हैं. वे हंसी व ठिठोली कर दूल्हों को खूब परेशान करती हैं. उन्हें कोहबर प्रवेश के लिए ले जाती हैं. परंतु मिथिलानियां उन्हें दरवाजे पर ही रोक देती हैं. कोहबर में प्रवेश के लिए श्रीराम निवेदन करते हैं. इसके लिए सखियां शर्त रखती हैं. एक सखी उनकी बहन को मांगती है. दूसरी उनकी बहन का नाम पूछती है. प्रभु श्रीराम इन सवालों का जवाब देते हैं तो सखियां उनका मजाक बना देती हैं. वे जवाब देते हैं तो सखियां परिहास में ठहाके लगाने लगती हैं. शर्तों के उलझन के बीच एक सखी उनकी बहन से जनकपुर के युवकों की शादी करवाने की बात कहती है. दूसरी चारों भाइयों से कुल देवता की पूजा आदि की बात कहती है. श्रीराम व लक्षमण कुल देवता को अयोध्या में बताकर निकल जाते हैं. भरत जी शीश झुका कर थाल को प्रणाम करने लगते हैं. भरत जी के ऐसा करने पर लक्ष्मण जी विरोध करते हैं। भरत जी उस थाल में माता सीता के चरण पादुका होने की बात कह बच निकलते हैं. भरत जी द्वारा चरण पादुका पूजन के बाद सखियां चारों भाइयों को कोहबर में प्रवेश की अनुमति देती हैं. कुंवर कलेवा के साथ संपन्न हुआ महोत्सव : नई बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में चल रहे नौ दिवसीय सिय-पिय मिलन महोत्सव बुधवार को कोहबर व कुंवर कलेवा”””””””” की रस्म अदायगी के साथ संपन्न हो गया. इस विधि में मां सीता की सखियां भगवान श्रीराम समेत चारों भाइयों से हंसी-मजाक करती हैं. श्रीराम कलेवा में तरह-तरह की दिव्य सामग्रियों को परोस उनकी खूब खातिरदारी करती हैं. इस लीला के साथ ही महोत्सव का सामपन हो गया है। वहीं हवन-पूजन के साथ ही आश्रम परिसर स्थित मंदिर में चल रहे अष्टयाम हरिनाम संकीर्तन तथा श्रीरामचरित मानस का नवाह्न परायण की पूर्णाहुति की गयी. समापन के साथ आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण जी महाराज द्वारा सम्मान के साथ सभी आगंतुकों, धर्माचार्यों व साधु-संतों को अगले साल के महोत्सव में आने के निमंत्रण के साथ विदाई दी गई. अगले साल आयेंगे श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी : महर्षि श्री खाकी बाबा के 57 वें निर्वाण तिथि पर अगले साल होने वाले सिय-पिय मिलन महोत्सव में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी आयेंगे. उस दौरान वे महोत्सव में नौ दिनों तक कथा-प्रवचन सुनायेंगे. 56 वें महोत्सव के समापन के दौरान यह घोषणा श्री सीताराम महोत्सव आश्रम के महंगत श्री राजाराम शरण जी महाराज ने की. उन्होंने बताया कि दूरभाष पर कॉल कर उन्होंने महोत्सव के सफल होने पर बधाई दी तथा अगले साल नौ दिनों तक कथा सुनाने की इच्छा जतायी. उनके इस महति कृपा का सम्मान करते हुए समिति द्वारा इसकी स्वीकृति दे दी गयी है.
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