निलेश
भागलपुर : गांव, कस्बे, शहरों के विभिन्न चौक-चौराहों, होटलों, दुकानों में कच्ची उम्र के बच्चे काम करते दिख जायेंगे, जिनके हाथों में स्लेट-पेंसिल, कॉपी-कलम की जगह जूठे ग्लास-प्लेट, काम करने वाले औजार आदि दिखेंगे. शिक्षा की छाया की जगह सिर पर सामान भरी टोकरी का बोझ होगा. छोटू व मुनिया जैसे कॉमन नाम से पुकारे जानेवाले इन बच्चों की शिक्षा को लेकर शिक्षा विभाग गंभीर है.
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद छह से 14 वर्ष आयु के सरकारी विद्यालयों में नामांकित व गैर नामांकित बच्चों को बाल व्यापार से रोकने आगे आया है. बिहार शिक्षा परियोजना की ओर से इस संबंध में सभी जिलों के प्रारंभिक शिक्षा व सर्व शिक्षा अभियान के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को पत्र भेजा गया है. राज्य परियोजना निदेशक राहुल सिंह द्वारा भेजे गये इस पत्र में कहा गया है कि बाल व्यापार को रोके बिना प्रारंभिक शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है. इसलिए बाल व्यापार को रोकने व इसके प्रति समाज को जागरूक करने के लिए निर्देशिका तैयार की गयी है, जिसमें विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा शामिल आंकड़े चौंकाते हैं.
इस निर्देशिका में बाल व्यापार को रोकने की दिशा में शिक्षा विभाग के विभिन्न कार्यक्रमों, संविधान की संबंधित धारा व अनुच्छेद, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, यूएनओ के दिशा-निर्देश आदि के बारे में बताया गया है. हर प्रखंड के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा बुलायी गयी मासिक गुरु गोष्ठी में उक्त संबंध में लगातार चर्चा करवाये जाने का निर्देश दिया है, जिसमें प्रखंड साधन सेवी (बीआरपी), संकुल समन्वयक (सीआरसीसी) व सभी प्रधानाध्यापकों को निश्चित रूप से सक्रिय सहभागिता निभानी है.