भागलपुर : सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले कुलियों की जिंदगी खुद बोझ बन कर रह गयी है. स्टेशन पर कुलियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कुलियों को रेलवे स्टेशन पर विश्रामगृह तो है, लेकिन जगह की कमी और उचित देखभाल न होने जैसी दिक्कतें आ रही हैं.
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विश्राम के लिए पक्की छत से निकाल रेलवे ने कुलियों को टीन शेड में जलने को छोड़ा
भागलपुर : सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले कुलियों की जिंदगी खुद बोझ बन कर रह गयी है. स्टेशन पर कुलियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कुलियों को रेलवे स्टेशन पर विश्रामगृह तो है, लेकिन जगह की कमी और उचित देखभाल न होने जैसी दिक्कतें आ रही हैं. सालभर का पारिवारिक […]
सालभर का पारिवारिक रेलवे पास न होना, किसी तरह की बीमा योजना का न होना, किसी दुर्घटना या मृत्यु के बाद रेलवे की तरफ से कुली के परिवार को कोई मदद न मिलना जैसी परेशानियां भी उन्हें झेलनी पड़ रही हैं. बावजूद, इसके रेलवे प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है. कुलियों काे सबसे बड़ी परेशानी रहने की जगह को लेकर हो रही है.
रेलवे ने टीन शेड का एक हॉल बना कर दिया है. इसमें कोई सुविधाएं नहीं दी है. कुलियों के लिए न तो पानी की व्यवस्था है और न तो सोने के लिए बेड दिया है. केवल दो पंखे लगे हैं, यहां भी कुलियों ने वायरिंग का काम खुद के पैसे से कराया है. धूप में टीन का शेड जब गर्म होता है, तो वहां एक मिनट के लिए भी आराम करना कुलियों के लिए मुमकिन नहीं होता.
बता दें कि कुलियों के लिए पहले विश्रामगृह प्लेटफॉर्म नंबर एक पर पश्चिम की ओर पार्सल घर के नजदीक था, जिसे तोड़ कर ध्वस्त कर दिया है और वहां अब अधिकारियों के लिए चेंबर का निर्माण होगा. सलीम खान राजस्थान के रहने वाले हैं. वे हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते हैं.
घर-द्वार छोड़ कर भी नहीं मिल रहा काम: भागलपुर रेलवे में रजिस्टर्ड 22 कुली है, जिसमें कोई बेगूसराय, बाढ़, बख्तियारपुर, बरौनी के हैं. घर-द्वार छोड़ कर भी भागलपुर में काम नहीं मिल रहा है. दरअसल, रजिस्टर्ड कुलियों पर बिना लाइसेंस के कुली भारी पड़ रहे हैं. बिना लाइसेंस के कुलियों की संख्या करीब 50 है. रजिस्टर्ड रहते हुए भी कुलियों को बिना लाइसेंस के कुलियों के साथ नंबर लगाना पड़ता है. ऐसे में उन्हें काम नहीं मिल रहा है.
बेगूसराय के कुली अनुरोध तांती ने बताया कि हम घर-द्वार छोड़कर इस उम्मीद में यह काम कर रहे हैं कि परिवार को सहारा मिले. मगर, रेलवे ने उपेक्षित कर रखा है. कंचन राम ने बताया कि रेलवे की तरफ से कोई मेडिकल सुविधा नहीं मिलती. अगर बीमार पड़े या चोट लग जाये तो इसका सीधा असर हमारे परिवार पर पड़ता है. घनश्याम कुमार ने बताया कि जब से रहने के लिए टीन का शेड मिला है, तभी से तबीयत खराब रहने लगी है.
रेलवे नियुक्त तो करती है पर सुध नहीं लेती: कुली की बहाली रेलवे के द्वारा की जाती है, लेकिन इन्हें ही सरकार को सालाना 120 रुपये देने पड़ते हैं. सरकार से इन्हें किसी भी प्रकार का वेतन नहीं मिलता है. इन सभी चीजों से परेशान होकर कुली पलायन कर रहे हैं. अपनी सुविधाओं के अनुसार ये नये-नये काम चुन रहे हैं, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा कमाकर अपना और अपने परिवार वालों का पेट पाल सकें.
एयरपोर्ट जैसी सुविधाएं देने की मांग: स्टेशन पर मौजूद कुलियों का कहना है कि जिस तरीके से एयरपोर्ट पर काम करने वाले कुलियों को सरकार के द्वारा जो सुविधा दी जाती है और उन्हें महीने के दस से पंद्रह हजार रुपये दिये जाते हैं, उसी तरह हमारे लिए भी सरकार को उस तरह की सुविधा देनी चाहिए. हम भी उतनी ही मेहनत से काम करते हैं तो हमारे साथ यह भेदभाव नहीं होना चाहिए.
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