सावधानी बरतें माता-पिता
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बच्चा मुंह में ले पेंसिल, तो दिमाग होगा कमजोर
सावधानी बरतें माता-पिता भागलपुर : माता-पिता या अभिभावक कृपया ध्यान दें! आप का लाडला या लाडली अगर पढ़ाई करते वक्त मुंह में पेंसिल रखता है, तो उसका दिमाग कमजोर होने का खतरा है. साथ ही शरीर में खून की कमी भी हो सकती है. खून की कमी यानी बीमारियों को न्योता अलग से. यह सनसनीखेज […]
भागलपुर : माता-पिता या अभिभावक कृपया ध्यान दें! आप का लाडला या लाडली अगर पढ़ाई करते वक्त मुंह में पेंसिल रखता है, तो उसका दिमाग कमजोर होने का खतरा है. साथ ही शरीर में खून की कमी भी हो सकती है. खून की कमी यानी बीमारियों को न्योता अलग से. यह सनसनीखेज तथ्य अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के शोध में सामने आये हैं.
शोध रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी और निजी स्कूलों में करीब 15 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जिनके शरीर में लेड (शीशा) की मात्रा तय मानक से अधिक पायी गयी है. शोध के दौरान एक दर्जन से ज्यादा सरकारी और निजी स्कूलों के 500 बच्चों की खून की जांच में पाया गया कि 68 बच्चों में लेड की मात्रा अधिक है.
कहते हैं विशेषज्ञ : एम्स के शिशु रोग विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि अक्सर ऐसे बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जो खून की कमी से पीड़ित होते हैं. जांच के साथ ही बच्चों की काउंसेलिंग में पता चलता है कि वे पढ़ाई के दौरान पेंसिल मुंह में रखते हैं. पेंसिल की नोक लेड से बनी होती है, यही लेड शरीर में जाकर हिम सिंथेसिस एन्जाइम को रोक देता है. हिम सिंथेसिस हीमोग्लोबिन के बनने के लिए जरूरी होता है.
संक्रमण भी बढ़ाती है पेंसिल :
पेंसिल मुंह में रखने से लेड के अलावा संक्रमण का खतरा भी बहुत बढ़ जाता है. शिशु रोग विशेेषज्ञों के मुताबिक बच्चे बिना हाथ धोए पेंसिल उठा लेते हैं. इसके साथ ही पेंसिल पर कई हाथ लगते हैं या यहां वहां रखी जाती है. ऐसे में वो अत्यधिक संक्रमित हो जाती है. संक्रमण लग जाये तो पेट की गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
क्या है सच
500 से अधिक निजी स्कूलों के बच्चों की खून की जांच में मिली जानकारी
68 बच्चों में लेड की मात्रा तय सीमा से अधिक पायी गयी
एम्स के चिकित्सकों के शोध में आया सामने
प्रदूषित पानी और कीटनाशक से तैयार सब्जियों के जरिये भी हमारे शरीर में लेड पहुंचता है.
होली के रंग में भी लेड की बहुतायत होती है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है.
पेंसिल को मुंह में रखने से लेड सीधा शरीर में प्रवेश होता है.
पानी सप्लाई की जर्जर पाइपलाइन से भी लेड
मिलता है.
छपे कागजों पर खाद्य पदार्थ रख कर खाने से भी लेड शरीर में जाता है.
घरों की दीवारों पर होनेवाले पेंट से भी लेड शरीर में पहुंचता है.
लेड से बच्चों बच्चों का आई-क्यू कम होता है
हाल ही में देश भर के शिशु रोग विशेषज्ञों के एक सेमिनार में भी एक पर्चा पढ़ा गया था, जिसमें बताया गया था कि लेड से बच्चों का आई-क्यू कम हो जाता है और वे मंदबुद्धि हो सकते हैं. पेट दर्द और उल्टी की शिकायतें आती हैं. इसके अलावा गले में खरास और दर्द भी होता है. शरीर में लेड की मात्रा बढ़ने से हीमोग्लोबिन नहीं बढ़ता जिससे बच्चों में खून की कमी भी हो जाती है.
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