संदर्भ : असहिष्णुता के विरोध में लेखकों के पुरस्कार लौटने काअभय कुमार भारतीधार्मिक व सांस्कृतिक असहिष्णुता के नाम पर सम्मान लौटाना कतई उचित नहीं है. यह तो सम्मान का अपमान है. इसके बावजूद कुछ लेखकों द्वारा कथित असहिष्णुता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले को लेकर साहित्य अकादमी से मिले पुरस्कारों को लौटा जा रहा है. यह कृत्य उन कतिपय लेखकों की कुंठा, निराशा और अविश्वास की स्थिति को जाहिर करता है. ये लेखक पुरसकार लौटाकर न सिर्फ साहित्य सम्मान की मर्यादा को भंग कर रहे हैं, बल्कि वे इसकी आड़ में स्वार्थ की ओछी राजनीति कर रहे हैं. इस परिपाटी को बढ़ावा देना साहित्य सम्मान का घोर अपमान है. इससे साहित्य अकादमी और उससे मिले सम्मान की गरिमा धूमिल हुई है, बल्कि उसके अस्तित्व और अस्मिता को लेकर भी एक सुलगता सवाल खड़ा हो गया है. यह बात सच है कि आज देश में जो कुछ हो रहा है उसे सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है. सहिष्णुता के सवाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. मगर विरोध करने की बजाए उस पर संवाद करने की जरूरत है. हमें पूरी सावधानी से षडयंत्रों और असहमतियों को समझना होगा. इस पर गंभीरता से विचार करना होगा. हमें यह जान लेना चाहिए कि अकादमी पुरस्कार के चयन में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है. यह काम एक लेखक मंडल करता है. साहित्य अकादमी पूरी तरह स्वायत्त है. सरकार केवल पुरस्कार की राशि देती है. इसमें किसी राजनीतिक दल की भी कोई भूमिका नहीं होती है, लेकिन आज जिस तरह लेखक विरोध का रुख अख्तियार कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शब्दों की ताकत पूरी तरह समाप्त हो चुकी है? यूं तो हम कह सकते हैं कि देश में बढ़ती असहिष्णुता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले को लेकर साहित्यकारों को विरोध करने का हक है. वे विरोध करने के तरीके चुनने को स्वतंत्र है, किन्तु पुरस्कार वापस करना ही एक मात्र तरीका नहीं है. पुरस्कार का लौटाया जाना हमारे समक्ष कई सवाल खड़ा करता है. दरअसल ये लेखक सम्मान में मिले प्रशस्ति पत्र, प्रमाण पत्र और पुरस्कार की राशि तो वापस कर सकते हैं, लेकिन उस सम्मान को वे कैसे वापस करेंगे, जो पुरस्कार के कारण उन्हें मिला है, जिसके कारण उनकी पुस्तकों की बिक्री बढ़ी और उनके अनुवाद अन्य भाषाओं में हुए तथा उनकी पुस्तकों को कई जगह पाठयक्रमों में जगह मिली. लेखक का धर्म है-स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अपनी अभिव्यक्ति को कलमबद्ध करना. उन्हें अपनी लेखिनी को इतनी प्रखर और धारदार बनानी चाहिए कि उनके एक-एक अक्षर हर तरह के अन्याय, अत्याचार और जुल्म-सितम को मुंह तोड़ जवाब देने और उसका दमन करने में सक्षम हो सके. लेखकों को लेखन कार्य के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करनी चाहिए और न ही इसकी गरिमा को ताक पर रखकर अथवा इसकी आड़ में स्वार्थपरक ओछी राजनीति करनी चाहिए. कुशवाहा टोला, लोदीपुर, भागलपुर
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संदर्भ : असहष्णिुता के विरोध में लेखकों के पुरस्कार लौटने का
संदर्भ : असहिष्णुता के विरोध में लेखकों के पुरस्कार लौटने काअभय कुमार भारतीधार्मिक व सांस्कृतिक असहिष्णुता के नाम पर सम्मान लौटाना कतई उचित नहीं है. यह तो सम्मान का अपमान है. इसके बावजूद कुछ लेखकों द्वारा कथित असहिष्णुता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले को लेकर साहित्य अकादमी से मिले पुरस्कारों को लौटा […]
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